परिचय
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक मानी जाती हैं। इसे हड़प्पा सभ्यता, सिंधु-सरस्वती सभ्यता आदि नामों से भी जाना जाता हैं। विश्व की अधिकतर सभ्यताऐं नदी घाटी क्षेत्रों के आस-पास विकसित हुई थी। यह सभ्यता भी भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सिंधु नदी के किनारे विकसित हुई। सिंधु सभ्यता के बारे में और विस्तार से जानने से पहले हम कुछ basic सवालों के जवाब खोजते हैं -
1. सभ्यता क्या हैं ? - What Is Civilization In Hindi
2. संस्कृति क्या हैं ? - What Is Culture In Hindi
3. सभ्यता और संस्कृति में क्या संबंध हैं ? - Civilization and Culture
Ans. अगर सभ्यता बाह्य आवरण हैं तो संस्कृति आंतरिक गुण। एक फूल के उदाहरण से इसे समझते हैं, फूल का बाहरी सौंदर्य अर्थात पंखुड़ियाँ अगर सभ्यता है तो उससे निकलने वाली सुगंध संस्कृति हैं।
इस प्रकार जब किसी एक विशिष्ट क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों द्वारा अपनी एक जीवनशैली का सृजन किया जाता हैं तो यह "संस्कृति" कहलाती हैं तथा जब यही संस्कृति एक बड़े क्षेत्र में फैलकर अपने आप को एक मानदंड (standard) के रूप में स्थापित कर लेती हैं तब यह "सभ्यता" कहलाती है।
सिंधु सभ्यता का कालक्रम
सिंधु सभ्यता के कालक्रम निर्धारण में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। जॉन मार्शल के अनुसार इस सभ्यता का तिथिक्रम 3250 BC से 2750 BC माना जाता हैं। मार्टिन व्हीलर के अनुसार 2500 BC से 1500 BC माना जाता है तथा रेडियो-कार्बन पद्धति से इस सभ्यता की तिथि 2300 ई.पू. से 1750 ई.पू. मानी गई हैं परंतु वर्तमान में इसका अधिकतर मान्य कालक्रम 2600 BC से 1900 BC हैं।
सिंधु सभ्यता का भौगोलिक विस्तार
1921 ई. में दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा तथा 1922 ई. में राखलदास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो में किए गए उत्खननों से इस सभ्यता का अनावरण हुआ।
- हरियाणा (भारत) - बणावली, मिताथल, राखीगढ़ी
- जम्मू-कश्मीर (भारत) - मांडा (जम्मू)
- राजस्थान (भारत) - कालीबंगा
- पंजाब (भारत) - रोपड़, कोटला, संघोल, निहंगखान
- उत्तरप्रदेश (भारत) - आलमगीरपुर, हुलास
- गुजरात (भारत) - रंगपुर, लोथल, सुरकोटड़ा, धौलावीरा
- महाराष्ट्र (भारत) - दैमाबाद
- बलूचिस्तान (पाकिस्तान) - सुत्कागेंडोर, बालाकोट
- पंजाब (पाकिस्तान) - हड़प्पा, गनेरीवाल, रहमान ढेरी
- सिंध (पाकिस्तान) - मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो, कोटदीजी
- अफगानिस्तान - शोर्तुगई, मुंडीगाक
- हड़प्पा, इस सभ्यता का सबसे पहले खोजा गया पुरास्थल था इस कारण इस सभ्यता को "हड़प्पा सभ्यता" भी कहा जाता हैं।
- 'मोहनजोदड़ो' का शाब्दिक अर्थ है - "मुर्दों का टीला"
- इस सभ्यता के अभी तक लगभग 1400 स्थल ज्ञात हैं। जिनमें से 917 भारत में 481 पाकिस्तान में तथा शेष 2 अफगानिस्तान में हैं।
- इस सभ्यता का विस्तार उत्तर में चेनाब नदी के किनारे स्थित मांडा पुरास्थल से दक्षिण में महाराष्ट्र के दैमाबाद तक हैं तथा पूर्व में आलमगीरपुर से पश्चिम में बलूचिस्तान के सुत्कागेंडोर तक हैं।
- इसका भौगोलिक विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग km हैं।
सिंधु सभ्यता की नगर निर्माण योजना
सामाजिक जीवन
- सिंधु सभ्यता के लोग साज-सज्जा पर विशेष बल देते थे।
- स्त्री-पुरुष दोनों ही आभूषण धारण करते थे।
- चन्हुदडो से लिपस्टिक के साक्ष्य मिले हैं।
- तांबे के दर्पण और हाथी दांत की कंघी भी मिली हैं।
- हड़प्पाई लोग सूती वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
- मनोरंजन के लिए पासा खेलते थे। लोथल से पासा एवं शतरंज बोर्ड के साक्ष्य मिले हैं।
आर्थिक जीवन
- गेहूँ उत्पादन के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से जौ के भी प्रमाण मिले हैं।
- हड़प्पाई लोग खजूर, सरसों, तिल, मटर, राई और चावल से भी परिचित थे।
- कपास की खेती होती थी। सिंधु सभ्यता में ही कपास की खेती का विश्व को पहला उदाहरण मिला हैं। सिंध क्षेत्र में उपज होने के कारण यूनानियों ने कपास के लिए "सिंडन" शब्द का प्रयोग किया हैं।
- कालीबंगा से जूते खेत के साक्ष्य मिले हैं।
- पशुपालन भी करते थे।
- तांबे व काँसे, मिट्टी के बर्तन, मनकों के निर्माण आदि उद्योग विकसित थे।
- आंतरिक व विदेशी व्यापार अत्यंत विकसित अवस्था में था। हड़प्पाई लोगो का मेसोपोटामिया के साथ व्यापार होता था।
- व्यापार के लिए वस्तु विनियम प्रणाली का प्रयोग किया जाता था।
धार्मिक जीवन
A. बहुदेववादी प्रवृति
पृथ्वी की पूजा, अग्नि की पूजा, मातृदेवी की पूजा, पाशुपत शिव की पूजा, उत्पादक शक्ति की पूजा, वृक्ष पूजा, पशु पूजा आदि।
B. उत्पादक शक्ति से जुड़ा होना
मातृदेवी, पुरुष तथा महिला अंगो की पूजा, हवनकुण्ड (लोथल व कालीबंगा से साक्ष्य) सर्प पूजा आदि अभी उत्पादन की और संकेत करते हैं।
C. भक्तिवाद और मूर्तिपूजा
यहाँ बड़ी संख्या में मृण्मूर्तियाँ (टेराकोटाफिगर) मिली हैं जो कहीं न कहीं मूर्तिपूजा की और संकेत करता हैं और मूर्तिपूजा को भक्ति से जोड़कर देखा जाता हैं।
D. जादू-टोना एवं तंत्रवाद
राजनीतिक जीवन
सिंधु सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था के बारे में हमे कोई स्पष्ट जानकारी नहीं हैं। इस सभ्यता के नगरों में मिश्र एवं मेसोपोटामिया की तरह कोई मंदिर नहीं मिला हैं। सिंधु सभ्यता के वासियों की मूल रूचियाँ व्यापार मूलक थी, और उनके नगरों में सम्भवतः व्यापारी वर्ग का शासन था। किन्तु नगर-नियोजन, पात्र-परम्परा, उपकरण निर्माण, बाट एवं माप आदि के संदर्भ में मानकीकरण एवं समरूपता किसी प्रभावी राजसत्ता के पूर्ण एवं कुशल नियंत्रण के प्रमाण हैं।
कला
- मिट्टी की मूर्तियाँ सर्वाधिक संख्या में मिली हैं।
- कांस्य मूर्तियों में सर्वाधिक कलात्मक नर्तकी की मूर्ति हैं। इस मूर्ति का निर्माण द्रवीय मोम विधि से हुआ हैं।
- सेलखड़ी से निर्मित कुछ मुहरे भी मिली हैं जिन पर सिंधु लिपि में कुछ लिखा हुआ हैं। सिंधु सभ्यता की दो मुहरें विशेष उल्लेखनीय हैं - पशुपति मुहर व एक कूबड़ वाले बैल की मुहर।
- सिंधु लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं गया हैं। यह लिपि दायी ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- अंकमाला का ज्ञान था
- गणना में 16 और उनके गुणक का प्रयोग
- हाथी दाँत के स्केल का प्रयोग (लोथल से मिला)
- फीट एवं क्यूबिक का ज्ञान
- खगोलशास्त्र का ज्ञान
- धातु की ढलाई का ज्ञान
- द्रवीय मोम विधि द्वारा मूर्ति निर्माण
सिंधु सभ्यता का पतन
A. परम्परागत दृष्टिकोण
- आर्यों का आक्रमण
- प्राकृतिक आपदा
- महामारी
- बाढ़ व सूखा
B. नवीन दृष्टिकोण
परवर्ती हड़प्पा संस्कृतियाँ
- पंजाब, हरियाणा एवं बहावलपुर में "कब्रगाह H संस्कृति"
- चन्हूदड़ो में "झूकर-झाकर संस्कृति"
- गुजरात में "चमकीले-लाल मृदभांड संस्कृति"
सिंधु सभ्यता का पूरी कहानी संक्षेप में
आरंभिक हड़प्पाई संस्कृतियाँ (लगभग 3200 ई. पू. - 2600 ई. पू.) ग्रामीण संस्कृतियाँ थी जैसे की - राजस्थान में सोथी संस्कृति, हरियाणा में सीसवाल संस्कृति, सिंध में आमरी कोटदीजी संस्कृति आदि। फिर इन संस्कृतियों ने धीरे-धीरे प्रगति की और ग्रामीण चरण से नगरीय चरण में आ गई। जब इन ग्रामीण संस्कृतियों ने खुद को एक विस्तृत क्षेत्र में प्रसारित किया और अपने को एक मानदंड के रूप में स्थापित कर लिया तब ये सभ्यता बन गई। इस सभ्यता के आंतरिक व विदेशी व्यापार का विकास हुआ, उद्योग स्थापित हुए, तकनीकी विकास हुआ तथा अन्य सभी क्षेत्रों में इसने प्रगति की।
इस सभ्यता का पतन न होकर इसके स्वरूप में परिवर्तन हुआ था। इसने अपने आपको को ग्रामीण संस्कृति से नगरीय सभ्यता में ढाला पर फिर कुछ कारणों से इस सभ्यता का पुनः ग्रामीण संस्कृतियों में रूपांतरण हो गया इन्हे "परवर्ती हड़प्पा संस्कृतियाँ" (1900BC - 1300 BC) कहा गया। कुछ परवर्ती हड़प्पा संस्कृतियाँ - कब्रगाह H संस्कृति, झुकर-झाकर संस्कृति, चमकीले-लाल मृदभाण्ड संस्कृति आदि थी।