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दो सिपाही - Two Soldiers Stories in Hindi

 दो सिपाही  - Two Soldiers Stories in Hindi


दो सिपाही - Two Soldiers Stories in Hindi



विभाजन घर का हो या सरहद का बहुत कुछ बदल देता हैं, दिल और दिशा सब बदल जाते हैं, अपने पराये और पराये अपने हो जाते हैं। यही क्रम हैं बंटवारे का। यह कहानी उस वक्त की हैं जब अंग्रेजों ने भारत पर बहुत लम्बे समय तक शासन किया। देश को खूब लुटा, खूब अत्याचार किये साथ ही देश को धर्म की अग्नि में डाल कर छोड़ते - छोड़ते भी, बाँट गए। कैसे खुशहाल दिन थे, कैसा सुन्दर बचपन था जिन्हे अपने - पराये का भेद नहीं था बस अपनी जिंदगी का हर लम्हा खुशी से जीते।  



 एक गंगाराम था जो कि सबका दुलारा था बड़ों की आज्ञा का कभी भी उल्लंघन नहीं करता भले ही कितनी मुसीबत आए नौ वर्ष का बालक अपनी किताबों और यारों से प्यारी लड़ाई लड़ता रहता था शहजाद से तो इतनी लड़ाई लड़ता मानों सब कुछ खत्म हो गया हो पर थोड़ी देर बाद शहजाद से बात नहीं करने पर भावुक भी हो जाता, दोनों एक पल भी दूर रहना पसंद नहीं करते दोनों का प्यार “हवा और साँस” के जैसा था। दोनों ही कक्षा में होशियार थे और हमेशा दोनों का कक्षा में प्रथम स्थान आता था दोनों ही प्रतियोगिता हो या फिर कोई और  सब में साथ भाग लेते और जीतते थे। अपने परिवार से दोनों को एक ही शिक्षा मिली, बड़े होकर तुम्हें देश के लिए जीना है। देश भावना बचपन से ही कूट-कूट कर भरी थी, दोनों सोचते कि जल्दी से बड़े हो जाएं और सेना की वर्दी पहने।




 सूरज की किरण धीमी पड़ने लगी तथा चारों ओर लालिमा बिखेर रही थी अचानक रेत का बवंडर सा उठा, चीत्कार होने लगा यह ना देख सकने वाला दृश्य था। यह बात 1947 की है जब देश का विभाजन हो रहा था। हिंदू - मुस्लिम लड़ाई हो रही थी बदले की आंधी ने देश में आग लगा दी, हर तरफ कोहराम और विनाश घुल रहा था। बस एक ही भावना थी या तुम रहोगे या हम। हर कोई हर किसी को मिटा देना चाहता था। शहजाद उन अकेली गलियों में पागलों की तरह विलख-विलख कर रो रहा था, अब्बा जान, अब्बा जान, अब्बा जान, अम्मी जान, अम्मी जान कभी हे अल्लाह! बोल कर रोने लगता। सूरज की लालिमा का रंग और भी लाल हो गया। सब नाश हो गया, कहने को भी कोई ना था। तभी एक सैनिक गाड़ी आकर रुकी और शहजाद को पकड़ कर उसमे बैठा लिया गंगाराम अपने घर की छत से यह सारा मंजर देख रहा था। गाड़ी जैसे ही गंगाराम के घर के आगे से गुजरी शहजाद ने गंगाराम को आवाज लगाई गंगाराम, गंगाराम। गंगाराम दौडता हुआ छत से नीचे आया शहजाद रुक जाओ, शहजाद भाई तुम मुझे छोड़ कर कहां जा रहे हो गंगाराम गाड़ी के पीछे- पीछे भाग रहा था तभी गाड़ी में बैठे एक सैनिक ने गंगाराम पर गोली चला दी, गंगाराम के आगे उसके पिताजी आ गए जो कि गंगाराम के पीछे- पीछे भाग रहे थे और वह वहीं ढेर हो गए। बहुत ही दर्दनाक मंजर था, दोनों मित्रों की दोस्ती रो रही थी। शहजाद, गंगाराम की आंखों से ओझल हो चुका था, गंगाराम और उसकी मां दोनों लिपट कर रोने लगे मां, पिताजी हमें छोड़ कर चले गए और मेरा मित्र भी मुझसे दूर हो गया मां मैं शहजाद के बिना नहीं रह सकता मुझे शहजाद के पास जाना है, मां की ममता सारा दर्द जानती थी पर अचरज में थी कि गंगाराम ने अपना पिता खोया है फिर भी अपने मित्र के लिए आंसू बहा रहा है और जो  गया वह दोबारा नहीं आ सकता! जिद नहीं करते बेटा अब तुम शहजाद से कभी नहीं मिल सकते मुझे छोड़ कर कहीं मत जाना नहीं तो मैं भी तुम्हें छोड़ कर चली जाऊंगी और फिर कभी वापस नहीं लौटूंगी तुम्हारे पास और फिर तुम अकेले रहना। नहीं मां ऐसा मत बोलो सब मुझे छोड़ कर चले गए तुम भी ऐसी बातें कर रही हो, नहीं मां मैं कहीं नहीं जाऊंगा तुम्हें छोड़कर।






 वक्त अपनी करवट बदलता है और यादों की एक कहानी बन कर रह जाती है। शहजाद लाहौर के मदरसे में शिक्षा ले रहा था वह सब कुछ भूल चुका था, उसके मन में इतनी नफरत पर दी गई कि वह हिंदुस्तान के नाम मात्र से ही आवेश में आ जाता उसे डराया गया उसे बताया गया कि हिंदुस्तान ने तुम्हारा सब कुछ छीन लिया, तुम्हें बर्बाद कर दिया, तुम्हें बदला लेना है और जीत के लिए लड़ना है।






 

 मां के अरमानों को पूरा करने के लिए गंगाराम रात-दिन मेहनत करने लगा क्योंकि मां उसे भारत माता का सपूत बनते हुए देखना चाहती थी। शहजाद को एक सैनिक की भांति लड़ना सिखाया जाने लगा। वही तेरह साल बाद गंगाराम ने अपनी मां का सपना पूरा किया और भारत माता का सपूत बनकर सामने आया। मां, गंगाराम को सैनिक कि वर्दी में देखकर भावुक हो गई और सोचने लगीं काश! आज इसके पिता जीवित होते। पल्ले से अपने आँसु पौछकर उनको छिपाती हुई गंगाराम को छाती से लगाकर गंगाराम का माथा चूम उसे आशीर्वाद दिया और बोली अब तेरी दो माँ हैं, देश की आबरू पर तेरे रहते हुए आंच ना आ पाए भले ही तुम्हें अपने प्राणों की कुर्बानी देनी पड़े। शहजाद एक नेक दिल इंसान न बनकर एक जन संहारक बन चुका था । उसने अपनी क्रूरता को बढ़ाना शुरू कर दिया रोज का कत्लेआम उसका पेशा बन चुका था। कश्मीर की वादियों में डेरा डाले हुए दुश्मन की फिराक में रहता।







 कुछ समय बाद घाटी का हालत बुरे हुए तो गंगाराम को भी कश्मीर की घाटियों में तैनात कर दिया गया। जहां ना चैन था और ना ही सुकून, हर तरफ से मौत का एहसास होता था। पलक झपकते ही जिंदगी दूसरे जहां में होती थी। यह गंगाराम कि जिंदगी का और गंगाराम का कठिन दौर था। डयूटी पूरी होते ही गंगाराम सोने चला गया। घाटियों की सुंदरता जैसे कोई स्वर्ग हो। स्वर्ग में भी चैन ना था साँए-साँए करती हुई ठंडी हवाएं तन को आर पार कर भाले की तरह पड़ रही थी। थोड़ी ही देर बाद गोलियों की आवाज आई गंगाराम ने आंखें खोली और अपनी स्थिति बनाई दोनों तरफ से गोलियां चल रही थी अचानक कोई रोता हुआ गंगाराम के कैंप की तरफ आ रहा था लग रहा था मानो "चांद" जमी पर उतर आया हो। वह लड़की नजदीक पहुँची और बेहोश होकर गिर गई, गंगाराम ने तुरंत उसे संभाला और उसे कैंप में ले गया। वह बुरी तरह से घबराई हुई थी गंगाराम पानी के छींटे देकर उसे होश में लाया, उसकीं आँखें खुलते ही वह गंगाराम के लिपट गई ।"हमें मत मारो, हमें मत मारो, हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है"। अब तुम सुरक्षित हो तुम्हें कुछ नहीं होगा, गंगाराम ने कहा। तुम कौन हो? मैं गंगाराम हूं भारतीय सेना का जवान।  उन्होंने मेरे अब्बा को मार दिया अब हमें भी मार देंगे हमें बचा लो, तुम्हें कोई नहीं मारेगा अब शांत हो जाओ सुबह तक वह लड़की गंगाराम से चिपक कर बैठी रही। सूरज की पहली किरण निकलते ही गंगाराम उसे उसके घर छोड़कर वापस आ गया बिना कुछ कहे। गंगाराम को मानो जिंदगी का कोई नया सपना मिला हो हर वक्त उसे याद करता रहता। गंगाराम में बदलाव आया अब हर रोज गंगाराम उसे देखे बिना चैन नहीं लेता। यह सब एक तरफा प्रेम था, चोरी छिपे गंगाराम उससे मिलने की कोशिश करता पर हिम्मत नहीं जुटा पाता।








गंगाराम ने आतंकवादियों में दहशत फैला रखी थी उनका कोई भी अभियान सफल नहीं होने देता वह चार सोचते तो गंगाराम छ: सोचता। शहजाद को, अपने सारे मंसूबों पर पानी फिरा देखकर, धोखे से उस जवान से मिलने की सूझी। घाटी में रोज कहीं ना कहीं दर्द भरी आवाजें और खून से सनी हुई सफेद चादर आम बात हो चुकी थी। घाटी में रहने वाले लोगों को अपनी जिंदगी के एक पल का भी भरोसा नहीं था ना जाने मौत कब आ जाएं और इस जहां को छोड़ने को मजबूर कर दे। शहजाद दिन में उन गलियों में भेष बदलकर घूमता और देखता की सेना की कहां पर ढिलाई है। शहजाद उस लड़की को पहले से ही जानता था वह उससे प्रेम करता था, दोनों रोज घाटियों में मिला करते थे, साथ ही मौज मस्ती भी किया करते थे उधर गंगाराम ने उसका नाम तक नहीं पूछा। गंगाराम थोड़ा शर्मीले स्वभाव का था। शहजाद अपना भेष बदलकर गंगाराम के पास आया इसके लिए शहजाद को बहुत मेहनत करनी पड़ी बहुत मुश्किल से गंगाराम का पता लगा। बातों ही बातों में शहजाद ने सारी जानकारी हासिल कर ली गंगाराम इन बातों से अनभिज्ञ था कि मेरे साथ क्या हो रहा है। शहजाद को झटका सा लगा पर अब बहुत देर हो चुकी थी दोबारा से यह रिश्ता आगे बढ़े और हम अपने कर्तव्य से अलग हो ऐसा करना गलत होगा। शहजाद उसी वक्त वहां से चला गया, शहजाद खुश भी था तो दूसरी ओर बदले की भावना उसे इन सबसे अलग करती। वह चाहता तो गंगाराम को उसी वक्त मार सकता था परंतु गंगाराम ने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा है यह तो उसका कर्तव्य है।






शहजाद प्यार और नफरत की दीवार के बीच में फस गया और एक तरफ अपने मित्र से मिला प्यार जिसकी कोई सीमा न थी तो दूसरी और बदले की भावना उसे और तेज कर रही थी, गंगाराम के प्यार का पता उसके साथियों को था उन्होंने मजाकिया तौर पर गंगाराम से कहा अबे अब तो उसका नाम पूछ ले और इजहार कर दे नहीं तो वह किसी और की हो जाएगी सब हंसने लगे गंगाराम को बुरा तो लगा पर किसी से कुछ कहा नहीं और वह उसी वक्त उस लड़की के पास गया। चेहरे की हवाइयां उड़ रही थी, गंगाराम ने हिम्मत कर अपनें दिल की सारी कहानी बता दी। युवती पहले तो हंसी पर उसने मना नहीं किया और अपना नाम बताते ही घर की ओर दौड़ी चली आई ।उसका नाम "नरगिस" था। नरगिस ने अपनी सारी बात शहजाद को बता दी। शहजाद को अच्छा तो नहीं लगा पर सोचा मेरा कोई भरोसा नहीं कब इस दुनिया को छोड़ दू , अब वक्त है दोस्त के लिए कुछ करने का उसने अल्लाह से दुआ मांगी।








“कुछ ना कर सके, इस दर्द ए दोस्ती के लिए, अल्लाह रहम करें, हर खुशी मिले दोस्ती जिंदगी के लिए”।
शहजाद ने अभी से नरगिस से दूरी बनाना शुरू कर दिया वह उसकी नजरों से गिर जाना चाहता था। शहजाद ने उससे मिलना छोड़ दिया नरगिस उसकी इन हरकतों को देखकर गंगाराम से नजदीकी बढ़ाने लगी। दोनों धीरे- धीरे प्यार करने लगे, एक होने लगे। 





सब कुछ ठीक था तभी अचानक आतंकवादियों ने चारों तरफ से गोला-बारूद बरसाना शुरू कर दिया गंगाराम और नरगिस एक दूजे में समाए हुए थे, सारा कैंप नष्ट कर दिया गया अंत में खुद को चारों ओर से घिरा देखकर शहजाद ने गंगाराम की जांघ में गोली मारकर उसे घायल कर दिया और तुरंत उसे अपने साथ लेकर सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया।  शहजाद रोने लगा उसने गंगाराम को गले लगाया, गंगाराम सोच में पड़ गया कि यह हो क्या रहा है तब शहजाद ने सारी बात अपने दोस्त को बताई। मेरे भाई मैं तो इस गलत काम का सिपाही बना हूं मैं मजबूर था इसके अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था मैं एक आतंकवादी हूं और तुम एक सच्चे देश भक्त। मुझे आज नहीं तो कल मरना है, मेरे आगे-पीछे कोई नहीं है, पर तुम्हें अपनी मां के लिए और जिंदगी जीनी है। मैं जा रहा हूं अपनी दुनिया में वापिस, मेरे भाई। तभी अचानक गंगाराम ने अपनी छोटी पिस्तौल निकाली और शहजाद पर तान दी।










तुम एक कट्टर बन चुके हो और आगे भी नहीं सुधरोगे तुम्हें कोई जिंदा पकड़े और तुम पर अत्याचार करें इससे अच्छा मैं तुम्हें मार दूं, पर तुम्हें इतनी बड़ी कुर्बानी मेरे लिए क्यों दी?  हां मेरे भाई, मुझे मार दो नहीं तो बहुत देर हो जाएगी, अलविदा मेरे मित्र और सारी गोलियां शहजाद के सीने में उतार दी गई। अल्लाह रहम करें।

शहजाद ने जो किया एक आतंकवादी होकर शायद ही कोई कर सकता है। गंगाराम ने भी अपना कर्तव्य पूरा किया और शहजाद उसकी नजरों में हमेशा- हमेशा के लिए अमर हो गया।


लेखक: अशोक कुमार मच्या 

                      -: समाप्त :-





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