रामकृष्णा और माँ काली का आशीर्वाद
कई वर्ष पहले, एक गांव में एक बालक रहता था, जिसका नाम रामकृष्णा था। वह बहुत शरारती था किंतु कुशाग्र बुद्धि भी, उसकी वाकपटुता का तो कोई जवाब ही नहीं था। नटखट तो इतना था कि कोई भी उसकी शरारतों से बच नहीं पाता था।
एक दिन रामकृष्णा की भेंट गांव की एक ज्ञानी संत से हुई। संत ने उन्हें एक मंत्र देते हुए कहा, "पुत्र! गांव के काली मंदिर में जाकर इस मंत्र का 1 लाख बार जाप करो। इससे काली माता प्रसन्न हो जाएगी और तुम्हें दर्शन देकर वरदान प्रदान करेगी"। रामकृष्णा तुरंत काली मंदिर गए और वहाँ संत द्वारा दिए गए मंत्र का जाप करने लगे। जैसे ही 1 लाख जाप पूरे हुए काली माता अपने 100 मुखों के भयंकर स्वरूप में उनके समक्ष प्रकट हुई।
काली माता का भयंकर स्वरूप देखकर कोई भी सामान्य बालक भयभीत हो जाता है। किंतु रामकृष्णा भयभीत होने की जगह ज़ोर-जोर से हंसने लगा। जब काली माता ने हंसने का कारण पूछा तो वे बोले, "माता, मेरी तो केवल एक ही नाक है और जब मुझे जुकाम हो जाता है, तो मैं तो परेशान हो जाता हूँ लेकिन आपके तो 100 मुख होने के कारण 100 नाक है और हाथ केवल दो, मैं सोच रहा हूँ ऐसा में आप क्या करती होगी? रामकृष्णा की हंसमुख स्वभाव और बाल सुलभ बातें सुनकर काली माता हंस पड़ीं और बोलीं, "पुत्र मैं तुम्हें वरदान देती हूँ कि भविष्य में तुम विकट कवि के रूप में प्रसिद्ध होगे और तुम्हारी बातें हर किसी का मनोरंजन करेगी।
"वो तो ठीक है माता, लेकिन इस लिए मुझे क्या प्राप्त होगा? आप मुझे कोई और वरदान दीजिये" रामकृष्णा बोले। तब काली माता हाथ में दो कटोरी लेकर रामकृष्णा से बोली, "पुत्र! इन दो कटोरों में से एक में ज्ञान है और दूसरे में धन मैं तुम्हें दोनों में से किसी एक को चुनने का अवसर प्रदान करती हूँ"।
काली माता की बात सुनकर रामकृष्णा सोचने लगे की जीवन में ज्ञान और धन दोनों ही आवश्यक है। यदि दोनों ही वरदान मिल जाए तो कोई बात है। रामकृष्णा को विचार मग्न देखकर काली माता बोली, "क्या बात है पुत्र? किस कटोरे का चुनाव करना है, यह समझ नहीं आ रहा"? "ऐसी बात नहीं है माता, चुनाव करने से पहले मैं बस एक बार दोनों कटोरे को अपने हाथ में लेकर देखना चाहता हूँ" रामकृष्णा बोला।
काली माता ने जैसे ही दोनों कटोरे रामकृष्णा के हाथ में दिए, उसने झटपट दोनों कटोरों को मुँह से लगाया और गटक गए। इस तरह अपनी बातों में उलझाकर उन्होंने माता से दोनों वरदान प्राप्त कर लिए। "माता! क्षमा करना जीवन में ज्ञान और धन दोनों ही आवश्यक है इसलिए मैंने दोनों ही ले लिए"। जब रामकृष्णा ने भोलेपन से ये बात कही, तो काली माता हंसने लगीं।
"पुत्र! मैं तुम्हे दोनों वरदान देती हूँ। जीवन में तुम कई सफलताएं प्राप्त करोगे, किंतु ध्यान रहें की तुम्हारे मित्र तो होंगे ही, साथ ही शत्रु भी कम न होंगे, इसलिए तुम्हे होशियार रहना होगा, इतना कहकर काली माता अंतर्ध्यान हो गई।
आगे चलकर यही बालक तेनालीराम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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