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18वीं सदी का भारत - 18th century India In Hindi | History Of Modern India In Hindi

18th century India In Hindi | History Of Modern India In Hindi


विषय-सूची 



परिचय - 18th century India In Hindi

आधुनिक भारत के इतिहास (History Of Modern India) की शुरुआत 18वीं सदी के इतिहास से होती हैं। यह वह काल था जब शक्तिशाली मुगल साम्राज्य का विघटन हो रहा था तथा भारतीय उपमहाद्वीप में कई क्षेत्रीय राज्यों की स्थापना हो रही थी। इसी प्रकार यह यूरोपीय कंपनियों के आगमन तथा यूरोपीय व्यापार के विस्तार का भी काल था। 


18वीं सदी के इतिहास को बेहतर तरीके से समझने के लिए हम इस काल को 2 भागों में विभाजित कर लेते हैं -


1.  18वीं सदी का पूर्वार्द्ध (1700-1750 ई.)

2.  18वीं सदी का उत्तरार्द्ध (1750-1800 ई.)


जहाँ 18वीं सदी का पूर्वार्द्ध, मुगल साम्राज्य के विघटन का काल और क्षेत्रीय राज्यों की स्थापना का काल था। 


वहीं 18वीं सदी का उत्तरार्द्ध, ब्रिटिश कंपनी का एक व्यापारिक कंपनी से राजनीतिक शक्ति के रूप में परिवर्तित होने का काल था। 


18वीं सदी के भारत को जानने से पहले हम कुछ Basic सवालों के जवाब जानते हैं... 



Q. आधुनिक भारत की शुरुआत कब से मानी जाती हैं ?
Ans. आधुनिक भारत के इतिहास की शुरुआत कब हुई इस मुद्दे पर अलग-अलग विद्वानों का भिन्न-भिन्न मत रहा हैं जैसे की - 

  • मुगल पक्षधर विद्वान इसकी शुरुआत 1707 ई. से मानते हैं। 
  • मराठा पक्षधर विद्वान 1761 ई. (पानीपत के तृतीय युद्ध) से 
  • वहीं ब्रिटिश विद्वान 1757 ई. (प्लासी के युद्ध) से 
  • कुछ विद्वान भारत में समाज एवं धर्म सुधार आंदोलन के साथ आधुनिक भारत की शुरुआत मानते हैं। 
परंतु अधिकतर विद्वान इसकी शुरुआत 1707 ई. से अर्थात औरंगजेब की मृत्यु के बाद से मानते हैं। 


Q. आधुनिक काल से क्या तात्पर्य हैं ?

Ans. जब हम 'आधुनिक काल' शब्द का प्रयोग करते हैं तो इसका अर्थ है की उस काल में कुछ ऐसे लक्षण जैसे की तर्कवाद, मानववाद, पूँजीवाद, व्यक्तिवाद आदि हमें नजर आते हैं और मनुष्य उन्हें अधिक महत्वता प्रदान करता हैं। ये लक्षण प्राचीन व मध्यकाल में या तो थे ही नहीं या फिर उनको उतनी महत्वता नहीं दी गई जितनी की आधुनिक काल में दी गई हैं। 



18वीं सदी का पूर्वार्द्ध (1700 - 1750 ई.)

मुगल साम्राज्य का विघटन 

औरंगजेब के काल तक मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरम बिंदु तक पहुंच गया था। औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य का विस्तार दक्षिण में भी किया परन्तु दक्षिण से उत्तर की और लौटने के क्रम में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो गई तथा क्षेत्रीय राज्य स्वतंत्र होने लगे। इन सभी राज्यों को हम निम्नलिखित समूहों में बाँट कर देख सकते हैं -


1. उत्तराधिकारी राज्य 

A. बंगाल

बंगाल को स्वतंत्र राज्य के रूप में "मुर्शिद कुली खान" ने स्थापित किया था। वह बंगाल के दीवान पद पर नियुक्त हुआ था परन्तु आगे चलकर उसने सूबेदार के पद पर भी कब्जा कर लिया और दीवान व सूबेदार दोनों पदों को मिलाकर "नवाब" के पद का सृजन किया। मुर्शिद व्यवहारिक रूप में तो स्वतंत्र हो गया था परन्तु औपचारिक रूप में वह मुगल शासक को राजस्व भेजता रहा। आगे चलकर 1740 ई. में "अलीवर्दी खान" ने बंगाल पर अधिकार कर लिया और मुगल शासक को राजस्व देना बंद कर दिया। 


B. अवध

1722 ई. में एक मुगल अमीर "सआदत खान" के अधीन अवध स्वतंत्र हो गया किन्तु यह भी औपचारिक रूप में मुगल साम्राज्य के अधीन बना रहा था। आगे सआदत का उत्तराधिकारी "सफदरजंग" हुआ, जिसे मुगल वजीर का पद मिला फिर वह नवाब "वजीर" के नाम से जाना जाने लगा। इसका उत्तराधिकारी "शुजाउदौला" हुआ। 


C. हैदराबाद

इस राज्य का संस्थापक "निजाम-उल-मुल्क" था। मुग़ल शासक मुहम्मद शाह ने उसे "निजाम-उल-मुल्क-आसफजहाँ" की उपाधि दी। 1722-1724 ई. के मध्य वह मुगल वजीर के पद पर रहा था। 1724 ई. में इसने हैदराबाद की स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापना की। 



2. विद्रोह के माध्यम से स्थापित राज्य 

A. मराठा

मराठे महाराष्ट्र के जमींदार वर्ग से जुड़े हुए थे, इन्हें 'देशमुख' भी कहा जाता था। ऐसा ही एक देशमुख था "शाहजी" जिसने पहले मुस्लिम राज्य अहमदनगर और फिर बीजापुर की सेवा ग्रहण की। उसने अपने पुत्र "शिवाजी" को अपनी पूना की जागीर सौंप दी तथा शिवाजी ने अपनी योग्यता के बल पर अपनी स्थिति मजबूत कर ली। आगे शिवाजी ने 1674 ई. में स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना कर दी तथा फिर आगे चलकर पेशवाओं के अधीन मराठा राज्य ने साम्राज्य का रूप ले लिया और फिर एक मराठा परिसंघ की स्थापना हुई। इस परिसंघ में कई मराठा सरदार थे यथा- पूना का पेशवा, इंदौर का होल्कर, ग्वालियर का सिंधिया, बड़ौदा के गायकवाड़, नागपुर के भौसले। 


परन्तु 'चौथ' एवं 'सरदेशमुखी' की पद्धति के कारण मराठा परिसंघ का स्वरूप सामंती हो गया और मराठा सरदार आपस में ही प्रतिस्पर्धा करने लगे। इस कारण से मराठों को पानीपत के तृतीय युद्ध में तथा आगे ब्रिटिश से हार सामना करना पड़ा। 


B. सिख

सिख एक धार्मिक पंथ था। इसके संस्थापक "गुरुनानक" थे। इसमें कोई जाति भेद नहीं था। ये एक समतामूलक समाज के समर्थक थे। फिर इनमे संगत (मिलजुलकर बैठकर प्रार्थना करना) एवं लंगर की प्रथा के कारण सामुदायिकता की भावना आई। सिख पंथ के 5वें गुरु 'अर्जुनदेव' ने स्वर्ण मंदिर का निर्माण तथा 'गुरु ग्रन्थ साहिब' का संकलन करवाया। परन्तु एक गलतफहमी के कारण मुगल बादशाह ने इन्हे शहादत दे दी। 

अब यहीं से सिख पंथ का रास्ता अलग होने लगा। अर्जुनदेव के पुत्र "गुरु हरगोविंद" ने सिखों का सैनिकीकरण किया। आगे 9वें गुरु "तेग बहादुर" को भी शहादत मिली अतः इनके उत्तराधिकारी "गुरु गोविंद सिंह" ने सिखों को सैनिक दृष्टि से और अधिक मजबूत बनाने के लिए "खालसा पंथ" की स्थापना की तथा आगे "बंदा बहादुर" ने सिखों को संगठित करने का प्रयास किया परंतु वह भी संघर्ष करते हुए मारा गया। फिर आगे 1764 ई. में उत्तर-पश्चिम में आये राजनीतिक खालीपन का फायदा उठाकर कुछ महत्वपूर्ण सिख सरदारों ने मिलकर एक स्वतंत्र सिख राज्य की स्थापना की यह राज्य आगे "रणजीत सिंह" के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण राज्य बन गया। 


C. जाट

चुरामन जाट और बदन सिंह के प्रयास से जाट राज्य की स्थापना हुई। 


D. रुहेला

अफगानो द्वारा रुहेला राज्य की स्थापना की गई थी। 



18वीं सदी का उत्तरार्द्ध (1750 - 1800 ई.)

पुर्तगीज़ (Portuguese)

एक पुर्तगाली नाविक "वास्कोडिगामा" द्वारा 1498 ई. में भारत के लिए वैकल्पिक मार्ग की खोज की गई। इस खोज के इसके पश्चात भारत आने वाली पहली व्यापारिक कंपनी पुर्तगाल की थी। 1505 ई. में 'डी-अल्मेडा' के अंतर्गत गवर्नर के पद का सृजन किया गया। इनका आरंभिक केंद्र 'कोचीन' रहा था। आगे 1510 ई. में नए गवर्नर "अल्बुकर्क" ने बीजापुर से गोवा को जीत लिया तथा आगे गोवा इनका मुख्यालय बना। 
 पुर्तगाल ने पूर्व में अपना एक बड़ा साम्राज्य बनाया जो की पूरब में होर्मुज बंदरगाह से लेकर पश्चिम में मलक्का जलसंधि तक फैला हुआ था, इसे "एस्तादो द इंडिया" के नांम से जाना जाता था।



17वीं सदी के आरंभ में डच एवं ब्रिटिशों ने पुर्तगीज़ो के एकाधिकार को समाप्त कर दिया फिर डचों और ब्रिटिशों के मध्य संघर्ष हुआ और इस संघर्ष के कारण होर्मुज बंदरगाह से लेकर पश्चिम में मलक्का जलसंधि तक का क्षेत्र दोनों के मध्य विभाजित हो गया। होर्मुज से बंगाल की खाड़ी तक का क्षेत्र ब्रिटिश के अधीन आ गया तो बंगाल की खाड़ी से मलक्का तक का क्षेत्र पर डचों का वर्चस्व हो गया। 



ब्रिटिश एवं डच कंपनी (British and Dutch Companies)

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन 1600 ई. जबकि डच ईस्ट इंडिया कम्पनी का गठन 1602 ई. में हुआ था। ये दोनों निजी कम्पनियाँ थी। इन कंपनियों को joint stock company कहा जाता था क्योंकि ये कम्पनियाँ अधिक संसाधन एकत्रित करने के लिए बाजार में share जारी करती थी और फिर शेयर खरीदने वाले निवेशकों को मुनाफे में से हिस्सा मिलता था। इन कंपनियों का प्रबंधन अधिक professional होता था जो तुरंत निर्णय लेता था। 


इन कंपनियों को "चार्टर कंपनी" भी कहा जाता था क्योंकि इन्हें इनकी सरकार द्वारा व्यापार करने का एकाधिकार दिया जाता था तथा उसके लिए इन्हे एक पत्र दिया जाता था जिसे "चार्टर" कहते थे। 



 

 कर्नाटक युद्ध (Carnatic War)

ब्रिटिश कंपनी व फ्रांसीसी कंपनी के मध्य 3 कर्नाटक युद्ध लड़े गए थे। इन युद्धों का उद्देश्य, दक्षिण भारत के व्यापार पर वर्चस्व स्थापित करना था। 


प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746 - 1748 ई.)

यह युद्ध ब्रिटेन और फ्रांस के मध्य यूरोपीय संघर्ष का विस्तार था। यह युद्ध ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार के युद्ध के साथ शुरू हुआ था और 1748 ई. की एक्स-ला-शैपेल की संधि के साथ समाप्त हो गया। 

द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749 - 1754 ई.)

यह युद्ध हैदराबाद एवं कर्नाटक में उभरने वाले उत्तराधिकार सम्बन्धी विवाद तथा यूरोपीय कंपनियों की महत्वाकांक्षा के कारण शुरू हुआ था। यह युद्ध हैदराबाद पर फ्रांसीसी कंपनी के वर्चस्व और कर्नाटक पर ब्रिटिश कंपनी के वर्चस्व के साथ समाप्त हो गया। 


तृतीय कर्नाटक युद्ध (1758 - 1763 ई.) 

यह युद्ध यूरोप में शुरू होने वाले सप्तवर्षीय युद्धों (1756 - 1763 ई.) का विस्तार था। 1763 ई. की पेरिस की संधि के साथ सप्तवर्षीय युद्ध समाप्त हो गया और इसी के साथ भारत में दोनों कंपनियों के बीच संधि हो गई। इस युद्ध ने भारत से फ्रांसीसी सत्ता का लगभग अंत कर दिया। फ्रांसीसी कंपनी अब केवल पांडिचेरी तक सिमट कर रह गई। 

कर्नाटक युद्धों के बारे में और अधिक पढ़ने के लिए आप ये लेख पढ़ सकते है - कर्नाटक युद्ध क्या थे? तथा इनके कारण व परिणाम 


बंगाल पर अधिकार (प्लासी व बक्सर का युद्ध)

बंगाल भारत का सबसे समृद्ध क्षेत्र रहा था तथा यूरोपीय कंपनियों के निर्यात व्यापार का लगभग 40% बंगाल से ही जाता था। अलीवर्दी खां ने 1740 ई. में 'घेरिया के युद्ध' में सरफराज खाँ को मारकर बंगाल पर कब्जा कर लिया था। 1756 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका दौहित्र(नाती) सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। ब्रिटिश कंपनी और बंगाल के नवाब के मध्य मतभेद का आरंभिक कारण "दस्तक के दुरुपयोग का मुद्दा" रहा था। 


प्लासी का युद्ध (1757 ई.) - Battle Of Plassey In Hindi

यह युद्ध भारतीय इतिहास का एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुआ। इस युद्ध से बंगाल पर ब्रिटिश सत्ता कायम हो गई। प्लासी का युद्ध एक बड़ा युद्ध न होकर एक बड़ा विश्वासघात था और इसका परिणाम पहले से ही तय था क्योकि नवाब के सेनापति मीर जाफर व एक दूसरे सैन्य अधिकारी राय दुर्लभ ब्रिटिशों के साथ पहले ही मिल चुके थे। सिराजुद्दौला की मीर जाफर के पुत्र द्वारा हत्या कर दी गयी थी। ब्रिटिश कंपनी ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया परंतु वह एक अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। 


आगे कंपनी ने मीर जाफर को नवाब के पद से हटाकर मीर कासिम को बंगाल का नवाब बनाया। मीर कासिम ने राजनीतिक रूप से कंपनी से स्वतंत्र होने का प्रयास किया। कासिम ने कंपनी द्वारा दस्तक के दुरुपयोग का विरोध किया, परिणामस्वरूप 1764 ई. को बक्सर का युद्ध आरंभ हो गया। और अधिक पढ़े.. 



बक्सर का युद्ध (1764 ई.) - Baksar War In Hindi

22 अक्टूबर, 1764 ई. को बक्सर का युद्ध शुरू हो गया। यह युद्ध ब्रिटिश तथा बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच हुआ। जिसमे ब्रिटिश विजय हुए और अवध के नवाब तथा मुगल बादशाह के साथ इलाहाबाद की संधि की। और अधिक पढ़े.. 



इलाहाबाद की संधि (1765 ई.) - Allahabad Treaty In Hindi

 बक्सर के युद्ध में विजय होने के बाद ब्रिटिश कंपनी ने अवध के नवाब और मुग़ल बादशाह के साथ संधि की। इस संधि से ब्रिटिश कंपनी को काफी धन की प्राप्ति हुई और साथ ही बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी भी मिल गई। 


प्लासी के युद्ध से कंपनी को बंगाल में पैर ज़माने का अवसर मिला तथा बक्सर के युद्ध से बंगाल को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया। इस तरह अब ब्रिटिश कंपनी एक व्यापारिक कंपनी से राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो गई। फिर आगे धीरे-धीरे कंपनी ने प्रत्यक्ष और अप्रयत्क्ष नीतियों के द्वारा अन्य क्षेत्रों को भी अपने भीतर मिला लिया और भारत में एक विस्तृत ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की। 


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