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भारतीय राजव्यवस्था और संविधान में अंतर - Difference Between Indian Polity and Constitution In Hindi

दोस्तों, आज के इस लेख में हम भारतीय राजव्यवस्था और संविधान में अंतर (Difference Between Indian Polity and Constitution) को जानेंगे। हम जानेंगे की संविधान और राजव्यवस्था क्या हैं ? 


Indian Polity In Hindi

संविधान क्या है? - What Is Constitution In Hindi 

"संविधान उन प्रावधानों का संग्रह हैं, जिनके आधार पर किसी देश का शासन चलाया जाता हैं"। संविधान का स्वरूप सैद्धांतिक होता हैं। 


शासन क्या हैं ?

शासन अर्थात "सार्वजनिक जीवन का संचालन"। सार्वजनिक जीवन में किसी देश की राजनीतिक, आर्थिक, प्रशासनिक, शिक्षा व्यवस्था आदि को शामिल किया जाता हैं, जिसका प्रभाव सभी पर पड़ता हैं। 


राजव्यवस्था क्या है? - What Is Polity In Hindi 

संविधान को लागू करने के क्रम में जो विषय और मुद्दे उभरकर सामने आते हैं, उन्हें समग्र रूप में 'राजव्यवस्था' कहते हैं। 


राजव्यवस्था, संविधान का व्यवहारिक रूप हैयह संविधान का अनुप्रयोग (Application) है। 


जैसा की अभी हमने समझा की संविधान, एक सैद्धांतिक रूप हैं और संविधान का व्यवहारिक रूप है 'राजव्यवस्था'। आइए, जानते हैं की राजव्यवस्था, संविधान का व्यवहारिक रूप कैसे है? -


राजव्यवस्था सामान्यतः निम्नलिखित तत्वों से मिलकर बनती हैं -

  • संसद के कानून 
  • न्यायालय के निर्णय 
  • विभिन्न प्रकार की संस्थाएँ और उनकी कार्यप्रणाली 
  • जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र आदि से सम्बंधित मुद्दे। 



1. संसद के कानून - Law of Parliament

संसद द्वारा बनाये गए कानून राजव्यवस्था का भाग हैं। इसे एक उदाहरण से समझते है, भारतीय संविधान का अनुच्छेद-17 ''अस्पृश्यता का उन्मूलन करता हैं और इसे एक दंडनीय अपराध घोषित करता हैं"।  

परंतु, संविधान में अस्पृश्यता क्या हैं ? और इसके लिए क्या दंड होगा? इसको स्पष्ट नहीं किया गया हैं। सरल शब्दों में कहें तो संविधान में ये प्रावधान तो दिया गया हैं की अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाता हैं और यह दंडनीय अपराध हैं किंतु किन मामलों को अस्पृश्यता की श्रेणी में रखा जायेगा और उसके लिए दंड (अर्थदंड [Fine], कारावास, फांसी) क्या होगा इसके बारे में नहीं बताया गया हैं। जैसे की -

  1.  कोरोना काल में अगर कोई व्यक्ति स्वास्थ्य कारणों से किसी को छूने से मना करे तो क्या यह अस्पृश्यता है?
  2. क्या समाज में किसी ऊंची समझी जाने वाली जाति के व्यक्ति द्वारा किसी निम्न समझी जाने वाली जाति के व्यक्ति को छूने से मना करना अस्पृश्यता है?

इन सब सवालों के जवाब संसद द्वारा बनाया गया "अस्पृश्यता (निवारण) अधिनियम, 1955 [ नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम ]" देता हैं। यह अधिनियम स्पष्ट करता हैं की अस्पृश्यता क्या हैं और अस्पृश्यता करने पर दंड क्या होगा?



2. न्यायालय के निर्णय

अलग-अलग मामलों में न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय भी राजव्यवस्था का अंग हैं। उदाहरण के लिए - संविधान का अनुच्छेद-19 "विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" प्रदान करता हैं। किन्तु संविधान ये नहीं बताता हैं की कौन-कौन से विचार और अभिव्यक्ति के तरीकों की स्वतंत्रता हैं। 


न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय इसकी सीमाओं को स्पष्ट करते हैं अर्थात न्यायालय बताता हैं की व्यक्ति कौन-कौन से विचारों और किस माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग कर सकता हैं। 

  1. Indian Express Newspaper केस, 1984  में न्यायालय ने "प्रेस की स्वतंत्रता" को एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right) माना। 
  2. गुलाम नबी आजाद केस, 2020 में न्यायालय ने "Internet" को एक मौलिक अधिकार माना ( ये केस 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के दौरान J&k में इंटरनेट बैन करने को लेकर हुआ था।) 
Indian Express Newspaper केस, गुलाम नबी आजाद केस व स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में और अधिक जानने के लिए आप इस लेख को पढ़ सकते है - अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) क्या है? तथा इससे सम्बंधित मामले 

 

3. विभिन्न प्रकार की संस्थाएँ और उनकी कार्यप्रणाली 

भारत की अलग-अलग संस्थाएँ और उनकी कार्यप्रणाली भी राजव्यवस्था का अंग हैं। भारत में निम्नलिखित प्रकार की संस्थाएँ हैं -

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A. संवैधानिक संस्थाएँ (Constitutional Institutions)

वे संस्थाएँ जिनका स्रोत (Source) संविधान हैं। जैसे की - निर्वाचन आयोग (अनुच्छेद 324), वित्त आयोग (अनुच्छेद 280) आदि। 


B. असंवैधानिक संस्थाएँ (Unconstitutional Institutions) 

ऐसी संस्थाएँ जिनका स्रोत संविधान नहीं हैं अर्थात ये संस्थाएँ देश में नहीं होनी चाहिए परन्तु फिर भी उनका अस्तित्व हैं। जैसे की - नक्सलवादियों के संगठन, ULFA (United Liberation Front Of Asom) आदि। 


C. गैर-संवैधानिक संस्थाएँ (Extra-Constitutional)

वे संस्थाएँ जिनका स्रोत संविधान नहीं हैं, लेकिन फिर भी वे संविधान के आदर्शों के अनुकूल हैं। जैसे की - नीति आयोग (National Institution For Transforming India), राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Right Commission - NHRC) आदि। 


गैर-संवैधानिक संस्थाएँ 2 प्रकार की होती हैं - 

(i) सांविधिक (Statutory) - ये विधायिका/संसद के कानून से निर्मित संस्था होती हैं। यथा - NHRC

(ii) कार्यकारी (Executive) -  ये राष्ट्रपति के आदेश से निर्मित संस्था होती हैं। यथा - नीति आयोग 


4. विभिन्न मुद्दे 

जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र से सम्बन्धित अलग-अलग मुद्दे भी राजव्यवस्था के भाग होते हैं। 


मौलिक अधिकार (Fundamental Rights):

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