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राजव्यवस्था से सम्बंधित महत्वपूर्ण शब्दावलियां | Polity Important Terminology In Hindi

 
Polity Important Terminology In Hindi
Polity Important Terminology In Hindi


    पंथनिरपेक्षता (Secularism)

    पंथनिरपेक्षता लैटिन भाषा के "सेक्युलम" शब्द से बना हैं, जिसका अर्थ होता हैं - 'इहलोक से संबंधित'।

    इस विचार का आग्रह हैं की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था को संस्थागत धार्मिक प्रभुत्व से मुक्त होना चाहिए। हालाँकि यह अनिवार्यतः व्यक्ति के जीवन से धर्म को ख़ारिज नहीं करता लेकिन नैतिक मूल्यों और सामाजिक व्यवहारों में धार्मिक रूप से तटस्थ होने की अपेक्षा करता है। 

    मध्यकालीन यूरोप के धार्मिक जकड़न की प्रतिक्रिया में इस विचार का  जन्म हुआ। 1851 में "जॉर्ज हेलिओक" और "चार्ल्स ब्रैडलॉफ" ने एक सिद्धांत के रूप में इसे प्रस्तुत किया। 



    सहिष्णुता (Tolerance)

    सहिष्णुता का शाब्दिक अर्थ हैं - सहन करना। 

    यानी अपने से भिन्न आदतों, विरोधी विचारों, अलग धर्म व राष्ट्रीयता आदि के प्रति भी एक वस्तुनिष्ठ और न्यायोचित मनोवृति बनाए रखना। यह मूल्य व्यक्ति को आक्रामक व्यवहार से रोकता हैं। शांतिपूर्ण समाज के अस्तित्व के लिए सहिष्णुता अपरिहार्य हैं। 



    स्वतंत्रता (Liberty)

    स्वतंत्रता का आशय एक ऐसे परिवेश से हैं, जहाँ किसी व्यक्ति को अपनी भौतिक और नैतिक उन्नति करने का पूर्ण अवसर मिलता हैं। अतः स्वतंत्रता को व्यक्तित्व विकास का अवसर माना जाता हैं। हर समाज स्वतंत्रता के बुनियादी अधिकार को कायम रखने के लिए कुछ नियम बनाता हैं, ताकि एक व्यक्ति का जीवन दूसरे व्यक्ति के अनुचित हस्तक्षेप से सुरक्षित रहे। 



    समानता (Equality)

    समानता का अर्थ हैं की किसी समाज में जो अधिकार किसी व्यक्ति को प्राप्त हैं, वहीं सभी व्यक्तियों को भी मिले अर्थात विशेषाधिकार से मुक्त परिवेश जहाँ सभी व्यक्तियों के साथ सामान व्यवहार किया जाये और उन्हें अपने विकास के समान अवसर प्राप्त हो। समानता का अर्थ सिर्फ सैद्धांतिक बराबरी ही नहीं हैं बल्कि उसकी प्राप्ति के लिए प्रयास करना भी हैं। 



    लोकतंत्र (Democracy)  

    लोकतंत्र का तात्पर्य एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था से हैं जहाँ शासन का अधिकतर हिस्सा जनता का हो, राजनीतिक निर्णय में जनमत की भूमिका हो और सरकार सामान्य हित में कार्य करती हो, नियमित चुनाव हो और प्रतिनिधि सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी हो। लोकतंत्र के बहुलवादी स्वरूप को आजकल अच्छा माना जाता हैं। इसका अर्थ हैं की राज्य की शक्तियाँ एक जगह केंद्रित न होकर विभिन्न इकाइयों में बँटी रहे। 



    समाजवाद (Socialism)

    यह एक राजनीतिक-आर्थिक विचार हैं, जो सामाजिक समानता पर बल देता हैं। इसका मानना हैं की उत्पादन के साधनों और उसके वितरण पर राज्य का अधिकार होना चाहिए, ताकि समतामूलक समाज निर्मित हो सके। इसमें निजी पूंजी की धारणा को स्वीकार नहीं किया जाता। यह विचार पूंजीवाद का विरोध करता हैं। समाजवाद की विभिन्न धाराएँ हैं जिनमें मार्क्सवाद जैसी कठोर तो फेबियनवाद जैसी लचीली व्यवस्थाएँ शामिल हैं। 



    उदारवाद (Liberalism)

    मध्यकालीन यूरोप की धार्मिक जड़ता के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में इस विचार का उदय हुआ। पुनर्जागरण एवं धर्मसुधार आंदोलन के साथ इस विचार का विकास हुआ। यह विचार व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक समानता और उत्तरदायी सरकार का हिमायती हैं। उदारवादी विचार ही आर्थिक क्षेत्र में पूंजीवाद और राजनीतिक क्षेत्र में लोकतंत्र के रूप में मूर्त हुआ। 


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    संघवाद (Federalism)

    संघवाद शब्द लैटिन भाषा के "फोइडस " (Foedus) से बना है, जिसका अर्थ समझौता या अनुबंध होता हैं। इस शब्द का विशिष्ट प्रयोग एक ऐसी शासन व्यवस्था को इंगित करने के लिए किया जाता हैं, जहाँ कम से कम दो स्तरों पर सरकार होती हैं। इन सरकारों के बीच दायित्व बँटे रहते हैं। 

    भारतीय संघीय व्यवस्था में केंद्र और राज्य के बीच ऐसा विभाजन हैं।


    फेबियनवाद (Fabianism) 

    यह विचार इंग्लैंड में उत्पन्न हुआ था इसका उद्देश्य लोकतांत्रिक तरीके से समाजवाद की स्थापना करना हैं। यह विचार समाज क्रमिक सुधार का पक्षधर हैं तथा हिंसक क्रांति का विरोध करता हैं। इस विचार का मानना हैं की संवैधानिक व लोकतांत्रिक तरीकों को अपनाकर  पूंजीवाद  को समाप्त किया जा सकता हैं। 

    जॉर्ज बर्नार्ड शॉ और ग्राहम वेलेस प्रमुख फेबियनवादी विचारक थे।  


    बहुलतावाद (Pluralism)

    यह एक ही समाज में अलग-अलग विचार और विश्वास वाले समूह के सह-अस्तित्व को दर्शाता हैं। यह लोकतंत्र के लिए विविधता के सम्मान को जरुरी मानता हैं। यह एक साझी सभ्यता के अंतर्गत अपनी पहचान को बनाए रखने का पक्षधर हैं। अक्सर विविधता सामाजिक तनाव को बढ़ाता हैं, इसलिए बहुलतावाद इन अंतरों को आपस में जोड़े रखने का हिमायती हैं। इससे विविधता का एक साझा उद्देश्य निर्मित हो जाता हैं। 



    एकात्म मानववाद (Integral humanism)

    एकात्म मानववाद का विचार मानव जीवन को एकीकृत और समन्वित दृष्टि से देखने का पक्षधर हैं। इसके  अनुसार  किसी एक ही पक्ष पर अतिरेक बल देने की बजाय विभिन्न पक्षों के संश्लेषण से निर्मित जीवन दृष्टि अपनानी चाहिए। इस प्रकार यह व्यक्ति-समाज, मानव-प्रकृति, भौतिकता-आध्यमिकता, परंपरा-नवीनता तथा स्वदेशी-विदेशी के परस्पर समन्वय की बात करता हैं। 

    पंडित दीनदयाल उपाध्याय को इस विचार का प्रवर्तक माना जाता हैं। 


    समतावाद (Egalitarianism)

    यह समानता पर आधारित एक सिद्धांत हैं जो यह मानता हैं की जीवन के किसी भी क्षेत्र में दो व्यक्तियों के बीच अधिकार और अवसर की भिन्नता न हो। यह सभी मनुष्यों के समान मूल्य और नैतिक स्थिति की संकल्पना पर बल देता हैं। इस विचार का मानना हैं की जिस समाज में मनुष्य का एक वर्ग अभाव में जी रहा हो वहाँ संपन्न लोगों को असीमित सुख अर्जित करने की असीम स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए। वस्तुतः यह स्वतंत्रता व समानता में समन्वय स्थापित करने का हिमायती हैं। 



    बहुसंस्कृतिवाद (Multiculturalism)

    इसका तात्पर्य एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था से हैं, जहाँ अलग-अलग संस्कृतियों का सहअस्तित्व पाया जाता  हैं। इस प्रकार  यह भाषा, नस्ल, आचार-विचार आदि की विविधता को स्वीकार करता हैं। यह विचार संस्कृतियों के बीच बेहतर और कमतर की श्रेणी नहीं बनाता तथा सबको समान सांस्कृतिक वैविध्य वाले देश भारत के लिए  यह एक जरुरी विचार  हैं ताकि सभी स्वतंत्र रूप से अपना विकास कर सके। 



    अराजकतावाद (Anarchism)

    यह ग्रीक शब्द "Anarchos" से व्युत्पन्न हुआ हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ हैं - प्राधिकार रहित। 

    अराजकतावाद किसी भी प्रकार के शासन को हानिकारक और अवांछनीय मानता हैं। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सर्वोच्च महत्व देता हैं तथा राज्य विहीन समाज को आदर्श मनाता है। आमतौर पर जो लोग 'व्यवस्था' में भरोसा नहीं करते, उन्हें अराजकतावादी कह दिया जाता हैं। 

    फ्रांसीसी चिंतक जोसेफ प्रूधों इसके आरंभिक चिंतकों में रहे हैं। महात्मा गांधी भी राज्य विहीन समाज को आदर्श मानते थे। 



    कूटनीति (Diplomacy)

    किसी देश की विदेश नीति को व्यवहारिक बनाने वाली नीति ही कूटनीति कहलाती है, अर्थात कूटनीति वह राजनीतिक प्रक्रिया हैं जिसमें संवादों के माध्यम से दो राष्ट्रों के मध्य पारस्परिक संबंधों की स्थापना एवं उन्हें मधुर बनाने का प्रयास किया जाता है। कूटनीति का सार तत्व वस्तुतः यथार्थवाद एवं आदर्शवाद के मध्य समन्वय स्थापित करना हैं। 



    इन्हें भी देखें:

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