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एक राष्ट्र, एक चुनाव: One Nation, One Election - To The Point


One Nation, One Election in Hindi


एक राष्ट्र, एक चुनाव - One Nation, One Election in Hindi

हाल ही में भारत सरकार ने एक साथ चुनाव (एक राष्ट्र, एक चुनाव) की संभावना तलाशने के लिए भूतपूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में 8 सदस्यीय समिति का गठन किया है। 


यह समिति लोकसभा, राज्यविधानसभा, नगरपालिका और पंचायत के "एक साथ चुनाव" कराने की संभावनाओं पर विचार करेगी और इस बारे में सिफारिशें देंगी। 



एक साथ चुनाव का इतिहास 

  • स्वतंत्रता के बाद पहले 4 चुनाव (1952 से 1967 तक) एक साथ हुए थे। 

  • संविधान में यह प्रावधान है की लोकसभा और विधानसभाओं का विघटन 5 वर्ष से पहले भी किया जा सकता है। यही कारण है की समय के साथ राज्यविधानसभाएं और लोकसभा अपनी पूरी अवधि से पहले ही विघटित होती गई तथा एक साथ चुनाव की परंपरा भी खत्म हो गई। 



एक राष्ट्र, एक चुनाव की आवश्यकता क्यों?

  1. इससे अलग-अलग चुनावों पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। 
  2. एक साथ चुनाव होने से आदर्श आचार संहिता को बार-बार लागू करने की जरुरत नहीं पड़ेगी, जिससे नीतिगत ठहराव को दूर करने में मदद मिलेगी। 
  3. इससे चुनाव में उपयोग की जाने वाली प्रशासनिक मशीनरी पर पड़ने वाले बोझ को कम करने में मदद मिलेगी। 


एक साथ चुनाव में क्या कठिनाइयां हैं?

एक साथ चुनाव में निम्नलिखित व्यवहारिक कठिनाइयां हैं -

  • इसके लिए राजनीतिक दलों में आपसी सहमति मुश्किल होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्षेत्रीय दलों को यह लग सकता है की इससे राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत स्थिति वाले दलों को अधिक लाभ मिलेगा। 


  • एक साथ चुनाव कराने के लिए लगभग दोगुनी संख्या में EVMs (Electronic Voting Machines) और VVPATs (Voter-verified paper audit trail) मशीनों की आवश्यकता होगी। इससे Logistics और Warehousing से जुड़ी समस्याएँ पैदा हो सकती है। 


  • इसके लिए अविश्वास प्रस्ताव सहित चुनाव, उप-चुनाव आदि से सम्बंधित संविधान के कई प्रावधानों (जैसे - अनुच्छेद 83, 85, 172 और 356) में संशोधन करना पड़ेगा। इसके साथ ही इनमें से कई संशोधनों के लिए कम-से-कम 50% राज्यों के विधानमंडलों से अनुसमर्थन की भी आवश्यकता होगी। 



एक साथ चुनाव से जुडी मुख्य सिफारिशें 

  • इससे पूर्व, चुनाव आयोग (1983) और विधि आयोग (1999) ने लोकसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी। 


  • विधि आयोग ने उचित संशोधनों के जरिए "अविश्वास प्रस्ताव" को "रचनात्मक अविश्वास मत (Constructive vote for no-confidence)" से बदलने की सिफारिश की थी। इससे यह सुनिश्चित होगा की सरकार को उसके कार्यकाल की समाप्ति से पहले तभी गिराया जा सकता है, जब वैकल्पिक सरकार को सदन का विश्वास मत प्राप्त हो। 



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