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आमोर - Aamor Hindi Story

आमोर - Aamor Hindi Story



"कालिख मन में लगी हो या फिर कपड़ों पर, हम को ही मैला करती हैं"। अंधकार (पाप) फैलाने वाला हमेशा उसी के बिछाए जाल में फँसकर अपने अंत का इतिहास लिखता हैं। वह कितना भी ताकतवर और बलवान हो जाए पर वह कभी भी महान नहीं कहलाएगा। 



पाप सबल पक्ष का हो या निर्बल पक्ष का, करने वाला पापी ही कहलायेगा। यह सत्य हैं और जब तक सृष्टि  का एक भी अंश इस ब्रह्माण्ड में मौजूद रहेगा तब तक सत्य ही रहेगा। जब-जब दुनिया में बुरी शक्ति उत्पन्न होती हैं तो उसी के साथ एक अच्छी शक्ति भी जन्म लेती हैं और इस बात को हम उल्टा करके भी देख सकते हैं। 
जब एक युग का अंत हो चूका था और फिर तभी उसका नवनिर्माण भी हुआ था।






 "गिरमिस" राज्य का राजा "चांडीमल" जो बुद्धिमान होने के साथ-साथ एक शक्तिशाली साम्राज्य का शासक भी था। पुरे महाद्वीप पर उसका शासन था परन्तु दुःख की बात, की उनके कोई भी संतान पैदा नहीं हुई थी। चांडीमल और रानी त्रिफला हमेशा इस गहरी परेशानी में रहते थे। एक ही चिंता थी की इतने विशाल साम्राज्य का रखवाला कौन होगा? उन दोनों ने दान-पुण्य के सभी यत्न कर लिए थे परन्तु उसका कोई फायदा नहीं हुआ। साम्राज्य का श्रेष्ठ पर्वत शिखर "मार्श" जिस पर सत्य बाबा "हनुमान" रहते थे। उन्हें आलौकिक शक्तियाँ प्राप्त थी वे भविष्य में होने वाली घटनाओं का  आभास कर लेते थे। सारे प्रयत्न करने के बाद राजा चांडीमल ने बाबा को राजमहल आने के लिए आग्रह किया। बाबा ने राजा से मना नहीं किया और आने के लिए राजी हो गए। 




बाबा हनुमान के कदमों को राजमहल की चौखट ने छूते ही शीतलता का आभास कराया। जोर-शोर से उनका स्वागत किया गया फिर भी बाबा के चेहरे पर ख़ुशी की झलक नहीं थी। बाबा के चेहरे पर मायूसी देख राजा से रहा नहीं गया और बोले, "बाबा आपके स्वागत में कोई कमी रह गयी हैं या हमसे कोई भूल हो गई हैं"!  बाबा ने आवेश में आकर कहा, "तुमसे गलती नहीं महागलती हुई हैं"। जिसका एक कदम ही अंत हैं, अंत।  चांडीमल के पैरों के तले जमीन खिसकने लगी! फिर भी हिम्मत कर के पूछा, वह क्या हैं बाबा? वो तुम्हे कुछ समय के बाद बताऊंगा, पहले तुमने जिस काम के लिए मुझे बुलाया हैं उसे पूरा करो। बाबा ने  रानी त्रिफला को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और बोले, "यह बालक अमावस्या की रात्रि को पैदा होगा और उस वक्त मेरा यहां होना अति आवश्यक हैं"। क्यों इतना कष्ट उठाते हो बाबा? - राजा ने कहा। नहीं बालक! मैं तुम्हे बिना बताये भी यहां आऊंगा इसके लिए मुझसे मना नहीं की जाये। जो आज्ञा बाबा!  अब उस बात को बताइये - राजा ने कहा। उस बात को तो मैं बताऊंगा अवश्य परन्तु सुनकर तुम कमजोर हो जाओगे। 





कई वर्ष पहले तुम्हारे दरबार में एक प्रसिद्ध नृत्यकार "आमोर" रहता था। वह शास्त्रीय नृत्य के लिए विख्यात था, उसकी पत्नी "नेमा" जिसकी सुंदरता अद्वितीय थी, वह भी एक निपुण नृत्यांगना थी। नेमा को जो एक बार देख लेता उसका दीवाना हो जाता। सारे दरबारी, सैनिक नेमा को भस्म कर देनी वाली नजरों से देखते थे। वे उसे अपनी प्रेयसी बनाना चाहते थे! किन्तु किसी को भी राजा के सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी। असल बात तो ये हैं की खुद तुम्हारे पिता "राजा शिरोमणि" भी उसे बहुत काम भावना से देखते थे। राजा शिरोमणि ने भरी सभा में नेमा को अपनी प्रेमिका बनने का प्रस्ताव रखा! परंतु अपने पति के प्रेम की कुर्बानी ना देकर राजा से इनकार कर दिया और इस बात से राजा क्रोधित हो गए और भरे दरबार में आमोर की नजरों के सामने नेमा की गर्दन को धड़ से अलग कर दिया। इस सदमे को आमोर सहन नहीं कर पाया और अपनी पत्नी के वियोग में वही अपने प्राण त्याग दिए। परन्तु! परन्तु क्या बाबा? मरने से पहले आमोर ने ईश्वर की सौगंध लेकर पूरे वंश को और इस राजमहल को तबाह करने का श्राप दिया। उस वक्त तुम बहुत छोटे थे। 





बाबा इसका हमसे क्या ताल्लुक हैं? ताल्लुक हैं! ताल्लुक हैं, तुम्हारे पिता जी उस श्राप को भूल गए और चल बसे! परन्तु अब वह आमोर वापिस आएगा, अपनी सौगंध पूरी करने और तुम्हारे साम्राज्य का पतन करने के लिए। बाबा इसका कोई उपाय नहीं हैं क्या? - राजा ने डरते हुए पूछा। नहीं, कोई उपाय नहीं हैं, हाँ एक बात जरूर हैं उसने मरते वक्त ईश्वर की सौगंध खायी थी, यही उसकी कमजोरी बन  सकती हैं। नौ माह बाद अमावस्या की रात मेरा  इन्तजार करना क्योकि बच्चे का नामकरण और इसकी हिफाजत करना मेरा  कर्तव्य हैं। 





इस तरह वक्त व्यतीत होता गया और राजा चांडीमल बाबा द्वारा कही बात को पुत्र प्राप्ति की ख़ुशी में भूल चूका था। अमावस्या की रात धीरे-धीरे  दस्तक देने लगी। महल में बच्चे के आने की ख़ुशी की तैयारियाँ होने लगी, चारों और ख़ुशी का मौसम था पर बाबा को सब याद था। पीड़ा शुरू होने से पहले ही बाबा भेष बदल कर राजमहल में प्रवेश कर गए। अमावस्या की रात घोर काली और डरावनी होती जा रही थी चारों और सन्नाटा पसरा हुआ था। सियार और कुत्तों की जोर-जोर से रोने की आवाज आ रही थी, एक अजीब से भय के साथ अब पतन प्रारंभ होने लगा। बच्चे के जनम के साथ ही उसकी माता की मृत्यु हो गई और इस दृश्य को देखते ही ख़ुशी के लिए खुली आँखें खुली की खुली रह गई! और राजा चांडीमल भी भगवान को प्यारा हो गया। अब बच्चे को संभालने वाला कोई नहीं था। जिसने भी यह दृश्य देखा या सुना स्तब्ध हो गया। मौका देखते ही अपनी सिद्धि शक्तियों से बच्चे को राजमहल से बाहर निकालने में बाबा हनुमान कामयाब हो गए और राजमहल से निकलते हुए जैसे ही 10 कदम बाहर रखे एक तेज रौशनी सी उत्पन्न हुई और पूरा का पूरा महल सैनिक, दरबारियों, दास-दासियों सहित पल भर में ढेर हो गया। पल भर के लिए तो बाबा भी सहम गए परन्तु अपनी सिद्धि शक्तियों के द्वारा उस प्रलय से स्वंय और उस बालक को दूर रख कर, बिना देर किए अपने स्थान पर पहुंचे जहाँ सिद्धि शक्तियों का पहरा था। 






बुरी शक्ति या आत्मा वहा अपने पैर नहीं जमा सकती थी। अब सब कुछ बदलने वाला था। बच्चे के लालन-पालन में बाबा की धर्म पत्नी "अनामिका" ने सहयोग दिया। राजवंश का अंतिम चिराग वह बालक ही था। इन सब का कारण  यह भी हैं की आमोर ने सारे साम्राज्य और कुल को समाप्त करने की सौगंध खाई थी। यदि वह इस बालक को भी मारने में कामयाब हो जाता हैं तो आमोर अपनी सौगंध को पूरा कर अजय हो जायेगा और फिर उस बुरी आत्मा को रोक पाना मुश्किल हो जायेगा। बाबा को बालक की चिंता सताए रहती थी  की वह कहीं इस बालक को यहाँ से ले ना जाए नहीं तो उसके मरते ही हम और यह प्रान्त सब कुछ नष्ट हो जायेगा। 








बाबा हनुमान ने बालक का  एक ओजसवशाली नाम रखा "बलराम" जिससे वह उस आत्मा के संपर्क से दूर रहे। उधर दूसरी ओर आमोर की बुरी आत्मा ने तबाही मचा रखी थी। वह सब तरह से जीव-जंतु, मनुष्य, पक्षी, पेड़-पौधों, झील-तालाबों सब को नष्ट कर रहा था। जो लोग मंदिर के अलावा कहीं भी थे उन सब का खात्मा हो चूका था। 





बाबा अपने यान से प्रान्त के भीतर पहुंचे और लोगों को मंदिर में ही रहने के लिए कहा। आमोर ने सब भवनों को ढहा दिया केवल मंदिर के अलावा। वह अपना सारा  गुस्सा निकाल रहा था। वह इतना करने के बाद और शक्तिशाली होता जा रहा था। पूरा प्रान्त आग की लपटों में घिरा हुआ था, सब जगह हड्डियाँ और खंडर ही दिखाई दे रहे थे। बाबा ने उससे सामना करना चाहा और उससे पूछा, तुम  चाहते क्या हो और यह तबाही क्यों मचा रखी हैं जबकि तुम अपनी सौगंध पूरी कर चुके हो? नहीं...... तबाही, तबाही और कुछ नहीं! मुझे इस बालक को सौंप दो वरना कुछ भी नहीं बचेगा। अब बचा  ही क्या हैं जिसको तुम नष्ट करोगे?  और हाँ एक बात और बता दूँ तुम उस बालक का बाल भी बांका नहीं कर सकते और न ही मेरा! क्योकि उस बालक की जान को मैंने अपनी जीभ में समाहित कर लिया है और जब तक मैं नहीं कहूंगा मरने की, तुम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। 






बाबा ने चतुराई से काम लेते हुए बालक को प्रान्त के हनुमान मंदिर में छोड़ दिया और खुद वहां लोगों के बीच बैठ गए और तभी आमोर ने धावा बोल दिया और जैसे ही आमोर मंदिर के भीतर आया तो वह कमजोर हो गया। उसकी कमजोरी का फायदा उठाकर बालक को उसके सामने लाकर आमोर को सिद्धि जंजीरो से बाँध दिया। मंदिर के सभी लोगों को बाबा ने अपने आश्रम में पहुंचाया। बाबा ने बच्चा मंदिर में ही छोड़ दिया और अपने आश्रम में आ गए। सभी लोगों ने बाबा की पागलता का विरोध किया और कहने लगे आपने ये क्या कर दिया अब तो हम वैसे ही मर जायेंगे! नहीं, बाबा ने सब को समझाते हुए कहा, "तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं हैं क्योकि वह उस बालक को तब तक नहीं मार सकता जब तक मैं ना चाहूँ इसलिए वह खुद उस बालक को लेकर मेरे आश्रम में आएगा और आते ही कमजोर हो जायेगा जिससे हम उसकी कमजोरी का फायदा उठाकर उसे नष्ट कर सकेंगे। यह सब सुनकर लोग शांत हुए। 




जैसे ही रात्रि का तीसरा पहर आया वह बुरी आत्मा और भी शक्तिशाली होने लगी। उसने अपनी सारी बुरी शक्तियों को इकट्ठा किया तथा उस बच्चे को मंदिर से लेकर निकलने में सफल हुआ। उसने बच्चे को देखा और अपनी विजय पर जोर-जोर से हा, हा करने लगा और कहने लगा बुड्ढे तूने क्या समझा इस बच्चे को मेरे हवाले कर तू बच जाएगा ? नहीं, मैं तुझे भी नहीं छोडूंगा। लेकिन वह इस बात को भूल चूका था की वह इस बालक को नहीं मर सकता था। उसने लाख कोशिश की लेकिन वह बच्चे का बाल भी बांका नहीं कर सका। इस बात से आमोर आग-बबूला हो गया और बच्चे को उठाकर बाबा के आश्रम की और चल पड़ा। वह यह भूल चूका था की चौथा पहर आते  ही मेरी शक्तियाँ कमजोर हो जाएगी क्योकि "संसार में जितनी भी बुरी शक्तियाँ होती हैं वे तीसरे पहर में सबसे ज्यादा शक्तिशाली होती हैं"। वह अपनी शक्ति के तूफ़ान से आश्रम में प्रवेश कर गया। वह जहाँ भी जाता था डर और सन्नाटे के अलावा कुछ भी नहीं होता था। बाबा हनुमान अब जानते थे की आमोर का अंत समय अब निकट हैं इसलिए वह इतना अधिक शक्तिशाली हो गया हैं। उसे अब आश्रम में प्रवेश करने से रोक पाना मुश्किल था। 







तीसरा पहर समाप्त होने को था। वह बाबा को ढूंढ़ने लगा और वहां तबाही मचाने लगा जैसे ही तीसरा पहर समाप्त हुआ बाबा मंत्र जड़ित तलवार लेकर आमोर के सामने आ गए क्योकि उस तलवार के प्रहार से ही उसे मारा जा सकता था। 







अब भी वक्त हैं बुड्ढे इस बालक को मार दो नहीं तो तुम्हे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। कीमत तो चूका दी हैं पर अब तुम्हारा अंत निकट हैं तुम्हे मुझसे युद्ध करना पड़ेगा क्योकि मुझे मारे बिना तुम इस बालक को नहीं मर सकते। अब सभी सीमाएं समाप्त हो चुकी थी, दोनों में युद्ध होने लगा। आसमां भी इस युद्ध को दखने के लिए उमड़ पड़ा, बिजली कड़कने लगी, सत्य और पाप के मध्य युद्ध हो रहा था। दोनों  का एक-एक प्रहार इतिहास लिख रहा था। आमोर का लड़ना स्वाभाविक था क्योकि अगर वह हारा तो उसे मुक्ति नहीं मिलेगी और वह भटकता रहेगा। आमोर का एक-एक प्रहार बाबा को सोचने को मजबूर कर रहा था की बदले के लिए आतम कितनी शक्तिशाली हो जाती हैं। "लेकिन यह सत्य हैं और पत्थर की लकीर हैं की अंत में सत्य की ही विजय होती हैं"। दोनों को लड़ते-लड़ते तीन दिन बीत चुके थे। अब युद्ध उस घड़ी के निकट था की उसी समय बाबा को, आमोर को समाप्त करना था क्योकि थोड़ी सी भूल भी उसे मुक्ति से वंचित कर सकती थी। अपना अंतिम प्रहार करते हुए बाबा ने आमोर का सिर धड़ से अलग कर दिया और इसका फायदा उठाते हुए बाबा ने उसके शरीर को मंत्र विधि से  जला दिया, मगर आमोर का तड़पता सिर अभी भी कुछ बोल रहा था। वह अब भी बदले की भावना में था, तुमने मुझे मुक्ति देकर मेरे लक्ष्य से वंचित रखा हैं इसलिए मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण  नहीं हो पाई और सत्य जीत गया। मैं, फिर से वापिस लौट कर आऊंगा दुवारा तभी का मंजर लेकर इतना कहकर वह भी राख के ढेर में तब्दील हो गया। 






अब जितने भी नगरवासी थे जो जीवित बचे थे बाबा ने उनका निवास आश्रम में बना दिया। बाबा ने उन्हें एक ही शिक्षा दी  "कभी भी किसी भी चीज की कामना या लालसा नहीं करनी चाहिए नहीं तो वह  तुम्हारे विनाश का कारण बनेगी"। 




लेखक: अशोक कुमार मच्या 


-: समाप्त :- 






 














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