इस लेख में प्रवाल (Coral in Hindi) तथा प्रवाल भित्ति (Coral Reef in Hindi) के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई हैं। Praval kya hai?, Praval bhitti kya hai?, Praval bhitti kaise banti hai? Praval Bhitti Ke Prakar आदि सभी पहलुओं को सरल भाषा में विस्तार से समझाया गया हैं।
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praval bhitti kya hai |
Table Of Content
- Praval Kya Hai?
- प्रवाल के प्रकार
- Coral और जूजैंथिली के मध्य क्या संबंध है?
- प्रवाल के विकास के लिए अनुकूल दशाएं
- प्रवालों का वैश्विक वितरण
- Praval Bhitti Kya Hai?
- प्रवाल भित्ति के प्रकार
- प्रवाल भित्तियों से लाभ
- प्रवाल भित्तियों को खतरा
- प्रवाल विरंजन क्या है?
- प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के उपाय
- कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- अभ्यास प्रश्न
Praval Kya Hai? - What is Coral in Hindi
प्रवाल जिसे मूँगा/Coral भी कहा जाता है, एक समुद्री अकशेरुकी प्राणी (Invertebrates) होता है। इसके लघु बेलनाकार रूप के कारण इसे "पॉलिप" भी कहा जाता है। ये जीव वृहद स्तर पर सघन कालोनी बनाकर रहते हैं। प्रवाल, चूना (CaCo₃) स्रावी जीव होते हैं तथा चूने द्वारा अपने बाह्य कवच का निर्माण करते है, प्रवाल का यह बाह्य खोल 'कोरलाइट' कहलाता है।
कोरल का वैज्ञानिक वर्गीकरण
- जगत (Kingdom) :- प्राणी
- संघ (Phylum) :- निडेरिया/निडारिया
- वर्ग (Subphylum) :- एंथोजोआ (Anthozoa)
प्रवाल के प्रकार - Types Of Coral in Hindi
प्रवालों को दो भागों में विभाजित किया जाता है -
- Hard Coral
- Soft Coral
केवल Hard Coral ही चूने का स्राव करते हैं, Soft Coral चूने का स्राव नहीं कर सकते, इस कारण Hard Coral को 'भित्ति निर्माता कोरल" भी कहा जाता है।
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Coral और जूजैंथिली (Zooxanthellae) के मध्य क्या संबंध है?
जूजैंथिली शैवाल (Zooxanthellae) महासागरों में पाए जाने वाले विभिन्न रंगों के स्वपोषी जीव होते हैं। इनमें कोई रक्षक आवरण नहीं होता है।
कोरल विषमभोजी होते है तथा अपने मुख के चारों ओर पाए जाने वाले दंशकारी तंतु (Tentacles) द्वारा सूक्ष्म जंतुओं, प्लवकों का शिकार करते हैं किंतु इस प्रक्रिया में इनके पोषण की आवश्यकता का मात्र 40% ही पूरा हो पाता है।
जैसा की हम जानते हैं कि Hard Coral के पास अपना एक चूने का बना बाह्य आवरण होता है किंतु वह अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकता, वही जूजैंथिली शैवाल के पास अपना स्वयं का कोई रक्षक आवरण नहीं होता किंतु वह प्रकाश-संश्लेषण के माध्यम से अपना भोजन स्वयं बना सकता है, इस कारण प्रकृति में कोरल और जूजैंथिली शैवाल सहजीवन/सहोपकारिता (Symbiotic) में रहते हैं, जिससे कोरल, जूजैंथिली शैवाल से भोजन की प्राप्ति कर लेता हैं तथा जूजैंथिली शैवाल को कोरल का रक्षक आवरण/आवास प्राप्त हो जाता है। जूजैंथिली शैवालों के कारण ही कोरल रंग-बिरंगे दिखाई देते हैं।
यद्यपि Soft Coral की कई प्रजातियां इस सहजीवन के बिना भी पाई जाती है।
प्रवाल के विकास के लिए अनुकूल दशाएं
1. तापमान
प्रवाल मुख्य रूप से उष्ण कटिबंधीय महासागरों (30° N से 30° S) में पाए जाते हैं, क्योंकि इनके जीवित रहने के लिये 20°C से 21°C तापमान उपयुक्त होता है। 18°C से कम तापमान पर प्रवाल जीवित नहीं रह सकते हैं।2. गहराई
प्रवाल कम गहराई पर पाए जाते है, क्योंकि अधिक गहराई पर सूर्य के प्रकाश व ऑक्सीजन की कमी होती है। 50-70 मीटर की गहराई तक प्रवाल विकसित हो सकते है।
3. स्वच्छ व अवसाद रहित जल
प्रवालों के विकास के लिए साफ और अवसाद रहित जलीय क्षेत्र आवश्यक होता है क्योंकि अवसादों के कारण प्रवाल का मुख बंद हो जाता है और वे मर जाते हैं।4. लवणता
प्रवालों के विकास के लिए उचित लवणता वाला महासागरीय जल भी आवश्यक होता है। महासागरीय जल की लवणता 32 ग्राम प्रति हजार से 42 ग्राम प्रति हजार तक हो सकती है, इससे अधिक लवणता होने पर जल में कैल्शियम कार्बोनेट की अधिकता हो जाती है और प्रवालों का विकास अवरुद्ध हो जाता है और यदि लवणता इससे कम हो जाए तो प्रवालों के लिए आवश्यक खनिज लवण प्राप्त नहीं हो पाते हैं। यही कारण है कि नदियों के मुहाने पर तथा ताजे जल में प्रवालों का विकास नहीं होता हैं।
5. अन्य दशाएं
उपरोक्त सभी अनुकूल दशाओं के अतिरिक्त प्रवालों के विकास के लिए अंतः सागरीय चबूतरे की आवश्यकता होती है जो किसी डूबे हुए ज्वालामुखी द्वीप, पठार या पर्वत का भाग हो सकता है। इसी अंतः सागरीय चबूतरे की सतह पर संबद्ध होकर प्रवाल चूने के स्राव द्वारा अपने खोल का निर्माण करते है।
प्रवालों का वैश्विक वितरण
प्रवाल 30° N से 30° S अक्षांशों के मध्य उष्ण कटिबंधीय महासागरों के पश्चिमी भागों में विशेष रूप से पाए जाते हैं। जिनमें अधिकांश प्रशांत महासागर (55%) हिंद महासागर (30%) तथा अटलांटिक महासागर के कैरीबियन सागर आदि क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
भारत में प्रवाल निम्नलिखित क्षेत्रों में पाए जाते हैं -
- अंडमान-निकोबार
- कच्छ की खाड़ी
- लक्षद्वीप
- मन्नार की खाड़ी
- खंभात की खाड़ी
- ओडिशा के कोणार्क तट
- महाराष्ट्र में मालवन तथा विजयदुर्ग के तट
- कर्नाटक के नेतरानी द्वीप पर
Praval Bhitti Kya Hai? What is Coral Reef in Hindi
जैसा कि हमने अभी ऊपर चर्चा की कि केवल कठोर प्रवाल (Hard Coral) ही चूने का स्राव करते हैं इस कारण इन्हें 'भित्ति निर्माता प्रवाल' कहा जाता है। यह प्रवाल ही प्रवाल भित्ति का निर्माण करते है।
कठोर प्रवाल चूने का स्राव करते हुए स्वयं को किसी अन्तः सागरीय चबूतरे से संबद्ध कर लेते हैं तथा हजारों की संख्या में ये प्रवाल एकत्रित होते हैं जिसे "प्रवाल कालोनी" कहा जाता है। यदि किसी प्रवाल की मृत्यु हो जाती है तो दूसरा जीवित प्रवाल उसके मृत शरीर पर स्वयं को स्थापित कर चूने का स्राव करता रहता है इस प्रक्रिया में एक लंबे समय बाद चूना निर्मित एक दीवार जैसी संरचना निर्मित हो जाती है इसे ही "प्रवाल भित्ति" (Coral Reef) कहते है।
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प्रवाल भित्ति के प्रकार - Types Of Coral Reef in Hindi
प्रवाल भित्ति मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार की होती है -
1. तटीय प्रवाल भित्ति - Fringing Coral Reef
- जब प्रवाल भित्ति तट से संबंध होकर निर्मित होती है तब उसे 'तटीय प्रवाल' कहते है।
- यह प्रवाल भित्तियों को सर्वाधिक सामान्य रूप है। फ्लोरिडा के तटीय क्षेत्र, रामेश्वरम आदि में ऐसी ही प्रवाल भित्तियां पाई जाती है।
- जब कभी तटीय प्रवाल भित्तियों में छोटी लैगून जैसी संरचना का निर्माण हो जाता है उसे "बोट चैनल" कहा जाता है।
2. अवरोधक प्रवाल भित्ति - Barrier Reef
जब प्रवाल भित्ति तट के समानांतर किंतु तट से दूर निर्मित होती है तब इसे 'अवरोधक प्रवाल भित्ति' कहा जाता है। यह जलयानों के आवागमन में अवरोध उत्पन्न करती है। तट और इन भित्तियों के मध्य गहरी और चौड़ी लैगून पाई जाती है। प्रवाल भित्तियों में ये सर्वाधिक विस्तृत होती है।
विश्व की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति ऑस्ट्रेलिया में "ग्रेट बैरियर रीफ" (Great Barrier Reef) है जो 2300 किलोमीटर लंबी है।
3. एटॉल - Atoll
सागर के मध्य में स्थित वलयाकार भित्ति जिससे वलयाकार लैगून का निर्माण होता है 'एटॉल' कहलाती है। इसका निर्माण द्वीप के सागरीय जल में डूब जाने अथवा सागर तल के ऊपर उठने की प्रक्रिया में होता है।
जब लैगून में महासागरीय तरंगों द्वारा अवसाद निक्षेपित किये जाते हैं तो कालांतर में लैगून भरकर "एटॉल द्वीपों" को जन्म देती है। भारत में लक्षद्वीप 'एटॉल द्वीप' का उदाहरण है।
4. पैच रीफ - Patch Reef
ये छोटे आकार की और पृथक प्रवाल भित्ति होती है तथा ये भित्ति निर्माण की प्रारंभिक प्रक्रिया से भी संबद्ध हो सकती है।
प्रवाल भित्तियों से लाभ - Coral Reef Benefits in Hindi
- प्रवाल भित्तियां सागर नितल के केवल 1% भाग में पाई जाती है किंतु यहां 2.5 लाख से भी ज्यादा प्रजातियां निवास करती हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार यहां प्रजातियां 10 लाख या इससे ज्यादा भी हो सकती है। इस प्रकार प्रवाल भित्तियों में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वर्षा वनों से भी ज्यादा जैव-विविधता पाई जाती है।
- प्रवाल भित्तियों के सहारे पाए जाने वाले जीव मानव आहार का हिस्सा होते है।
- कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण तथा जलवायु नियंत्रण आदि में भी प्रवाल भित्तियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
- प्रवाल भित्तियों से कैंसर, हृदय रोग, अल्सर आदि बीमारियों से संबंधित विभिन्न औषधीयां पाई जाती है।
- मूँगे का उपयोग रत्नों के रूप में भी किया जाता है।
- प्रवाल भित्तियां चक्रवातों और सुनामी की तीव्रता को कम कर देती है, जिससे तटीय क्षेत्र की रक्षा होती है।
- प्रवालों का पर्यटन संबंधी महत्व हैं।
प्रवाल भित्तियों को खतरा - Threat To The Coral Reef in Hindi
प्रवाल भित्तियों के अस्तित्व को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक और मानवजनित कारक निम्नलिखित है -- प्रवाल भित्तियों को सर्वाधिक खतरा 'भूमंडलीय तापन' (Global warming) से है। भूमंडलीय तापन के कारण महासागरीय जल के तापमान में वृद्धि हो जाती है इससे प्रवालों के विरंजन की दर बढ़ जाती है और उनकी मृत्यु का कारण बनती है।
- महासागरीय जल स्तर में वृद्धि
- महासागरीय जल की लवणता और PH मान में परिवर्तन
- प्रवालों में होने वाले विभिन्न रोग
- समुद्र तट के प्रदूषण से नुकसान
- चक्रवात और सुनामी से होने वाली क्षति
- अवसादों/तलछटों में वृद्धि
- कोरल खनन
- नौ-परिवहन
- पर्यटन
- परमाणु परीक्षण
- तटीय विकास
- सागरीय अम्लीकरण
प्रवाल विरंजन क्या है? - Coral Bleaching in Hindi
प्रवाल एक नाजुक संतुलन पर आधारित पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते है तथा जूजैंथिली नामक शैवाल के साथ सहअस्तित्व में रहते हैं जिसके कारण प्रवाल विभिन्न रंगों के दिखाई पड़ते हैं किंतु जब महासागरीय जल के तापमान के गुणों में प्रतिकूल परिवर्तन होता है तब प्रवाल और शैवाल का यह सहसंबंध टूट जाता है तथा प्रवाल इसके अंतर्गत अपने ऊत्तकों में रहने वाले शैवालों को निष्कासित कर देता हैं और रंगहीन/सफेद दिखाई पड़ने लगता हैं इस घटना को ही "प्रवाल विरंजन" (Coral Bleaching) कहते हैं।
प्रवाल विरंजन का प्रमुख कारण महासागरीय जल के तापमान में होने वाली वृद्धि है। यदि महासागर का तापमान सामान्य से 1 डिग्री सेल्सियस भी बढ़ जाता है तब विरंजन प्रारंभ हो सकता है।
प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के उपाय - Conservation Of Coral Reef in Hindi
- तटीय विकासात्मक गतिविधियों को विनियमित और नियंत्रित करना
- प्रवाल भित्ति से संबंधित उत्पादों के घरेलू में वैश्विक व्यापार को नियंत्रित करना
- क्षतिग्रस्त प्रवाल भित्तियों के पुनर्निर्माण के उपाय करना
- सामुद्रिक संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना
- लोगों में जागरूकता और सरकारी समन्वय और उत्तरदायित्व में सुधार द्वारा प्रवालों के प्रति संरक्षण का भाव उत्पन्न करना।
प्रवाल तथा प्रवाल भित्तियों से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- प्रवाल भित्तियों में अत्यधिक जैव-विविधता पाई जाती है इस कारण इसे "समुन्द्र का वर्षावन" भी कहा जाता है।
- "विल्किंसन रिपोर्ट" प्रवाल विरंजन की बढ़ती दर को स्पष्ट करती हैं।
इस लेख में हमने Praval Kya Hai?, Praval Bhitti Kya Hai? इसके प्रकार, वितरण, इनको खतरा, इनके संरक्षण आदि सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की हैं। मैं आशा करता हूँ आपको इस लेख से कुछ नया सीखने को मिला होगा, इसे social media पर जरूर शेयर करें।