इस लेख में हम पर्यावरण व पारिस्थितिकी विषय के एक महत्वपूर्ण टॉपिक 'पारिस्थितिकी तथा पारिस्थितिकी तंत्र' (Ecology and Ecosystem In Hindi) के जानेंगे। हम जानेंगे की Paristhitiki Tantra Kya Hai?, Paristhitiki Tantra कितने प्रकार के होते है?, पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएँ क्या होती है?
Paristhitiki Kya Hai? - What is Ecology In Hindi
सर्वप्रथम अर्नेस्ट हैकल महोदय ने Oecology शब्द का प्रयोग किया था। इसी सन्दर्भ में Ecology (पारिस्थितिकी) का आधुनिक विकास हुआ।
- Oikos - आवास
- Logos - अध्ययन
सामान्य शब्दों में कहें तो "पारिस्थितिकी, विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत किसी जीव का उसके आवास में अध्ययन किया जाता है"।
दूसरे शब्दों में 'पारिस्थितिकी वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत समस्त जीवन तथा भौतिक पर्यावरण के मध्य अंतर्संबंधों तथा विभिन्न जीवों के मध्य पारस्परिक अंतर्संबंधों का अध्ययन किया जाता है'।
प्रारंभ में जब पारिस्थितिकी के अंतर्गत संयुक्त रूप में वनस्पति एवं जंतुओं का अध्ययन किया जाता था तब पारिस्थितिकी को वनस्पति पारिस्थितिकी या पादप पारिस्थितिकी और प्राणी पारिस्थितिकी में विभाजित किया गया था। किंतु बाद में इसका भी उपविभाजन किया गया तथा जंतुओं और पौधों की विशिष्ट प्रजातियों के आधार पर भी पारिस्थितिकी का वर्गीकरण किया गया।
जीव पर उसके आवास का सीधा प्रभाव पड़ता है इसी संदर्भ में आवास पारिस्थितिकी के अंतर्गत वन पारिस्थितिकी, घास पारिस्थितिकी, ताजे जल की पारिस्थितिकी, झील पारिस्थितिकी, सागरीय पारिस्थितिकी, पर्वत पारिस्थितिकी तथा प्रवाल पारिस्थितिकी आदि शाखाएँ भी विकसित हुई। जब पारिस्थितिकी के अंतर्गत एक ही प्रजाति के विभिन्न पक्षों का अध्ययन किया जाता है तो उसे 'स्वपारिस्थितिकी' कहा जाता है।
जब किसी समुदाय में विभिन्न प्रजातियों के विभिन्न पक्षों का अध्ययन किया जाता है तो उसे 'संपारिस्थितिकी' कहा जाता है।
Paristhitiki Tantra Kya Hai? - What is Ecosystem In Hindi
Ecosystem शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग A.G Tansley द्वारा 1935 में किया गया।
पारिस्थितिकी तंत्र जैवमंडल की मूलभूत संरचनात्मक (Structural) और प्रकार्यात्मक (Functional) इकाई है जिसमें द्रव्य (matter) के चक्रीय और ऊर्जा की एकदिशीय प्रवाह के अंतर्गत जीव एक-दूसरे से तथा अपने पर्यावरण से अंतर्क्रिया करते हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत 'सौर ऊर्जा' है।
पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएँ
- यह जैव तथा अजैव घटकों से निर्मित होता है।
- यह स्थान घेरता है तथा यह अत्यंत सूक्ष्म से लेकर अति विशाल हो सकता है।
- पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा घटक के रूप में सौर विकिरण का सर्वाधिक महत्व होता है।
- यह एक खुला तंत्र/विवृत तंत्र होता है।
- प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में स्वसाम्यावस्था होती है अर्थात पारिस्थितिक तंत्र के सभी घटक संतुलन में होते है। यदि इसमें एक सीमा तक परिवर्तन होता है तब पारिस्थितिक तंत्र इन परिवर्तनों के प्रति स्वयं ही खुद को समायोजित कर लेता है।
- अम्लीय वर्षा क्या है और कैसे होती है?
- मैंटल प्लूम क्या हैं और कैसे बनता हैं?
- प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की संपूर्ण जानकारी
- सागर नितल प्रसरण क्या हैं और कैसे होता हैं?
- Environment and Ecology Important Terminology In Hindi
पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना/घटक
पारिस्थितिक निम्नलिखित 3 घटकों से मिलकर बना होता है -
- जैविक घटक (Biotic Component)
- अजैविक घटक (Abiotic Component)
- ऊर्जा घटक (Energy Component)
1. जैविक घटक (Biotic Component)
जैविक घटकों को निम्नलिखित 3 घटकों में वर्गीकृत किया जाता है -
- उत्पादक
- उपभोक्ता
- अपघटनकर्ता
A. उत्पादक (Producer)
पारिस्थितिकी तंत्र में उत्पादक स्तर पर स्वपोषी जैविक घटक आते हैं जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। वे जीव (जंतु व वनस्पति) जो सूर्य के प्रकाश की सहायता से अपने भोजन का निर्माण करते हैं 'प्रकाश संश्लेषी' कहलाते है।
हरे पौधे इसका सर्वप्रमुख उदाहरण है जो क्लोरोफिल की उपस्थिति में प्रकाश ऊर्जा (सौर ऊर्जा) को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते है। हरे पौधे 'प्राथमिक उत्पादक' भी कहे जाते है।
B. उपभोक्ता (Consumer)
वे जीव जो अपने आहार के लिए अन्य जीवों पर निर्भर रहते है, उन्हें विषमपोषी/परपोषी कहा जाता है। यह पारिस्थितिक तंत्र में उपभोक्ता कहलाते है। इन्हें निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जाता है -
a. शाकाहारी या प्रथम श्रेणी उपभोक्ताये वे परपोषी होते हैं जो अपना भोजन हरे पौधों से प्राप्त करते है। यथा - टिड्डा, बकरी, भैंस, हिरण आदि।
b. मांसाहारी या द्वितीय श्रेणी उपभोक्ता
इसके अंतर्गत वे जीव आते है जो प्रथम श्रेणी उपभोक्ताओं को अपना आहार के रूप में प्रयुक्त करते है। यथा - मेंढक, छिपकली आदि
c. तृतीय श्रेणी उपभोक्ता
वे मांसाहारी जीव जो द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं से अपना आहार प्राप्त करते है। यथा - सांप, बाज, शेर आदि
वे जीव जो शाकाहारी व मांसाहारी दोनों होते है अर्थात भोजन में कुछ भी ग्रहण कर सकते है, सर्वाहारी/सर्वभक्षी कहलाते है। यथा - मनुष्य
प्रकृति में ऐसे जीव जो किसी अन्य जीव द्वारा खाए नहीं जा सकते हैं जबकि यह अन्य श्रेणियों के मांसाहारियों को अपना भोजन बना सकते है, उच्च श्रेणी उपभोक्ता/मांसाहारी कहलाते है।
C. अपघटनकर्ता - Decomposer
अपघटनकर्ता के अंतर्गत जीवाणु और कवक जैसे सूक्ष्मजीव आते हैं जो मृत जीवों के शरीर का अपघटन करते है तथा जटिल कार्बनिक पदार्थों को पुनः सरल अवयवों में तोड़ देते है और पदार्थ के चक्रीयकरण की प्रक्रिया संपन्न करते हैं, इन्हें सूक्ष्म उपभोक्ता भी कहा जाता है।
- ये मृतोपजीवी होते है। प्रकृति में कुछ वृहद आकार के मृतोपजीवी भी होते हैं जो मृत जंतुओं के शरीर को खाते है, इन्हें अपमार्जक कहा जाता है। उदाहरण के लिए 'गिद्ध'
- ऐसे मृतोपजीवी जो मृत जीवों के शरीर के छोटे टुकड़ों को खाते है, अपरदभोजी कहलाते है। जैसे केंचुआ
- कवक तथा जीवाणु अपघटनकर्ता कहलाते है क्योंकि यह मृत जीवों के शरीर पर विभिन्न प्रकार के रसायनों (एंजाइमों) का स्राव करते हैं तथा मृत शरीर को सरल अवयवों में तोड़ते हैं और इस प्रक्रिया में प्राप्त रसों का अवशोषण करते हैं। इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी भी कहा जाता है।
2. अजैविक घटक (Abiotic Component)
- अकार्बनिक घटक - नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, जल आदि
- कार्बनिक घटक - प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट आदि
- जलवायुविक घटक - ताप, वाष्प, आर्द्रता आदि
- स्थलाकृतिक घटक - मृदा, ऊंचाई, ढाल आदि
किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में दिए गए समय में अजैविक पदार्थों की जितनी मात्रा उपस्थित रहती है उसे खड़ी अवस्था (standing state) कहा जाता है।
3. ऊर्जा घटक (Energy Component)
पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यशीलता के लिए ऊर्जा घटक की अनिवार्यता होती है। पृथ्वी पर ऊर्जा के विभिन्न स्रोत है जैसे कि भूतापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा आदि किंतु इनमें से भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत 'सौर ऊर्जा' है, अतः सूर्य से प्राप्त ऊर्जा ही किसी पारितंत्र के अनुरक्षण और प्रशिक्षण का आधार है।
पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार - Types Of Ecosystem In Hindi
पारिस्थितिकी निम्नलिखित 2 प्रकार का होता है -
- प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र
- मानव निर्मित/कृत्रिम पारिस्थितिकी तंत्र
1. प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र
प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र उन पादपों और जंतुओं का समूह है, जो एक इकाई के रूप में कार्य करते हैं तथा अपनी पहचान बनाए रखने में सक्षम होते हैं।
प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जाता हैं -
- स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Terrestrial Ecosystem)
- जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystem)
a. स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Terrestrial Ecosystem)
स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत निम्नलिखित पारिस्थितिकी तंत्रों को शामिल किया जाता है -
- घास के मैदान
- वन
- मरुस्थल
- पर्वत
b. जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystem)
जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत निम्नलिखित पारिस्थितिकी तंत्रों को शामिल किया जाता है -
- खारा जल पारिस्थितिकी तंत्र - महासागर, ज्वारनदमुख, प्रवाल भित्ति, मैंग्रोव
- ताजा जल पारिस्थितिकी तंत्र - तालाब, झील, नदी
अन्य महत्वपूर्ण Topics:
- प्रवाल तथा प्रवाल भित्ति क्या हैं? अनुकूल दशाएं, प्रकार और वितरण
- सुपोषण तथा शैवाल प्रस्फुटन क्या है?
- झूम कृषि क्या है? कहां की जाती हैं? और इसके नुकसान
- लाल ज्वार (Red Tide) क्या है और कैसे बनता है?
- जैव भू-रासायनिक चक्र: अर्थ, प्रकार और प्रक्रिया
- मैंग्रोव वन: महत्व, विशेषताएँ, प्रकार, क्षय के कारण और संरक्षण के उपाय
2. मानव निर्मित/कृत्रिम पारिस्थितिकी तंत्र
- खेत
- ग्रीन हाउस
- एक्वेरियम (Aquarium)
पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता - Productivity Of Ecosystem
किसी जीव में संचित कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को ही 'उत्पादन' कहा जाता है। यह उत्पादन जिस दर से होता है उसे 'उत्पादकता' कहा जाता है।
उत्पादकता को ग्राम/मीटर²/वर्ष या ग्राम/मीटर²/दिन द्वारा प्रकट किया जाता है।
जब यह उत्पादन हरे पौधे द्वारा होता है तब इसे प्राथमिक उत्पादन कहा जाता है तथा जिस दर से यह उत्पादन होता है उसे प्राथमिक उत्पादकता कहा जाता है। चूँकि पारिस्थितिकी तंत्र में उत्पादक स्तर पर हरे पौधे होते हैं अतः हरे पौधों द्वारा प्रति इकाई क्षेत्र में प्रति इकाई समय में संचित सकल ऊर्जा या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को पारिस्थितिकिय उत्पादकता भी कहते है।
पारिस्थितिकी उत्पादन से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाएँ
Gross primary Production और Net primary Production
हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में जितनी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ का निर्माण करते हैं इससे 'सकल प्राथमिक उत्पादन' (GPP) कहा जाता है। किंतु यह समस्त कार्बनिक पदार्थ शाकाहारियों के लिए उपलब्ध नहीं होता। हरे पौधे श्वसन की क्रिया में कार्बनिक पदार्थ के एक भाग का स्वयं उपभोग कर लेते है जो इनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, जबकि शेष कार्बनिक पदार्थ शाकाहारियों के लिए उपलब्ध रहता है, इसे ही 'निवल प्राथमिक उत्पादन' (NPP) कहा जाता है।
Gross Secondary Production और Net Secondary Production
निवल प्राथमिक उत्पाद शाकाहारियों लिए उपलब्ध होता है। शाकाहारी प्राप्त निवल प्राथमिक उत्पादन के जितने भाग को स्वांगीकृत कर कार्बनिक पदार्थ के रूप में अपने अंदर संचित रखते है, वह 'सकल द्वितीयक उत्पादन' (GSP) कहलाता है। इसके एक भाग का उपयोग शाकाहारी भी श्वसन की क्रिया में अपने पोषण के लिए प्रयुक्त कर लेते हैं तथा शेष बचा हुआ भाग 'निवल प्राथमिक उत्पादन' (NSP) कहलाता है जो मांसाहारियों को उपलब्ध होता है।
पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह
पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह ऊष्मागतिकी के निम्नलिखित 2 नियमों के अनुरूप होता है -
- प्रथम नियम के अनुसार "ऊर्जा न तो नष्ट की जा सकती है और न ही उत्पन्न की जा सकती है। यह केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती है"।
- दूसरे नियम के अनुसार "एक निकाय से दूसरे निकाय में ऊर्जा का शत-प्रतिशत रूपांतरण संभव नहीं होता है बल्कि ऊर्जा का एक भाग ताप ऊर्जा के रूप में भी विसरित हो जाता है, जो अंतरिक्ष में संचरित होती रहती है"।
इन दोनों नियमों के आधार पर पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा प्रवाह का निर्धारण किया गया है। इसके अनुसार पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का एकदिशीय प्रवाह होता है तथा लिंडमैन नामक वैज्ञानिक के अनुसार एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में मात्र 10% ऊर्जा का स्थानांतरण होता है इसे 10% का नियम भी कहते है।
पारिस्थितिकी तंत्र से प्राप्त होने वाली सेवाएँ/लाभ
पारिस्थितिकी तंत्र मानव को विभिन्न सेवाएँ प्रदान करते है। मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति में पारिस्थितिकी तंत्रों का अत्यधिक योगदान है। पारिस्थितिकी तंत्रों से प्राप्त होने वाली प्रमुख सेवाएँ निम्नलिखित है -
- खाद्य पदार्थ उत्पादन
- जल की उपलब्धता
- काष्ठ व रेशे
- ईंधन
- मृदा निर्माण
- प्राथमिक उत्पादन
- आवास
- पोषक पदार्थों का चक्रण
- जलवायु नियंत्रण
- बाढ़ नियंत्रण
- जल का शुद्धिकरण
- मनोरंजन संबंधी लाभ