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चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात क्या हैं? कैसे बनते हैं? प्रकार और नामकरण | Cyclone In Hindi | Chakrawat Kya Hai

दोस्तों अभी तक हमने भूगोल के कई Topics के बारे में विस्तार से जाना है। हमने वायुमंडल से सम्बंधित कई अवधारणाओं को क्रमबद्ध तरीके समझा है और इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज के इस लेख में हम जानेंगे 'चक्रवात' (Cyclone In Hindi) और प्रतिचक्रवात (Anticyclone In Hindi) के बारे में। हम चक्रवात से सम्बंधित लगभग सभी अवधारणाओं जैसे की Chakrawat Kya Hai, चक्रवात कैसे बनते है? इनका नामकरण कैसे होता है? आदि सभी को आसान भाषा में समझने का प्रयास करेंगे। 


चक्रवात के Concept को अच्छे से समझने के लिए पहले निम्नलिखित लेखों को अवश्य पढ़े -

Cyclone In Hindi, Chakrawat Kya Hai


Chakrawat Kya Hai? - Cyclone In Hindi

चक्रवात, केंद्रीय निम्न वायुदाब के चारों ओर घूर्णन करने वाली वायु का तंत्र होता है। इसमें परिधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र से केंद्रीय निम्न वायुदाब की ओर पवनें चक्राकार रूप में प्रवेश करती है। 

इनकी दिशा उत्तरी गोलार्ध में वामावर्त (Anticlockwise) और दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिणावर्त (Clockwise) होती है। इनके चक्रीय प्रतिरूप के लिए कोरिओलिस बल उत्तरदायी होता है। 


चक्रवात के प्रकार - Types Of Cyclone In Hindi 

Chakrawat निम्नलिखित 2 प्रकार के होते हैं -

  1. उष्णकटिबंधीय चक्रवात - Tropical Cyclone 
  2. शीतोष्णकटिबंधीय चक्रवात - Temperate Cyclone


उष्ण कटिबंधीय चक्रवात - Tropical Cyclone In Hindi 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात की निम्नलिखित विशेषताएं होती है - 

  • ये चक्रवात दोनों गोलार्धों में 5° - 30° अक्षांशों के मध्य निर्मित होते हैं। 

  • पवन के चक्राकार प्रतिरूप के लिए कोरिओलिस बल अनिवार्य होता है जबकि विषुवत रेखा पर कोरिओलिस बल शून्य होता है यही कारण है कि ये चक्रवात 5°N - 5°S में निर्मित नहीं होते है। 

 

  • इनका व्यास 80 km से 300 km तक होता है। कभी-कभी ये 50 km से भी कम व्यास वाले होते हैं जबकि हरिकेन का व्यास 600 km या इससे अधिक हो सकता है। 


  • इनका केंद्रीय निम्न वायुदाब क्षेत्र चक्षु (Eye) कहलाता है, जहां तापमान अन्य क्षेत्रों से अधिक होता है। इसका व्यास सामान्यतः 10 km से 30 km होता है। हरिकेन में इसका व्यास 80 किलोमीटर तक हो सकता है। इस क्षेत्र में क्षोभसीमा से वायु के अवतरण के कारण मौसम साफ और शांत रहता है। 


  • इनकी उत्पत्ति केवल उष्ण महासागरीय सतह पर होती है क्योंकि इनकी ऊर्जा का स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा होती है। यही कारण है कि जब यह महासागरीय सतह से स्थलीय भाग में प्रवेश करते हैं तब इनकी ऊर्जा का स्रोत कट जाता है तथा यह कमजोर होकर नष्ट हो जाते हैं। 


  •  यह प्रायः गर्मियों में निर्मित होते हैं। 


  • व्यापारिक पवन पेटी में उत्पन्न होने के कारण ये व्यापारिक पवनों के सहारे पूर्व से पश्चिम गति करते हैं। 


  • ये अत्यंत विनाशकारी होते हैं। 


उष्णकटिबंधीय चक्रवात के निर्माण एवं विकास के लिए आवश्यक दशाएं

  • विस्तृत उष्ण महासागरीय सतह जिसका तापमान 27℃ या इससे अधिक हो
  • कोरिओलिस बल की उपस्थिति
  • जल का उचित तापमान 60-70 m तक की गहराई तक बने रहना चाहिए
  • ITCZ की उपस्थिति
  • वायु कर्तन का अभाव (चक्रवात की दिशा के विपरीत वायु का प्रवाह न हो)
  • ऊपरी क्षोभमंडल में अपसारी पवन प्रतिरूप होना चाहिए


उष्णकटिबंधीय चक्रवात के निर्माण की अवस्थाएं

1. प्रारंभिक अवस्था


इस अवस्था में उष्ण महासागरीय सतह से उष्ण व आर्द्र वायु का आरोहण होता है तथा सतह पर निम्न वायुदाब क्षेत्र उत्पन्न होता है, जिसे भरने के लिए पवनें उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर चलती है। 


Types Of Cyclone In Hindi, Chakrawat Kya Hai


2. द्वितीय अवस्था/युवावस्था

cyclone in hindi

इस अवस्था में चक्रवात का पूर्ण विकास हो जाता है। आरोहित होती हुई वायु 2-3 km की ऊंचाई तक पहुंचकर संघनित होती है तथा कपासी वर्षा बादल बनते हैं। यहां संघनन की गुप्त ऊष्मा मुक्त होती है तथा वायु गर्म होकर बड़ी मात्रा में आरोहित होकर क्षोभसीमा में पहुंचती है जिससे क्षोभसीमा पर अपसारी परिसंचरण पाया जाता है। संघनन की गुप्त ऊष्मा के कारण वायु का तीव्र आरोहण होता है तथा केंद्रीय निम्न वायुदाब और सशक्त हो जाता है। सागरीय सतह पर निम्न वायुदाब की ओर अत्यधिक पवनें पहुँचती है और कोरिओलिस बल के अधीन चक्राकार रूप में आरोहित होती है। चक्रवात के केंद्रीय भाग में क्षोभसीमा से कुछ वायु अवरोहित होती है अतः यहां मौसम शांत होता है, इसी केंद्रीय भाग को 'चक्रवात चक्षु' कहते है। 


3. तृतीय अवस्था/चक्रवात की प्रौढ़ावस्था

इस अवस्था में धीरे-धीरे केंद्रीय निम्न वायुदाब समाप्त हो जाता है, पवनों का वेग मंद हो जाता है तथा चक्रवात का क्षय हो जाता है। 


उष्णकटिबंधीय चक्रवात की संरचना 


Tropical Cyclone In Hindi
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

1. क्षैतिज संरचना 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात की क्षैतिज संरचना में निम्नलिखित प्रमुख भाग होते हैं -

A. चक्रवात चक्षु 

यह चक्रवात का केंद्रीय भाग होता है। इसका तापमान अन्य भागों की तुलना में अधिक होता है। यहाँ क्षोभसीमा से वायु का अवतलन होता है, अतः मौसम साफ रहता है। 


B. चक्षु भित्ति/दीवार 

चक्षु को घेरे हुए गहन कपासी वर्षा बादलों की मेखला होती है। यहां मौसम सर्वाधिक अशांत होता है। यहां अति तीव्र पवनें व तड़ितझंझायुक्त मूसलाधार वर्षा होती है। 


C. सर्पिल वर्षा पट्टी

चक्षु भित्ति के उपरांत अपेक्षाकृत कम गहन कपासी वर्षा बादल मिलते हैं, जिनके सहारे यहाँ मौसम शांत प्राप्त होता है। ऐसी 2 मेखलाएं होती है, इन्हें सर्पिल वर्षा पट्टी कहा जाता है। 


सर्पिल वर्षा पट्टी के उपरांत वलय क्षेत्र, संवहनीय मेखला प्राप्त होती है, जहां क्रमशः वायुदाब बढ़ता जाता है, पवन मंद होती जाती है तथा बाहरी भाग केंद्रीय भाग के लिए पवनों के स्रोत का कार्य करता है। 


2. ऊर्ध्वाधर संरचना 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात के ऊर्ध्वाधर भाग निम्नलिखित होते हैं -

A. आंतरिक प्रवाह परत 

यह सागरीय सतह से लगभग 3 km की ऊंचाई तक होती है। यहाँ वायु का संचलन केंद्र की ओर होता है। गर्म सागरीय सतह से जल का वाष्पीकरण होता है और संघनन के उपरांत बादल बनते हैं तथा गुप्त ऊष्मा मुक्त होती है, जो चक्रवातों के लिए ऊर्जा का कार्य करती है। 


B. मध्यवर्ती परत

यह 3 km से 7 km तक विस्तारित होता है होती है, यह चक्रवाती परिसंचरण का मुख्य भाग होती है। 


C. ऊपरी परत

यह 7 km से क्षोभसीमा तक विस्तारित होती है, यहां अपसारी प्रवाह पाया जाता है। 


उष्णकटिबंधीय चक्रवात पैमाना - Tropical Cyclone Intensity Scale

श्रेणी सतत पवन प्रवाह
अवदाब 31-50 km/h
गहन अवदाब 51-62 km/h
चक्रवाती तूफान 63-88 km/h
गंभीर चक्रवाती तूफान 89-117 km/h
अतिगंभीर चक्रवाती तूफान 118-165 km/h
अत्यधिक गंभीर चक्रवाती तूफान 166-220 km/h
सुपर साइक्लोन 221 km/h या इससे अधिक


उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के क्षेत्रीय नाम 

क्षेत्र नाम
पश्चिमी प्रशांत महासागर व दक्षिणी चीन सागर टाइफून
जापान टैफू
ऑस्ट्रेलिया विली-विली
फिलीपींस बैग्गियों (bagyo)
हिंद महासागर चक्रवात
उत्तरी अटलांटिक महासागर व मैक्सिको की खाड़ी हरिकेन


चक्रवातों का नामकरण 

  • सर्वप्रथम 1887 में क्वींसलैंड (ऑस्ट्रेलिया) के 'Clement Lindley Wragge' ने चक्रवातों का नाम रखना शुरू किया। 

  • वर्तमान में 'विश्व मौसम संगठन' (WMO) सभी चक्रवातों पर निगरानी रखता है। इसके लिए 6 Regional Specialize Meteorological Centers (RSMCs) की स्थापना की गई है।  

  • साथ ही WMO ने 5 Regional Tropical Cyclone Warning Center की भी स्थापना की है। 

  • जो देश उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों से ग्रस्त होते है उनसे कुछ नामों की अग्रिम सूची ले ली जाती है। ये नाम अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में होते हैं तथा प्रायः चक्रवातों के नाम Q U X Y Z अक्षरों से नहीं रखे जाते हैं। 

हिन्द महासागर में चक्रवातों का नामकरण

  • सन 2000 से हिंद महासागर के चक्रवातों का नामकरण प्रारंभ हुआ था, किंतु यह व्यवस्थित रूप में सन 2004 से काम करने लगा। 

  • पहले हिंद महासागर की चक्रवातों का नाम केवल 8 देश ही देते थे परंतु अब 13 देश नामकरण करते हैं -
देश
1. बांग्लादेश
2. भारत
3. ईरान
4. मालदीव
5. म्यांमार
6. ओमान
7. पाकिस्तान
8. कतर
9. सऊदी अरब
10. श्रीलंका
11. थाईलैंड
12. UAE
13. यमन

उष्णकटिबंधीय Chakrawat से संबंधित मौसम


cyclone in hindi

  • पक्षाभ व पक्षाभस्तरी बादल दिखाई पड़ते हैं। 
  • चक्रवात के समीप आने पर पहले वायुदाब बढ़ता है और फिर वायुदाब घटता है। 
  • सर्पिल वर्षा पट्टी के आने पर तेज पवनें और वर्षा प्रारंभ हो जाती है। 
  • चक्षु भित्ति के आने पर कपासी वर्षा बादलों द्वारा तड़ितझंझायुक्त मूसलाधार वर्षा होती है। 
  • जब चक्रवात आता है तो मौसम एकाएक शांत हो जाता है। 
  • चक्रवात चक्षु के गुजरने के बाद पुनः कपासी वर्षा बादलों से मूसलाधार वर्षा होती है और आगे धीरे-धीरे पवन वेग और वर्षा कम होती जाती है और अंततः मौसम शांत हो जाता है। 


अन्य तथ्य

1. हरिकेन

  • इनका व्यास 160 km - 640 km के मध्य होता है।
  • इनकी तीव्रता "साफिर सिम्पसन पैमाने" पर मापी जाती है। 


2. टॉरनेडो

  • यह सबसे छोटे किंतु सबसे अधिक खतरनाक चक्रवात होते हैं। 
  • ये स्थल व जल दोनों पर बन सकते हैं। 
  • इनकी तीव्रता "फुजिटा पैमाने" पर मापी जाती है। 

3. उष्णकटिबंधीयीय चक्रवात 

ये महासागरीय सतह  पर उत्पन्न होते हैं तथा यह महासागरीय ऊंची-ऊंची लहरे निर्मित करते हैं जिन्हें "तूफान महोर्मि" (Storm Surge) कहते हैं। 

(तूफान महोर्मि, सुनामी से अलग होती है।)


4. चक्रवात का स्थलीय भाग में आना Landfall कहलाता है। 




शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात - Temperate Cyclone In Hindi 

  • मध्य एवं उच्च अक्षांशों में विकसित चक्रवातीय वायु प्रणाली को 'शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात' कहते हैं। 
  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात का विकास 30° - 65° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्धों में होता है। 
  • ध्रुवीय ठंडी पवन एवं गर्म पछुआ पवनों के अभिसरण क्षेत्र में वाताग्र के सहारे शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती है। 
  • ये चक्रवात गोलाकार, अंडाकार या V आकार के होते है। 
  • इनकी ऊर्जा का स्रोत वायु राशियों के मध्य तापमान का अंतर होता है
  • यह अत्यधिक विस्तृत चक्रवात होते हैं जो 10 लाख वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत हो सकते हैं। 
  • ये जल एवं स्थल दोनों में उत्पन्न हो सकते हैं। 
  • यह वर्ष भर उत्पन्न होते हैं यद्यपि शीतकाल में इनकी तीव्रता अधिक होती है। 
  • इनका केंद्रीय निम्न वायुदाब क्षेत्र 'चक्षु' नहीं होता है बल्कि 'चक्रवात शीर्ष' होता है। 
  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात पछुआ पवन पेटी में विकसित होते हैं इस कारण इनकी दिशा पश्चिम से पूर्व होती हैं। 

शीतोष्ण कटिबंधीय Chakrawat की उत्पत्ति

ध्रुवीय वाताग्री सिद्धांत के अनुसार शीतोष्ण कटिबंधी चक्रवात 6 अवस्थाओं से गुजरता है जो निम्नलिखित है -

Temperate Cyclone In Hindi
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति

वाताग्र क्या है? - Airfront In Hindi 

जब दो विपरीत स्वभाव की वायुराशियाँ एक-दूसरे के समीप आती हैं तब स्वभाव में अंतर के कारण वे मिश्रित नही होती हैं, उनके मध्य वायु का एक संक्रमण पृष्ठ उत्पन्न हो जाता है, इस संक्रमण पृष्ठ को ही 'वाताग्र' कहा जाता है। 

प्रथम अवस्था

इसे स्थाई वाताग्र की अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में दो अलग-अलग स्वभाव की पवनें विपरीत दिशाओं से पास-पास आती है। 


द्वितीय अवस्था

यह अवस्था तरंग वातावरण चक्रवात की अवस्था होती है। ठंडी वायु भारी होने के कारण तेजी से नीचे आने का प्रयास करती है तथा गर्म वायु धीरे-धीरे ऊपर उठाने का प्रयास करती है। इस कारण वाताग्र का एक भाग नीचे झुक जाता है व एक भाग थोड़ा ऊपर उठ जाता है। 

तृतीय अवस्था

यह चक्रवात की प्रौढ़ावस्था होती है और चक्रवात पूर्णतः विकसित हो जाता है। 


चौथी अवस्था

इस अवस्था में शीत वाताग्र तेजी से चलते हुए उष्ण वाताग्र के समीप आ जाता है जिससे उष्ण वृतांश का क्षेत्रफल कम हो जाता है। 

पांचवी अवस्था

यह संरोधी या अधिविष्ठ वाताग्र की अवस्था होती है। इस अवस्था में शीत वाताग्र आगे पहुंचकर उष्ण वाताग्र का संपर्क सतह से काट देता है और उष्ण वाताग्र शीत वाताग्र पर लटका हुआ सा प्रतीत होता है। 

छठी अवस्था

इस अवस्था में वाताग्र पूरी तरह से समाप्त हो जाता है और धरातल पर ठंडी हवाओं का प्रभाव स्थापित हो जाता है, यह 'वाताग्र क्षय' या 'चक्रवात क्षय' की दशा होती है। 


शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात से संबंधित मौसम

  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में सबसे पहले पक्षाभ स्तरी बादल आते हैं। 
  • उष्ण वाताग्र आ जाने पर वर्षा स्तरी बादलों से एक बड़े क्षेत्र में लंबे समय तक वर्षा होती है। सर्वाधिक वर्षा इसी वाताग्र पर होती है। 
  • उष्ण वृतांश के आने पर वर्षा रुक जाती है। 
  • शीत वाताग्र के आने पर कपासी वर्षा बादलों से तीव्र वर्षा होती है
  • शीत वाताग्र के उपरांत शीत वृतांश आ जाता है इस कारण ताप कम हो जाता है। कपासी वर्षा बादल बनते हैं और मौसम शांत हो जाता है। 

प्रतिचक्रवात - Anticyclone In Hindi 

प्रतिचक्रवात वह वायुदाब प्रणाली है जिसके केंद्र में उच्च वायुदाब तथा बाहर की ओर निम्नवायुदाब की दशाएं होती है तथा पवनें केंद्रीय उच्च वायुदाब से परिधी की ओर उत्तरी गोलार्ध में दक्षिणावर्त दिशा  (Clockwise) में और दक्षिणी गोलार्ध में वामावर्त दिशा (Anti Clockwise) में प्रवाहित होती है। 

  • प्रतिचक्रवात शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 'फ़्राँसिस गाल्टन' ने किया था। 

Anticyclone In Hindi

प्रतिचक्रवात के प्रकार

प्रतिचक्रवात मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं -
  1. शीत प्रतिचक्रवात
  2. गर्म प्रतिचक्रवात

1. शीत प्रतिचक्रवात

आर्कटिक क्षेत्रों में विकिरण द्वारा अत्यधिक ताप ह्रास होने तथा कम सूर्यातप मिलने के कारण उच्च दाब बन जाता है, जिससे शीत प्रतिचक्रवात उत्पन्न हो जाते हैं। 


2.  गर्म प्रतिचक्रवात

गर्म प्रतिचक्रवातों की उत्पत्ति उपोष्ण उच्च वायुदाब की पेटी में होती हैं।  


इन्हें भी देखे:


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