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मैंटल प्लूम (Mantle Plume In Hindi) क्या हैं और कैसे बनता हैं? - पूरी जानकारी

मैंटल प्लूम सिद्धांत (Mantle Plume Theory) एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो उन सवालों के जवाब देता हैं जिनका जवाब देने में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत असमर्थ हैं। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत प्लेटों के किनारों पर होने वाले ज्वालामुखी उद्गार की तो व्याख्या करता हैं किन्तु प्लेटों के आंतरिक भाग में होने वाले ज्वालामुखी उद्गार और आंतरिक भाग में पाए जाने वाले मृत व सक्रिय ज्वालामुखियों की शृंखला की व्याख्या करने में असमर्थ हैं। इनकी व्याख्या मैंटल प्लूम (Mantle Plume In Hindi)  हॉटस्पॉट (Hotspot) द्वारा की जाती हैं। चलिए जानते हैं की आखिर ये मैंटल प्लूम क्या हैं और कैसे बनते हैं?

मैंटल प्लूम क्या हैं - Mantle Plume In Hindi  

मैंटल प्लूम की संकल्पना सर्वप्रथम "ट्रूजो विल्सन" महोदय द्वारा 1963 में प्रस्तुत की गयी। इस संकल्पना का विस्तार "मॉर्गन" महोदय द्वारा किया गया था। 


मैंटल प्लूम कोर-मैंटल सीमा (Core - Mantle Boundary) से उत्पन्न होते हैंकोर - मैंटल सीमा पर कुछ ऐसे स्थिर क्षेत्र होते हैं जहाँ से उच्च तापमान के अधीन चट्टानों के पिघलने से निर्मित मैग्मा बेलनाकार रूप में उपरमुखी (Upside Down) गति करता हैं, मैग्मा के इस उपरमुखी प्रवाह को "मैंटल प्लूम (Mantle Plume)" कहा जाता हैं। 

Mantle Plume In Hindi


जब मैंटल प्लूम स्थलमंडल के आधार से टकराते है तब क्षैतिज गति के कारण ये शीर्ष भाग में मशरूम की तरह प्रतीत होते है। तनाव बल, गुम्बदीकरण तथा अन्तःप्लेट विरलन के अधीन स्थलमंडलीय प्लेट पर ज्वालामुखी उद्गार होते हैं। ऐसे ज्वालामुखी, प्लेटों के आंतरिक भाग में उत्पन्न होते हैं तथा इन्हें हॉट-स्पॉट ज्वालामुखी (Hotspot Volcano) कहा जाता हैं। इनसे बेसाल्टिक लावा का उद्गार होता हैं तथा विस्तृत आग्नेय प्रदेश (Igneous Province) निर्मित होते हैं। 


[ जब कोई स्थलमंडलीय प्लेट गति करती हुई किसी Hotspot/ मेंटल प्लूम के ऊपर से गुजरती हैं तब मेंटल प्लूम उस प्लेट के आधार पर तनाव बल, गुम्बदीकरण और अन्तःप्लेट विरलन की क्रिया करता हैं, इस कारण वहां भ्रंश (Fault) का निर्माण हो जाता हैं और उस भ्रंश के सहारे लावा का उद्गार होता हैं। किन्तु प्लेट के गति करते रहने के कारण वह स्थान जहां से लावा का उद्गार हो रहा था, वह उस मैंटल प्लूम से आगे निकल जाता हैं और उस प्लेट का नया क्षेत्र उस मेंटल प्लूम के ऊपर  आ जाता हैं और फिर वहां मेंटल प्लूम वहीं पहले वाली क्रिया करता हैं। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती हैं, इस कारण प्लेटों के आंतरिक भाग में ज्वालामुखियों की श्रृंखला पायी जाती हैं। ] 

» भारत के आंतरिक भाग में स्थित "दक्कन के पठार" का निर्माण भी एक हॉटस्पॉट  "Reunion Hotspot" द्वारा हुआ था। 

   

मेंटल प्लूम सिद्धांत का महत्व - Importance Of Mantle Plume Theory 

  • मैंटल प्लूम सिद्धांत उन प्रक्रियाओं की व्याख्या करता हैं जिनकी व्याख्या 'प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत" से नहीं की जा सकती हैं। 
  • हवाई द्वीप जैसे कई क्षेत्र हैं जहाँ ज्वालामुखी उद्गार प्लेटों के किनारों के सहारे न होकर आंतरिक भाग में होते हैं। इनकी व्याख्या प्लेट किनारों के सहारे नहीं की जा सकती हैं जबकि मेंटल प्लूम सिद्धांत इनकी विश्वसनीय व्याख्या करता हैं। 
  • कुछ प्लेटों पर ज्वालामुखी श्रृंखला में पाए जाते हैं जिनमें कई उद्गार रहित होते हैं इनकी व्याख्या भी मेंटल प्लूम द्वारा ही संभव हैं। 
  • भारत के दक्कन पठार तथा USA के कोलंबिया - स्नेक पठार पर लावा उद्गार मेंटल Mantle Plume से ही सम्बंधित हैं। 
  • अफ्रीका की महान भू-भ्रंश घाटी (African Great Rift Valley) के निर्माण में भी mantle plume के प्रभाव को स्वीकार किया जाता है। 
  • कुछ विद्वानों के अनुसार विवर्तनिक प्लेटों की गतियों में भी Mantle Plume सहयोग करते हैं। 
  • यह सिद्धांत प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत को परिष्कृत करता हैं तथा कई भूगर्भिक क्रियाओं के लिए उचित क्रियाविधि का प्रतिपादन करता हैं। 

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