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'पृथ्वी की आंतरिक संरचना' के बारे में संपूर्ण जानकारी - Interior of the Earth In Hindi

पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth in Hindi) अदृश्य व अगम्य हैं। इस कारण Prithvi Ki Aantrik Sanrachna की वास्तविक स्थिति के विषय में ज्ञान प्राप्त करना लगभग असंभव हैं। गहराई के साथ तापमान में तेजी के कारण अधिक गहराई तक खनन व वेधन कार्य करना संभव नहीं हैं। भूगर्भ में इतना अधिक तापमान हैं की वह वेधन (Drilling) में प्रयोग किये जाने वाले किसी भी यंत्र को पिघला सकता हैं। पृथ्वी की सतह का विन्यास काफी हद तक पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम हैं। अंतर्जात और बहिर्जात प्रक्रियाएँ लगातार भूदृश्य को आकर देने का कार्य करती रहती हैं। मानव जीवन काफी हद तक भू-आकृति से प्रभावित होता हैं। इस कारण मनुष्य को पृथ्वी के आंतरिक भाग का ज्ञान होना आवश्यक हैं। इस लेख में Prithvi Ki Aantrik Sanrachna के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है। 



Table of Content:



Prithvi Ki Aantrik Sanrachna की जानकारी के स्रोत 

पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में जानकारी देने वाले साधनों को निम्न वर्गों में रखा जा सकता हैं -

Prithvi Ki Aantrik Sanrachna


1. अप्राकृतिक स्रोत (Artificial Sources)


A. घनत्व (Density)

घनत्व, द्रव्यमान (m) और आयतन (v) का अनुपात होता हैं। यदि द्रव्यमान स्थिर हैं तब घनत्व, आयतन के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात एक का मान बढ़ाने या घटाने पर दूसरे का मान क्रमशः घटता या बढ़ता है।

घनत्व (d) ∝ 1/आयतन (v)

वैज्ञानिकों ने गणितीय विधियों के द्वारा पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5gm/cm³ निर्धारित किया हैं। किन्तु पृथ्वी की सतह की चट्टानों का  घनत्व मात्र 2.7 gm/cm³ हैं। इससे यह अनुमान लगाया गया की पृथ्वी के आंतरिक भाग में उच्च घनत्व वाली चट्टानें पाई जाती हैं। गहराई में वृद्धि के साथ चट्टानों के घनत्व में होने वाली वृद्धि की निम्नलिखित दो प्रकार से व्याख्या की गई हैं - 

1. पृथ्वी सतह से केंद्र तक एकसमान खनिजों से निर्मित हैं, किन्तु ऊपरी भाग से पड़ने वाले दबाव के कारण आंतरिक भाग के खनिज संकुचित होकर उच्च घनत्व प्रदर्शित करते हैं। 


2. किन्तु वैज्ञानिकों के एक वर्ग का कहना हैं की किसी भी पदार्थ का घनत्व एक सीमा तक ही बढ़ाया जा सकता हैं, उससे अधिक दबाव बढ़ाने पर घनत्व में वृद्धि की जगह पदार्थ विघटित/टूट जायेगा। इस वर्ग के वैज्ञानिकों के अनुसार जब पृथ्वी अपने निर्माण के समय द्रव अवस्था में थी तब पृथ्वी के घूर्णन के कारण भारी पदार्थ पृथ्वी के केंद्र की ओर एकत्रित हुए और हल्के पदार्थ क्रमशः केंद्र से बाहर की ओर यह घटना, विभेदन कहलाती हैं। इससे पृथ्वी को परतदार संरचना प्राप्त हुई। हल्के पदार्थों द्वारा सबसे बाहरी परत निर्मित हुई ओर केंद्र की ओर क्रमशः भारी पदार्थों की परतें पाई जाती हैं। केंद्र में लोहे और निकेल की उपस्थिति स्वीकार की गई हैं। 


B. दवाब (Pressure)

पृथ्वी के ऊपरी भाग से आंतरिक भाग की ओर जाने पर चट्टानों का भार और दबाव बढ़ता जाता हैं अतः आंतरिक भाग में घनत्व के अधिक होने का एक कारण यह भी हैं। वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर किसी भी चट्टान के घनत्व के बढ़ने की एक सीमा होती हैं जिससे आगे दबाव को चाहे कितना भी बढ़ा लो, घनत्व नहीं बढ़ता हैं। इससे यह अनुमान लगाया गया की पृथ्वी का आंतरिक भाग धातुओं का बना हैं, जिसके कारण पृथ्वी के आंतरिक भाग का घनत्व और भार बहुत अधिक हैं। 


ऊपरी परतों द्वारा निचली परतों पर लगाए जाने वाले दबाव के कारण आंतरिक भाग की चट्टानों का गलनांक बढ़ जाता हैं। 


C. तापमान (Temperature)

पृथ्वी की सतह से केंद्र की ओर जाने पर प्रति 32m की गहराई पर 1°C तापमान बढ़ जाता हैं, ताप वृद्धि की यह दर "भू-तापीय प्रवणता" कहलाती हैं। यदि ताप वृद्धि की ये दर निरंतर बनी रहती हैं तब पृथ्वी के केंद्र पर इतना अधिक तापमान हो जायेगा की पृथ्वी स्वयं नष्ट हो जाएगी। अतः वैज्ञानिकों का अनुमान हैं की यह ताप वृद्धि दर कुछ km की गहराई तक ही पाई जाती हैं तथा इसके बाद ताप वृद्धि दर में कमी आती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के केंद्र पर तापमान 5500 °C - 6000 °C तक पाया जाना चाहिए। 


वैज्ञानिकों के अनुसार भू-गर्भ में उच्च तापमान के निम्नलिखित कारण संभव हैं -

  1. पृथ्वी की अवशिष्ट ऊष्मा (बची हुई ऊष्मा) 
  2. रेडियोएक्टिव पदार्थों के कारण 
  3. गुरुत्व ऊर्जा का ताप ऊर्जा में परिवर्तित होना 
  4. पृथ्वी की ऊपरी परतों से आरोपित होने वाला दबाव 
 
कुछ विद्वानों के अनुसार भूगर्भ में उच्च तापमान के कारण पृथ्वी द्रव अवस्था में होनी चाहिए, किन्तु यह ध्यान रखना चाहिये की किसी पदार्थ का गलनांक उस पर आरोपित दबाव के समानुपाती होता है। अतः भूगर्भ में उच्च तापमान के साथ उच्च दबाव की दशा भी पाई जाती है। जो पदार्थ अपने गलनांक को प्राप्त कर लेते है वे पिघल जाते हैं तथा शेष ठोस अवस्था में बने रहते हैं। अतः भूगर्भ में पदार्थ ठोस, द्रव और यहाँ तक की अर्द्धठोस अवस्था में भी पाए जाने चाहिए।  


2. प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources) 


A. ज्वालामुखी उद्गार (Volcanic eruption) 

पृथ्वी की सतह पर निर्मित वे छिद्र या दरार जिनसे भूगर्भ से विभिन्न तप्त पदार्थों का उद्गार होता हैं, ज्वालामुखी कहलाते है। ज्वालामुखी उद्गार (बाहर आना) के अंतर्गत ठोस, अर्द्धठोस, द्रव और गैस आदि पदार्थ उद्गारित होते हैं।

 

भूगर्भ में अतिउच्च ताप पर चट्टानें पिघल जाती हैं, जिससे तप्त द्रवित पदार्थ प्राप्त होता हैं, जो "मैग्मा" कहलाता हैं। मैग्मा विभिन्न खनिजों का मिश्रण होता हैं और जब यह मैग्मा ज्वालामुखी उद्गार में भूपृष्ठ पर आता हैं, तब यह "लावा" कहलाता हैं। 


 ज्वालामुखी उद्गार से प्राप्त पदार्थों के अध्ययन से भूगर्भ में उपस्थित पदार्थों का ज्ञान प्राप्त होता हैं, किन्तु ये पदार्थ कितनी गहराई से आ रहे हैं तथा भूगर्भ में ये किस अवस्था में होंगे इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है, अतः इस स्रोत की अपनी सीमाएँ है। 


B. उल्का पिंड (Meteorite)

अंतरिक्ष में विभिन्न आकर के धात्विक और चट्टानी टुकड़े अनियमित गति करते हुए पाए जाते हैं, इनका निर्माण भी उसी प्रक्रिया व उन्हीं तत्वों से हुआ हैं जिनसे पृथ्वी तथा अन्य पिंडों का हुआ हैं। उल्काएँ व पृथ्वी दोनों ही सौर परिवार का ही हिस्सा हैं। 


जब ये पृथ्वी के समीप से गुजरते हैं तब पृथ्वी के आकर्षण बल के कारण ये पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं तथा वायु के घर्षण से जल उठते हैं। यदि ये आकर में छोटे होते हैं तब ये हवा में ही जलकर नष्ट हो जाते हैं और इन्हें 'उल्का' कहा जाता हैं। 


ऐसे पिण्ड जो पर्याप्त बड़े होते हैं वे भू-पृष्ठ से टकराते हैं, इन्हें "उल्कापिंड" कहा जाता हैं। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से अतीत में टकराए उल्कापिंडों की खोज की हैं और इनके अध्ययन से ज्ञात हुआ हैं की इनकी रचना में निकल और लोहा पाया जाता हैं। इससे इस बात की पुष्टि हो जाती हैं की पृथ्वी के आंतरिक भाग में निकेल और लोहा पाया जाता हैं क्योंकि पृथ्वी में भी चुम्बकत्व का गुण पाया जाता हैं, इसका कारण पृथ्वी के आंतरिक भाग का 
निकेल व लोहे से बना होना हैं। 


C. भूकंप विज्ञान (Seismology) 

"प्राकृतिक और मानवजनित कारणों से भू-पृष्ठ पर उत्पन्न असामान्य व आकस्मिक कम्पन भूकंप कहलाते हैं"। भूकम्पों का अध्ययन भूकंप विज्ञान (Seismology) कहलाता हैं। भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी के आंतरिक भाग का लगभग सम्पूर्ण विवरण देता हैं। भूकंपीय तरंगों के अध्ययन के आधार पर प्राप्त जानकारी सर्वाधिक विश्वसनीय होती हैं। 


भू-गर्भ में ऊपरी परत की चट्टानें निचली परतों पर प्रतिबल आरोपित करती हैं, जब यह प्रतिबल निचली चट्टानों की सहने की सीमा से अधिक हो जाता हैं, तब चट्टानें टूट जाती है तथा भ्रंश (Fault) के सहारे इनमें संचित ऊर्जा मुक्त होती हैं। यह ऊर्जा तरंगों के माध्यम से संचरित होती है तथा पृथ्वी की सतह पर भूकम्पों का कारण बनती है। मुक्त ऊर्जा भूकंपीय ऊर्जा तथा तरंगे भूकंपीय तरंगे (Seismic Waves) कहलाती हैं। 


पृथ्वी के भूगर्भ में स्थित वह स्थान जहां से कंपन सबसे पहले उत्पन्न होता हैं, उद्गम केंद्र/ भूकंप मूल/ अवकेंद्र (Hypocenter) कहलाता हैं। 


भूकंप मूल के ठीक ऊपर स्थित वह स्थान जहाँ पृथ्वी की सतह पर सर्वप्रथम कम्पन अनुभव किये जाते है, अधिकेंद्र (Epicenter) कहलाता है।  

भूकंपीय क्रियाओं के कारण उत्पन्न होने वाली तरंगों को भूकंपीय तरंगें (Seismic Waves) कहा जाता हैं। इन तरंगों का अध्ययन "सिस्मोग्राफ यंत्र" द्वारा किया जाता हैं। भूकंपीय तरंगें 2 प्रकार की होती हैं -

  1. भूगर्भिक तरंगें (Body Waves)
  2. धरातलीय तरंगें (Surface Waves)

a.  भूगर्भिक/काया तरंगें (Body Waves)

ये तरंगें उद्गम केंद्र से ऊर्जा मुक्त होने पर पैदा होती हैं और पृथ्वी के भीतरी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं। ये  तरंगें 2 प्रकार की होती हैं -


• P तरंगें (Primary Waves) 

  • ये तरंगें सबसे तीव्र गति से चलती हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं। 
  • ये तरंगें ठोस, तरल और गैस तीनों प्रकार के माध्यमों से गुजर सकती हैं। ठोस माध्यम में इनकी गति सर्वाधिक होती हैं तथा तरल व गैस माध्यम में क्रमशः कम होती जाती हैं। 
  • इन तरंगों में कंपन की दिशा, तरंग के संचरण की दिशा में होती हैं इसलिए इन्हे "पुश एवं पुल तरंग" भी कहा जाता हैं। 
  • ये तरंगें अनुद्धैर्य तरंगें (longitudinal waves) होती हैं।  
  • इनका वेग औसतन 8km/sec से 14km/sec होता है। 


• S तरंगें (Secondary Waves)

  •  ये तरंगें धरातल पर कुछ समय बाद पहुँचती हैं, इस कारण ये द्वितीयक तरंगें कहलाती हैं। 
  • ये तरंगें केवल ठोस भाग में गमन करती हैं। 
  • ये अनुप्रस्थ तरंगे होती है तथा शृंग व गर्त में चलती हैं। 
  • ये केवल ठोस माध्यम में गति करती हैं तथा द्रव व गैस माध्यम में विलुप्त हो जाती हैं। 
  • इनका औसत वेग 4 km/sec से 6 km/sec होता है। 


P व S दोनों तरंगें भूकंप मूल से एक साथ उत्पन्न होती हैं किन्तु धरातल पर अलग-अलग पहुँचती हैं। 


b. धरातलीय तरंगें (Surface Waves)

  • ये तरंगें भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण उत्पन्न होती हैं। 
  • ये तरंगें केवल धरातल पर ही चलती हैं तथा भू-गर्भ में प्रवेश नहीं करती हैं। 
  • इनकी गति सबसे कम होती हैं। 
  • ये तरंगें धरातल पर सबसे अधिक दूरी तय करती हैं, जिस कारण इन्हें दीर्घ तरंगें भी कहा जाता हैं। 
  • किन्तु ये सर्वाधिक विनाशकारी भूकंपीय तरंगें हैं, क्योंकि ये सभी संभव दिशाओं में धक्के देती हैं।  
  • इन तरंगों को लव और रैले तरंगों में विभाजित किया जाता हैं। लव तरंगे अगल-बगल धक्के देती हुई चलती है तथा रैले तरंगे ऊपर-नीचे। 
  • इनमें अनुप्रस्थ और अनुदैर्ध्य दोनों तरंगों के गुण पाए जाते है। 
  • इनका वेग 1.5 km/sec से 3 km/sec होता हैं। 

भूकंपीय तरंगों के भ्रमण पथ व गति के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग के विषय में जानकारी प्राप्त होती हैं। यदि पृथ्वी की आंतरिक संरचना समान होती तो P व S तरंगों के व्यवहार में भी समरूपता पाई जाती परंतु ऐसा नहीं होता हैं। ये तरंगें समान घनत्व  में तो सीधी चलती हैं परन्तु उद्गम केंद्र पर इनकी दिशा सीधी न होकर वक्राकार होती हैं, इससे यह सिद्ध होता हैं की पृथ्वी के भीतर घनत्व में भिन्नता हैं जिसके कारण इनका मार्ग भी वक्राकार हो जाता हैं।


  • भूगर्भ में लगभग 30km की गहराई पर भूकंपीय तरंगों की गति बढ़ जाती हैं क्योंकि यहाँ चट्टानों की प्रत्यास्थता (elasticity) व घनत्व में वृद्धि होती हैं। 


  • वहीं 100km से 200km के मध्य की गहराई में चट्टानें आंशिक रूप से पिघली हुई अवस्था (प्लास्टिक अवस्था) में पाई जाती हैं इस कारण यहाँ तरंगों की गति कम हो जाती हैं। 


  • 2900km की गहराई में जाकर S तरंगें लुप्त हो जाती हैं, इससे यह ज्ञात होता हैं की भूगर्भ का ये भाग तरल अवस्था में हैं क्योंकि S तरंगें तरल भाग से होकर नहीं गुजरती हैं। वहीं P तरंगों के वेग में तेजी आ जाती हैं। 


इन 3 जगहों पर तरंगों की गति में अंतर आने के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग को 3 परतों में विभाजित किया गया हैं। 



Prithvi Ki Aantrik Sanrachna के भाग - Parts Of Interior Structure Of The Earth in Hindi

जैसा की हमने ऊपर देखा की भूकंपीय तरंगों की गति में तीन जगह परिवर्तन आता हैं, जिस आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग को 3 परतों में विभाजित किया गया हैं -


Interior of the Earth

Parts Of Interior Structure Of The Earth


1. भूपर्पटी (Crust)

  1. यह पृथ्वी का सबसे बाहरी और ठोस भाग हैं, इसकी औसत मोटाई 30 - 35 km हैं। 
  2. भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग हैं। इसका महाद्वीपीय भाग ग्रेनाइट चट्टानों से व महासागरीय भाग बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित हैं। 
  3. "कोनरार्ड असंबद्धता" के सहारे भू-पृष्ठ को ऊपरी और निचली भू-पृष्ठ में विभाजित करते हैं। 
  4. भू-पृष्ठ का आयतन सम्पूर्ण पृथ्वी का 1% तथा द्रव्यमान 0.5% हैं। 
  5. इस भाग में सिलिका (Si) और एल्युमिनियम (Al) की अधिकता हैं, जिस कारण से इसे "सियाल (SIAL)" भी कहते हैं। 


क्रस्ट को 2 भागों में बाँटा जाता हैं - ऊपरी पृष्ठ और निचला पृष्ठ 

  • ऊपरी सतह मुख्यतः महाद्वीपीय भागों द्वारा निर्मित हैं और असतत (Discontinuous) हैं। यह भाग SIAL से निर्मित है। 

  • निचली सतह महाद्वीपों के नीचे महासागरीय तल में पाई जाती हैं और यह सतत (Continuous) हैं। यह भाग SIMA से निर्मित हैं। 


2. मैंटल (Mantle)

  1. यह भूपर्पटी के नीचे वाला भाग हैं, इसकी मोटाई लगभग 2900km हैं।
  2. यह ठोस हैं और इससे P व S तरंगें तीव्र गति से पारगमन करती हैं। 
  3. इसका निर्माण "पेरीडोटाइट" नामक भारी चट्टानों से हुआ हैं, जिसमे प्रमुख खनिज ओलीविन, डयूनाइट आदि हैं। 
  4. "रिपेटी असंबद्धता" द्वारा इसे ऊपरी और निचली मेंटल में विभाजित किया जाता हैं। 
  5. मैंटल को "white of the Earth" भी कहा जाता है। 
  6. इसका सबसे ऊपरी भाग "दुर्बलमंडल" कहलाता हैं।
  7.  भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर "स्थलमंडल" कहलाते हैं। 
  8. दुर्बलमंडल  का ऊपरी भाग अर्द्धतरल अवस्था में हैं तथा मध्य भाग, निचले भाग की तरह ठोस हैं। दुर्बलमंडल के ऊपरी भाग में भूकंपीय तरंगों का वेग कम हो जाता हैं, इस कारण इसे "निम्न वेग प्रदेश" कहते हैं। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान निकलने वाले लावा का मुख्य स्रोत यही भाग हैं। 
  9. मैंटल में सिलिका (Si) और मैगनीशियम (Ma) की उपस्थिति के कारण इसे "सीमा (SIMA)" भी  कहते हैं। 
  10. मैंटल में पृथ्वी के समस्त आयतन का 83% और द्रव्यमान का 68% समाहित हैं। 



3. कोर (Core)

  1. यह पृथ्वी का सबसे आंतरिक भाग हैं, जिसका विस्तार "गुटेनबर्ग - विशर्ट असंबद्धता" (2900km) से पृथ्वी के केंद्र तक हैं।
  2. "लेहमैन असंबद्धता" द्वारा इसे बाह्य एवं आंतरिक कोर में विभाजित किया गया है। 
  3. इस भाग में S तरंगें लुप्त हो जाती हैं और P तरंगों के वेग में भी कमी आती हैं जिससे यह पता चलता हैं की कोर का यह भाग तरल अवस्था में हैं। 
  4. 5100km की गहराई पर P तरंगों के वेग में थोड़ी वृद्धि हो जाती हैं, जिससे यह ज्ञात होता हैं की कोर का आंतरिक भाग ठोस हैं। 
  5. पृथ्वी के कुल आयतन का 16% तथा द्रव्यमान का 31.5% कोर में समाहित हैं। 
  6. कोर में निकेल (Ni) और आयरन (Fe) जैसे भारी तत्वों की उपस्थिति के कारण इसे "निफे (NIFE)" भी कहा जाता हैं। 


असंबद्धता क्या होती है? - What is Discontinuity


Interior of the Earth in Hindi


असंबद्धता, क्रिस्टलीय चट्टानों वाली वह संक्रमण परत होती हैं जो अलग-अलग स्वभाव वाली दो चट्टानी परतों के मध्य प्राप्त होती हैं। अर्थात असंबद्धता दो भिन्न-भिन्न स्वभाव वाली चट्टानी परतों को अलग करती हैं। पृथ्वी के आंतरिक  भाग को निम्नलिखित असंबद्धताओं में विभाजित किया गया हैं - 
  • कोनरार्ड असंबद्धता - यह क्रस्ट को ऊपरी भू-पृष्ठ एवं निचली भू-पृष्ठ में विभाजित करती हैं। 
  • मोहो असंबद्धता - यह क्रस्ट को मैंटल से अलग करती हैं। 
  • रिपेटी असंबद्धता - यह मैंटल को ऊपरी मैंटल एवं निचली मैंटल में विभाजित करती हैं। 
  • गुटेनबर्ग - विशर्ट असंबद्धता - यह मैंटल और कोर को अलग करती हैं। 
  • लेहमैन असंबद्धता - यह कोर को बाह्य कोर एवं आंतरिक कोर में विभाजित करती हैं। 


FAQs

1. मैग्मा क्या हैं ?

Ans. पृथ्वी के भीतर उपस्थित तरल पदार्थ, जिसमे काफी अधिक मात्रा में गैसें उपस्थित होती हैं, मैग्मा कहलाता हैं।

2. लावा क्या हैं?

Ans. मैग्मा जब ज्वालामुखी उद्गार द्वारा भू-पृष्ठ पर आता हैं, तब यह लावा कहलाता हैं। लावा में, मैग्मा की तुलना में कम गैसें होती हैं। 

3. भूकंप मूल/उद्गम केंद्र क्या हैं ?

Ans. पृथ्वी के भूगर्भ में स्थित वह स्थान जहां से कंपन सबसे पहले उत्पन्न होता हैं, उद्गम केंद्र/ भूकंप मूल कहलाता हैं।

4. भूकंप की तीव्रता किस यंत्र से मापते हैं ?

Ans. सिस्मोग्राफ 

5. दुर्बलमंडल क्या हैं ?

Ans. मैंटल का सबसे ऊपरी भाग, दुर्बलमंडल कहलाता हैं। 

6. पृथ्वी के सबसे आंतरिक भाग का तापमान क्या हैं ?

Ans. 5000°C - 6000°C के बीच  


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