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भू-चुम्बकत्व क्या है, कैसे उत्पन्न होता है और इसका महत्व क्या है? : Geomagnetism In Hindi

 दोस्तों, आज के इस लेख में हम पृथ्वी के भू-चुंबकत्व (Geomagnetism) के बारे में आपको जानकारी प्रदान करेंगे।  आज के इस लेख को पढ़ने के बाद आपके भू-चुम्बकत्व से सम्बंधित सभी प्रश्नों जैसे की Bhu Chumbakatva Kya Hai?, Bhu Chumbakatva Kaise Kaam Krta Hai? और Bhu Chumbakatva Ka Mhtv Kya Hai? आदि सभी प्रश्नों  के उत्तर मिल जायेंगे। 

भू-चुम्बकत्व, भूगोल (Geography) का एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक हैं। इस टॉपिक का उपयोग भूगोल के कई अन्य टॉपिक्स जैसे की पुराचुम्बकत्व (Palaeomagnetism), उत्तरी ध्रुविय ज्योति (Aurora Borealis) और दक्षिणी ध्रुवीय ज्योति (Aurora Australis) आदि में भी होता हैं। 


पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में संपूर्ण जानकारी 


भू-चुंबकत्व क्या है? - What Is Geomagnetism In Hindi

भू-चुंबकत्व के अंतर्गत पृथ्वी के चुंबकीय गुणों का अध्ययन किया जाता हैं।  


जैसा की हम जानते हैं की, किन्ही दो चुम्बकों के समान ध्रुवों को (N-N / S-S)  को पास लाने पर वे एक-दूसरे से दूर जाते हैं जबकि विपरीत ध्रुवों (N-S / S-N) को पास लाने पर ये एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। 

अब यदि पृथ्वी की सतह पर किसी चुंबक को स्वतंत्रतापूर्वक लटकाया जाता हैं तो सदैव उसका उत्तरी चुंबकीय ध्रुव, पृथ्वी की भौगोलिक उत्तर दिशा में तथा दक्षिणी चुंबकीय ध्रुव पृथ्वी की भौगोलिक दक्षिण दिशा में रुकता हैं। इसका अर्थ हैं की यदि पृथ्वी के आंतरिक भाग में कोई चुम्बक हैं तो उसका दक्षिणी ध्रुव, पृथ्वी की सतह पर स्वतंत्रतापूर्वक लटकाये गए चुंबक के उत्तरी ध्रुव की दिशा में होगा और आंतरिक भाग के चुम्बक का उत्तरी ध्रुव, सतह पर लटकाये गए चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव की दिशा में होगा क्योंकि सतह पर लटकाये गए चुम्बक और आंतरिक भाग के चुम्बक के ध्रुव विपरीत होने पर ही ये एक-दूसरे को आकर्षित कर रहे हैं और इस कारण चुम्बक सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में रुकता हैं। 


भू-चुंबकत्व क्या है? - What Is Geomagnetism In Hindi


इसी आधार पर वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी स्वयं एक दंड चुम्बक (Bar Magnet) की तरह कार्य करती है। जिसका भू-चुंबकीय दक्षिणी ध्रुव, पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी ध्रुव के समीप तथा भू-चुंबकीय उत्तरी ध्रुव, पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव के समीप स्थित हैं। किन्तु चुंबकीय सूई का उत्तरी चुंबकीय ध्रुव पृथ्वी की उत्तर दिशा में तथा दक्षिणी चुंबकीय ध्रुव पृथ्वी दक्षिण दिशा में रुकता हैं अतः पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुवों को इसी अनुरूप प्रदर्शित किया जाता हैं। 

दिकपात कोण


वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की भू-चुंबकीय अक्ष (वह काल्पनिक रेखा जो दंड चुम्बक के मध्य से खींची जाती है, जो उसे दो बराबर भागों में बाँट देती है।) पृथ्वी की भौगोलिक अक्ष से 11.5° का कोण बनाती है, इसे "दिकपात कोण" कहते है। 



भू-चुंबकत्व कैसे उत्पन्न होता है ? -How Does Geomagnetism Arise In Hindi


 प्रारंभ में यह माना गया की पृथ्वी के भीतर एक वृहद स्थायी दंड चुम्बक है। किन्तु जैसा की हम जानते हैं की पृथ्वी के आंतरिक भाग का तापमान अति उच्च (लगभग 5500 ℃ - 6000 ℃) है और इतने अधिक तापमान पर लौह-चुंबकीय पदार्थ अपना चुम्बकत्व खो देते है। इस कारण पृथ्वी के आंतरिक भाग में किसी स्थायी दंड चुम्बक का होना संभव नहीं हैं। 


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आधुनिक शोधों से यह ज्ञात हुआ है की पृथ्वी के भीतर विशिष्ट क्रिया के अंतर्गत चुंबकत्व की उत्पत्ति होती है, इस क्रिया को "भू-जनित्र (Geodynamo)" कहा जाता हैं। यह क्रिया पृथ्वी के बाह्य कोर (Outer Core) में संपन्न होती है, जहां लोहे और निकेल का गतिशील तप्त चालक द्रव, संवहन क्रिया में विद्युत धारा उत्पन्न करता हैं तथा यह  विद्युत धारा पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को जन्म देती हैं। 

भू-चुंबकत्व कैसे उत्पन्न होता है ? -How Does Geomagnetism Arise In Hindi
भू-जनित्र (Geodynamo)


वैज्ञानिकों के अनुसार बाह्य कोर में तप्त चालक द्रव की गति में परिवर्तन पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता को प्रभावित करता हैं तथा यह चुंबकीय ध्रुवों को भी उत्क्रमित कर सकता हैं। 

ध्रुवीय परिभ्रमण
ध्रुवीय परिभ्रमण


वास्तव में चुंबकीय ध्रुव स्थिर नहीं रहते हैं, ये निरंतर गति करते रहते है, इसे "ध्रुवीय परिभ्रमण" कहा जाता हैं। अर्थात जहाँ आज भू-चुंबकीय उत्तरी ध्रुव है वहां पहले भू-चुंबकीय दक्षिणी ध्रुव था और जहाँ आज भू-चुंबकीय दक्षिणी ध्रुव हैं वहां पहले भू-चुंबकीय उत्तरी ध्रुव था। 


भू-चुंबकत्व के बारे में अन्य तथ्य 

चुंबकमण्डल (Magnetosphere)


  पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र 64000 km की ऊँचाई तक पाया जाता हैं। पृथ्वी के चुम्बकत्व का प्रभाव क्षेत्र "चुंबकमण्डल (Magnetosphere)" कहलाता हैं। पृथ्वी का यह चुंबकीय क्षेत्र, पृथ्वी को एक सुरक्षा आवरण प्रदान करता हैं और सूर्य से आने वाले आवेशित कणों/ सौर पवनों को विक्षेपित कर भू-पृष्ठ पर आने से रोकता हैं।


  चुंबकीय सूई क्षैतिज से जो कोण बनाती है, उसे "नति कोण" कहते है। पृथ्वी पर वे सभी स्थान जहाँ नति कोण का मान 0 होता है,  उनको मिलाने वाली रेखा "चुंबकीय विषुवत रेखा" कहलाती हैं। 

भू-चुंबकीय विषुवत रेखा, चुंबकीय विषुवत रेखा, नति कोण, चुंबकमण्डल (Magnetosphere)


  चुंबकीय विषुवत रेखा भारत में "थुम्बा (केरल)" के समीप से गुजरती है। 


  भू-चुंबकीय अक्ष को 2 बराबर भागों में विभाजित करने वाली रेखा "भू-चुंबकीय विषुवत रेखा" कहलाती है। यह भौगोलिक विषुवत रेखा को 2 स्थानों पर काटती हैं।  


पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का महत्व 

1.  पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र पृथ्वी को सुरक्षा आवरण प्रदान करता हैं तथा यह सूर्य से आने वाले आवेशित कणों/सौर पवनों को विक्षेपित कर भू-पृष्ठ तक पहुँचने से रोकता हैं। यदि सूर्य से आने वाले आवेशित कण भू-पृष्ठ पर पहुँचते हैं तो पृथ्वी जीवों के अनुकूल नहीं रह जाएगी। 

[सूर्य से आने वाले कुछ आवेशित कण विक्षेपित नहीं हो पाते हैं और पृथ्वी के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों पर पहुंच जाते हैं, जिस कारण इन ध्रुवों पर रंगीन प्रकाश दिखाई देता हैं जिसे "ध्रुवीय ज्योति" कहा जाता हैं। ] 

2.  एयर ट्रैफिक प्रबंधन, मानचित्रण, हवाई पट्टी निर्माण आदि में चुंबकीय ध्रुवों का प्रयोग किया जाता हैं। 

3.  नौ-परिवहन और सर्वे तकनीकों में भी इसका इस्तेमाल होता हैं। 

4.  स्मार्टफोन और अन्य उपभोक्ता उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले दिशा सूचक यंत्र, चुंबकीय ध्रुवों के आधार पर काम करते हैं। 

5. कई प्रवासी पक्षी (Migratory Birds) व अन्य जीव-जंतु अपने गमन के लिए प्राकृतिक रूप में चुंबकीय ध्रुवों की अवस्थिति पर निर्भर रहते हैं। 


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