धर्मसुधार एवं प्रति धर्मसुधार आंदोलन - Reformation and Counter Reformation Movement In Hindi
पृष्ठभूमि - Reformation and Counter Reformation Movement In Hindi
पुनर्जागरण से पूर्व यूरोपीय समाज चर्च के बंधनों में जकड़ा हुआ था। ईसाई चर्च का संगठित तंत्र रोम से संचालित होता था। चर्च के पादरियों को असीमित विशेषाधिकार प्राप्त थे और इन विशेषाधिकारों का न तो जनता और न ही राजा विरोध कर सकते थे। परंतु पुनर्जागरण से यूरोप में सामंतवाद और उससे जुड़ी आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा बौद्धिक मान्यताएँ टूटने लगी थी। टाइप मशीन और छापेखाने के आविष्कार से क्षेत्रीय भाषाओं तथा लेखकों को प्रोत्साहन मिला और अब "सत्य सत्ता की नहीं वरन, समय की पुत्री हो गई"। बौद्धिक चेतना से उत्पन्न एक नई चिंतन-धारा ने मजहबी अंधविश्वासो और कुप्रथाओं की जड़ को झकझोर दिया। वाणिज्य-व्यापर के प्रसार, मध्य वर्ग के उदय, तर्कवाद आदि सभी ने चर्च और ईसाईयत में सुधारवादी परिवर्तन आवश्यक कर दिए।
धर्मसुधार आंदोलन का अर्थ - Reformation Movement Meaning In Hindi
धर्मसुधार आंदोलन के कारण
- पुनर्जागरण का प्रभाव
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
- चर्च के भीतर व्याप्त बुराइयाँ
- मध्य वर्ग की महत्वकांक्षा
- पोप का राजनीति में हस्तक्षेप
तात्कालिक कारण
धर्मसुधार आंदोलन की शुरुआत क्षमापत्रों(Apology Letters) की बिक्री का मार्टिन लूथर द्वारा विरोध करने से मानी जाती हैं। पोप लियो 10th ने क्षमापत्र बनवाये जिन्हे खरीद कर कोई भी ईसाई पापों से मुक्ति पा सकता था। इन्हे खरीदने वालो को बिना पश्चाताप (Confession) के पाप से मुक्ति की गारंटी दी जाती थी। 1517 ई. में जब मार्टिन लूथर ने जर्मनी में पादरी टेटजेल को इन पत्रों की बिक्री करते देखा तो इसका भारी विरोध किया। पोप ने लूथर को पंथ बहिष्कृत कर दिया। इस घटना से ही रोमन कैथोलिक पंथ के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ हो गया।
धर्मसुधार आंदोलन के परिणाम
- ईसाई मजहब का विभाजन - कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट
- प्रतिधर्मसुधार आंदोलन की शुरुआत
- मजहबी गृह युद्धों की शुरुआत
- राष्ट्रीयता की भावना का विकास
- शिक्षा का प्रचार-प्रसार
- साहित्य एवं भाषा के क्षेत्र में विकास
- आर्थिक विकास और पूंजीवादी प्रवत्ति को प्रोत्साहन
प्रमुख सुधारक
प्रतिधर्मसुधार आंदोलन - Counter Reformation Movement In Hindi
मार्टिन लूथर के विद्रोह करने से कैथोलिक चर्च के लिए बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई। जब यूरोप में एक के बाद एक प्रोटेस्टेंट राज्य बनते जा रहे थे तो कैथोलिक चर्च को बचाने व प्रोटेस्टेंट आंदोलन को रोकने के लिए कुछ सुधारात्मक उपाय किए गए, ये सुधारात्मक उपाय धर्मसुधार आंदोलन की प्रतिक्रिया स्वरूप ही शुरू किए गए थे इसलिए इसे प्रतिधर्मसुधार आंदोलन (Counter Reformation Movement) कहा गया।
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