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विदेशी कंपनियों का भारत आगमन - आधुनिक भारत का इतिहास

आधुनिक भारत (Modern India) के इस लेख में हम 'विदेशी कंपनियों के भारत आगमन' के बारे में जानेंगे। हम जानेंगे की ये यूरोपीय कंपनियां कब और क्यों भारत आई थी?




Table of Content




प्राचीन और मध्यकालीन यूरोप के इतिहास के बारे में जानने के लिए इन लेखों को पढ़ें -


भारत में विदेशी कंपनियों के आगमन के बारे में जानने से पहले चलिए इसकी पृष्ठभूमि जानते है। 

मध्यकाल में एशिया और यूरोप की परस्पर क्या स्थिति थी?

एशिया न केवल सबसे बड़ा महाद्वीप था बल्कि इसके पास अपार संसाधन भी थे। एशिया, विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं जैसे की सिंधु सभ्यता, चीन की सभ्यता, मेसोपोटामिया की सभ्यता, मिश्र की सभ्यता आदि की जन्मस्थली  भी रहा है। मध्यकाल में भी एशिया में दुनिया के कुछ शक्तिशाली राजवंश यथा मुगल, सफावी (ईरान), मंचू (चीन)  शासन कर रहे थे। 


मध्यकाल में एक नई शक्ति उभरकर आई जिसे 'इस्लामी शक्ति' कहा गया और इसने धीरे-धीरे अपने आप को एक वैश्विक शक्ति में ढाल लिया। इसका प्रसार अफ्रीका, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया और पूर्वी एशिया तक हो चुका था। दुनिया के व्यापार पर अरब व्यापारियों का अधिक नियंत्रण था। 


जिस समय एशिया प्रगति कर रहा था उस वक्त यूरोप पतनशील था। यह एक छोटा महाद्वीप था। राजनीतिक क्षेत्र में यहाँ सामंतवाद कायम था और अर्थव्यवस्था का रूप क्षेत्रीय था तथा सामाजिक, शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र पर 'रोमन कैथोलिक चर्च' का नियंत्रण था। 



कुस्तुन्तुनिया का पतन और सामुद्रिक खोजों की शुरुआत 

मध्यकाल के अंत में यूरोप में कई ऐसी घटनाएं घटना शुरू हुई जिससे यूरोप के इतिहास की दिशा को बदल दिया। पुनर्जागरण, प्रबोधन, धर्मसुधार आंदोलन आदि कई प्रमुख घटनाएं थी जिन्होंने यूरोप को पतनशील अवस्था से निकालकर प्रगति की ओर अग्रसर किया। इन घटनाओं में से एक प्रमुख घटना थी 1453 में 'कुस्तुन्तुनिया का पतन'। 


कुस्तुन्तुनिया, पूर्वी रोमन साम्राज्य (बाइजेंटाइन साम्राज्य) की राजधानी थी, जिस पर 1453 ई. में एक मुस्लिम शक्ति ऑटोमन तुर्क ने अधिकार कर लिया। कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार के कारण अब यूरोपीय व्यापारी पूर्वी भू-मध्यसागर से फारस की खाड़ी अथवा लाल सागर के रास्ते भारत नहीं जा सकते थे। इस समय केवल यही एक सामुद्रिक रास्ता था जो यूरोप को पूर्वी देशों से जोड़ता था किन्तु अब इस पर भी मुस्लिम शक्ति ने कब्ज़ा कर लिया और इससे गुजरने वाले जहाजों को लूटने लगे। वहीं इस समय यूरोप में पूर्वी देशों की वस्तुओं खासकर 'मसालों' को अत्यधिक मांग थी। 


परन्तु यूरोपीय देशों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और भारत सहित पूर्वी देशों के लिए वैकल्पिक मार्ग की खोज शुरू कर दी। इसमें पहल स्पेन और पुर्तगाल ने की थी और इसी क्रम में स्पेन के नाविक 'कोलंबस' ने 1492 ई. में अमेरिका महाद्वीप की तथा पुर्तगाली नाविक 'वास्को-डी-गामा' ने 1498 ई. में भारत के लिए वैकल्पिक मार्ग की खोज कर डाली। आगे इस दौड़ में ब्रिटिश, डच और फ्रांसीसी भी शामिल हुए और इसके पश्चात पूर्वी तथा दक्षिण पूर्वी एशिया तक का मार्ग खुल गया। इस प्रकार सामुद्रिक खोजों एवं यूरोपीय देशों की नाविक सफलता ने विश्व इतिहास की दिशा को बदल दिया। वस्तुतः वास्को-डी-गामा व कोलंबस की सफलता का एक व्यापक अर्थ था, वह था "अरब व्यापारियों के एकाधिकार का अंत तथा इस्लामी शक्ति के समान्तर यूरोपीय शक्ति का उद्भव"। 


विदेशी कंपनियों का भारत आगमन 

भारत के लिए नए वैकल्पिक सामुद्रिक मार्ग की खोज के बाद भारत आने वाले पहले यूरोपीय 'पुर्तगाली व्यापारी' थे। 17 मई , 1498 ई. को वास्को-डी-गामा जो की एक पुर्तगाली व्यापारी था भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट बंदरगाह पहुँचा और इसने भारत एवं यूरोप के बीच नए समुद्री मार्ग की खोज की। इसके बाद से यूरोपियों का भारत आने का सिलसिला शुरू हो गया और एक के बाद एक यूरोपीय देश व्यापारिक कंपनी बनाकर भारत आने लगे। इनमें सबसे पहली कंपनी थी 'पुर्तगाली कंपनी'। 


विदेशी कंपनियों का भारत आगमन का क्रम -

पुर्तगाली → डच → ब्रिटिश → डेनिश → फ्रांसीसी 



1. पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी - Portuguese East India Company

1505 ई. में पुर्तगाली कंपनी भारत आई और फ्रांसिस्को-द -अल्मेडा के अंतर्गत गवर्नर के पद का सृजन किया गया। पुर्तगाली कंपनी का आरंभिक केंद्र कोचीन रहा था। 1509 ई. में एक दूसरे गवर्नर 'अलफांसो द अल्बुकर्क' की नियुक्ति की गई। इसने 1510 ई. में बीजापुर के युसुफ आदिल शाह से गोवा को जीत लिया तथा आगे गोवा इनका मुख्यालय बना। 


पुर्तगालियों ने अपनी पहली व्यापारिक कोठी कोचीन में खोली और दक्षिण-पूर्वी तट पर उनकी एकमात्र बस्ती सन-थोमे थी। पुर्तगालियों ने फारस की खाड़ी में स्थित ओरमुज/होर्मुज बंदरगाह से लेकर पूरब में इंडोनेशिया के मलक्का तक के सामुद्रिक व्यापार पर एकाधिकार करने में सफलता पाई। पुर्तगालियों ने इस सामुद्रिक साम्राज्य को "एस्तादो-द-इंडिया" का नाम दिया। 


सामुद्रिक व्यापार पर एकाधिकार करने के बाद पुर्तगालियों ने भारतीय राज्यों से सामुद्रिक कर वसूलना आरंभ कर दिया इसे "कार्टज-आर्मेडा-काफिला पद्धति" के नाम से जाना गया। किन्तु पुर्तगालियों का एकाधिकार अधिक समय तक नहीं रह सका क्योंकि अन्य यूरोपीय कंपनियों ने पुर्तगालियों की शक्ति को दबा दिया। 



2. डच ईस्ट इंडिया कम्पनी - Dutch East India Company

पुर्तगालियों के बाद भारत आने वाले लोग 'डच' थे। डच ईस्ट इंडिया कंपनी या VOC नीदरलैंड की एक निजी व्यापारिक कंपनी थी जिसकी स्थापना 1602 ई. में की गई। डचों ने अपनी पहली व्यापारिक फैक्ट्री 1605 ई. में मसूलीपटट्म में स्थापित की। 1759 ई. में अंग्रेजों एवं डचों के मध्य हुए वेदरा युद्ध ने डचों का भारत में अंतिम रूप से पतन कर दिया। 



3. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी - British East India Company

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटेन की एक Joint Stock Company थी जिसकी स्थापना 1600 ई. में हुई। EIC (East India Company) 1608 में भारत में आई। डचों और ब्रिटिशों के आगमन के बाद पुर्तगालियों का भारत के व्यापार पर जो एकाधिकार था वह समाप्त हो गया। पहले डचों और ब्रिटिशों ने मिलकर पुर्तगाली शक्ति को दबा दिया और फिर डचों और ब्रिटिशों के मध्य संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप ओरमुज से लेकर बंगाल की खाड़ी तक का क्षेत्र ब्रिटिश के अधिकार में आ गया तथा बंगाल की खाड़ी से लेकर मलक्का तक के क्षेत्र पर डचों का वर्चस्व हो गया। 


पूर्वी तट पर अंग्रेजों ने अपनी पहली फैक्ट्री 1611 में 'मसूलीपट्टम' में स्थापित की, जबकि पश्चिमी तट पर 'सूरत' में 1613 ई. में फैक्ट्री खोली गई जिसके लिए मुग़ल शासक जहाँगीर ने इजाजत दी थी। 


चार्टर कंपनी किसे कहा जाता था? - What is Chartered Company in Hindi

चार्टर कंपनी से तात्पर्य है की ऐसी यूरोपीय कंपनी जिसे किसी क्षेत्र विशेष में व्यापार करने का एकाधिकार उसकी सरकार से प्राप्त होता था। इसके लिए सरकार उस कंपनी को एक चार्टर (अधिकार-पत्र) प्रदान करती थी।


ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भी एक चार्टर कंपनी थी क्योंकि इसे इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ I ने पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया था। इसी कारण भारत में इंलैण्ड की केवल एक ही कंपनी EIC ही व्यापार कर रही थी। 


Joint Stock Company क्या होती थी? - What is Joint Stock Company in Hindi

Joint Stock Company को हम एक प्रकार से आधुनिक कंपनी मान सकते है जिसका गठन व्यापारियों के समूह द्वारा किया जाता था। ये कंपनियां अतिरिक्त संसाधनों को एकत्रित करने के लिए बाजार में शेयर जारी करती थी तथा इन शेयरों को खरीदने वाले निवेशक बन जाते थे और उन्हें भी मुनाफे का हिस्सा मिलता था। इस प्रकार ये कंपनियां अधिक संसाधनों को एकत्रित करने में सफल होती थी साथ ही इनका प्रबंधन भी अधिक professional होता था। 


EIC भी एक Joint Stock Company थी और ये अतिरिक्त संसाधन एकत्रित करने के लिए बाजार में अपने शेयर जारी करती थी। EIC के शेयरधारकों द्वारा इसके प्रबंधकों का चयन किया जाता था जिन्हें "Court of Directors" कहा जाता था। इसमें 18 Directors होते थे, आगे इनकी संख्या बढ़कर 24 कर दी गई थी। 



4. डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी 

डेनमार्क देश की डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1616 ई. में हुई थी और 1620 ई. में भारत के पूर्वी समुद्री तट पर स्थित त्रांकेबार में इन्होंने अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की। 



5. फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी 

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1664 ई. में की गई थी। यह एक सरकारी कंपनी थी जिसकी स्थापना ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और डच ईस्ट इंडिया कंपनी से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए की गई थी। ब्रिटेन और फ्रांस ये दोनों प्रतिद्वंदी शक्तियां थी और दोनों के बीच प्रतिद्वंदता यूरोप से लेकर अमेरिका और भारत तक हो रही थी। फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना भले ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से काफी बाद हुआ था लेकिन फ्रांसीसी कंपनी ने ब्रिटिश कंपनी को कड़ी टक्कर दी थी। 


ब्रिटिश और फ्रांसीसी कंपनी के मध्य दक्षिण भारत के व्यापार पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए कई युद्ध हुए -



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