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महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की सम्पूर्ण जानकारी | Continental Drift Theory

दोस्तों, आज के इस लेख में हम भूगोल के एक अतिमहत्वपूर्ण टॉपिक "महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Continental Drift Theory)" के बारे में विस्तार से जानेंगे। यह टॉपिक न केवल स्कूल और कॉलेज की परीक्षाओं बल्कि UPSC, State PCS जैसी Competitive Exams की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण टॉपिक हैं। 

यह सिद्धांत इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भूगोल के कई अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतों जैसे की सागर नितल प्रसरण (Sea Floor Spreading), संवहन धारा सिद्धांत (Convection Current Theory) और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonic Theory) आदि से भी जुड़ा हुआ हैं।   

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की सम्पूर्ण जानकारी | Continental Drift Theory


विषयसूची 

  1. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है?
  2. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की पृष्ठभूमि
  3. मुख्य सिद्धांत की रूपरेखा
  4. वेगेनर द्वारा वलित पर्वतों व द्वीपों के निर्माण की व्याख्या
  5. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के समर्थन में साक्ष्य 
  6. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की आलोचना
  7. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की प्रासंगिकता
  8. FAQs

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है? - What Is Continental Drift Theory In Hindi

महाद्वीपीय विस्थापन से तात्पर्य 'महाद्वीपों की अपनी मूल स्थिति के विस्थापन से हैं'। 


"वह सिद्धांत जो महाद्वीपों के विस्थापन द्वारा महाद्वीपों और महासागरों के वर्तमान वितरण और उनकी अवस्थिति की व्याख्या करता हैं, महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत कहलाता है"। 



महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की पृष्ठभूमि - Continental Drift Theory's Background In Hindi 

महाद्वीपों के प्रवाहित होने की संभावना का विचार सबसे पहले 1858 ई. में फ्रांस के एक विद्वान "एंटोनियो स्नाइडर (Antonio Snider) ने दिया था किन्तु वैज्ञानिकता के अभाव में इस संभावना को नकार दिया गया। इसके बाद ऑरटेलियस , फ्रांसीसी बेकन, पेलेग्रिनी तथा टेलर जैसे विद्वानों ने भी इस सिद्धांत की आरंभिक रूपरेखा प्रदान की किन्तु इसकी सबसे अधिक तर्कपूर्ण व्याख्या 1912 ई. में एक जर्मन मौसम वैज्ञानिक "अल्फ्रेड वेगेनर (Alfred Wegener)" द्वारा की गई। इस कारण वेगेनर को ही इस सिद्धांत का प्रतिपादक माना जाता है।


वेगेनर महोदय एक मौसम वैज्ञानिक थे तथा वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन और उससे पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन कर रहे थे। इसी क्रम में उन्हें शीत कटिबंध (Frigid Zone) में उष्ण कटिबंध (Torrid Zone) और उष्ण कटिबंध में शीत कटिबंध सम्बंधित पुराजलवायु के साक्ष्य प्राप्त हुए। वेगेनर महोदय ने यूरोप के शीत कटिबंधीय क्षेत्र में 'कोयला' पाया, परन्तु कोयला एक उष्ण कटिबंधीय वस्तु है क्योंकि इसका निर्माण अधिक ताप और अधिक दबाव में होता हैं और अधिक ताप शीत कटिबंधों में पाया नहीं जाता। वहीं उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र जैसे की 'प्रायद्वीपीय भारत' में वेगेनर महोदय को "टिलाइट चट्टानों" की प्राप्ति हुई, जिनका निर्माण गिलेशियरों के पिघलने से होता हैं, किन्तु प्रायद्वीपीय भारत में कहीं भी गिलेशियर नहीं पाए जाते। 


इस आधार पर वेगेनर महोदय ने निम्नलिखित 2 संभावनाओं पर विचार किया -

1. महाद्वीप अपने स्थान पर बने रहे और जलवायु कटिबंधों का विस्थापन हुआ। 

2.  जलवायु कटिबंध अपने स्थान पर बने रहे तथा महाद्वीपों का विस्थापन हुआ। 

इन दोनों संभावनाओं में से दूसरी संभावना की "जलवायु कटिबंध अपने स्थान पर बने रहे तथा महाद्वीपों का विस्थापन हुआ" को आधार बनाते हुए वेगेनर महोदय ने अपना महाद्वीपीय सिद्धांत प्रस्तुत किया। 


मुख्य सिद्धांत की रूपरेखा - Wegener's Theory Of Continental Drift In Hindi

अल्फ्रेड वेगेनर के अनुसार लगभग 30 करोड़ वर्ष पूर्व (कार्बोनिफेरस कल्प) में आज के सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे तथा यह संयुक्त भू-भाग "पैंजिया (Pangae)" कहलाता था। इसके चारों ओर विशाल जलराशि थी जिसे "पैंथालासा (Panthalassa) कहा गया। 

SiAl (सिलिका और एलुमिनियम) का बना पैंजिया, SiMa (सिलिका और मैग्नीशियम) की बनी पैंथालासा की तली पर उत्प्लावित था। 

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की सम्पूर्ण जानकारी | Continental Drift Theory


वेगेनर महोदय के अनुसार लगभग 18-20 करोड़ वर्ष पूर्व (जुरैसिक कल्प) में पैंजिया निम्नलिखित 2 बलों के अधीन विखंडित हुआ -

1.  पहला बल, पोलरफ्लिइंग बल अर्थात गुरुत्व तथा उत्प्लावन बल का परिणामी बल था। जिसके कारण पैंजिया के विभिन्न भागों में उत्तर (विषुवत रेखा) की ओर विभेदी गति हुई। इस क्रम में पैंजिया दो वृहद भू-खण्डों में टूट गया -

  • उत्तरी भाग - लॉरेशिया या अंगारालैंड (Laurasia/Angaraland)
  • दक्षिणी भाग - गोंडवानालैंड (Gondwana Land)


पैंजिया के दो भागों में विभाजित होने के कारण इनके मध्य बने खाली स्थान में पैंथालासा का जल भर गया जिससे वहा "टेथिस सागर (Tethys Sea)" की उत्पत्ति हुई। 

Image Source: pangea.ca


  लॉरेशिया के अंतर्गत वर्तमान के उत्तरी अमेरिका, ग्रीनलैंड व युरेशिया  (Europe + Asia) शामिल थे। जबकि गोंडवानालैंड में दक्षिण अमेरिका, अंटार्कटिका, अफ्रीका, मेडागास्कर, प्रायद्वीपीय भारत और ऑस्ट्रेलिया शामिल थे। 

भू-चुंबकत्व क्या हैं? 


2. दूसरा बल, चन्द्रमा और सूर्य का 'ज्वारीय बल' माना गया, जिसके कारण उत्तरी व दक्षिण अमेरिका में पश्चिम की ओर गति हुई। इस गति के कारण उत्पन्न भ्रंश में पैंथालासा के जल के भर जाने से 'अटलांटिक महासागर' की उत्पत्ति हुई। 

Continental Drift Theory


इसी प्रकार पैंजिया के विभिन्न भागों में गति के कारण वर्तमान के सभी महाद्वीप, महासागर, सागर, खाड़ी आदि अस्तित्व में आये।  


वेगेनर द्वारा वलित पर्वतों व द्वीपों के निर्माण की व्याख्या 

वेगेनर महोदय ने अपने सिद्धांत के द्वारा वलित पर्वतों और द्वीपों की उत्पत्ति की व्याख्या करने का भी प्रयास किया। उनके अनुसार जब 'प्रायद्वीपीय भारत', एशिया से अभिसरित हुआ (मिला/टकराया) तो टेथिस सागर के बंद होने तथा उसमे उपस्थित अवसादों (Sediments) के वलन से हिमालय की उत्पत्ति हुई। 



जब उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका पश्चिम की ओर गति कर रहे थे तब सीमा (SiMa) की परत ने उनके मार्ग में बाधा उत्पन्न कर दी जिससे मुलायम चट्टानों में वलन द्वारा रॉकी व एंडीज पर्वतों का निर्माण हुआ।  


वहीं वेगेनर के अनुसार जब पैंजिया के विभिन्न खंड गति कर रहे थे तब विभिन्न खंडों के वे भाग जिनका वेग कम था वे मूलखण्ड से पृथक हो गए तथा द्वीपों के रूप में अस्तित्व में आये। जैसे की जब यूरेशिया पश्चिम की ओर गति कर रहा था तब उसके पश्चिमी भाग की गति उसके पूर्वी भाग से अधिक तेज होने के कारण पूर्वी भाग का एक हिस्सा छोटे-छोटे खंडो में टूट गया जो वर्तमान में "पूर्वी द्वीपों" के रूप में स्थित हैं। 


महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के समर्थन में साक्ष्य - Continental Drift Theory Evidence In Hindi

वेगेनर महोदय ने अपने सिद्धांत के पक्ष में निम्नलिखित साक्ष्य प्रस्तुत किये -

1. महाद्वीपों के किनारों में साम्यता संबंधी साक्ष्य (Jig-Saw-Fit Theory) 

Jig-Saw-Fit Theory


वेगेनर के अनुसार दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी किनारे को अफ्रीका के पश्चिमी किनारे से जोड़ा जा सकता हैं। इसी प्रकार महासागरों में स्थित तटरेखाएं अद्भुत साम्यता रखती है। वर्तमान के सभी महाद्वीपों को जोड़ने पर हम पैंजिया का निर्माण कर सकते हैं। 


2. भूगर्भिक/चट्टानों से सम्बंधित साक्ष्य 

महासागरों के विपरीत तटों की चट्टानें आपस में आयु, संरचना व संघटन में समानता रखती हैं, जो यह सिद्ध करता हैं की अतीत में ये भाग आपस में जुड़े हुए थे। उदाहरण के लिए, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तटीय भाग की चट्टानें यूरोप के पश्चिमी तट की चट्टानों से समानता रखती हैं। 


3. पुराजलवायु संबंधी साक्ष्य 

पुराजलवायु साक्ष्य से तात्पर्य अतीत की जलवायु से सम्बंधित साक्ष्यों से हैं। प्रायद्वीपीय भारत में "टिलाइट अवसादी चट्टानों" के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जिनका निर्माण हिमनदों (Glaciers) द्वारा होता हैं। 

टिलाइट अवसादी चट्टान


ऐसी ही चट्टानें अफ्रीका, मेडागास्कर, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया व अंटार्कटिका में भी प्राप्त होती हैं। जो यह सिद्ध करता है की अतीत में प्रायद्वीपीय भारत हिमनदों के अनुकूल जलवायु कटिबंध में था तथा विस्थापित होकर वर्तमान अवस्थिति में पहुँचा हैं। 

[ जब पहाड़ पर स्थित हिमनद (Glacier) ढाल व गुरुत्वाकर्षण बल के कारण नीचे खिसकते है, तब ये खिसकते हुए अपने साथ अवसाद (मिट्टी, कंकड़, रेत आदि) को ले आते हैं, इस अवसाद को "टिल" कहा जाता हैं। जब नीचे आने के क्रम में हिमनद पिघल कर पानी बन जाता हैं तब ये अवसाद एक जगह इकट्ठा हो जाता हैं और बाद में यह चट्टानों में बदल जाता हैं, इन चट्टानों को "टिलाइट चट्टान" कहते हैं। ]


4. प्लेसर निक्षेप संबंधी साक्ष्य 

घाना (अफ्रीका) में पायी जाने वाले स्वर्ण खानों (Gold Mines) की पैतृक चट्टानें दक्षिण अमेरिका के ब्राजील तट पर पाई जाती हैं, जो अतीत में इसके आपस में जुड़े होने का प्रमाण हैं। 


5. पुराजीवाश्मीय साक्ष्य 

Continental Drift Theory in hindi


पुराजीवाश्मीय साक्ष्य से तात्पर्य किसी स्थान पर पाए जाने वाले जीवों के अवशेषों से हैं। ये जीव अतीत की जलवायु में पाए जाते थे किन्तु वर्तमान में इनके केवल अवशेष मिलते है। "ग्लोसोटटेरिस" नामक वनस्पति के अवशेष भारत ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका, मेडागास्कर और अफ्रीका से प्राप्त हुए हैं। इसी प्रकार "लेमूर" नाम के जीव के जीवाश्म भारत, मेडागास्कर व अफ्रीका में मिले हैं। 


6. जीवों के व्यवहार संबंधी साक्ष्य 

लेमिंग (Lamming) | Continental Drift Theory


स्कैंडिनेविया (नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड आदि) में "लेमिंग" नामक जीव पाए जाते हैं। जब इन जीवों की संख्या बढ़ जाती है तब ये भोजन की तलाश में पश्चिम की ओर भागते हैं और अटलांटिक महासागर में गिर कर अपनी जान दे देते हैं। वेगेनर के अनुसार जब उत्तरी अमेरिका और यूरोप जुड़े हुए थे तब ये जीव यूरोप से पश्चिम की ओर चलकर उत्तरी अमेरिका पहुँच जाते थे, अब ये दोनों महाद्वीपों अलग हो गए हैं परन्तु लेमिंगो में प्रवासन की वो आदत बनी हुई हैं। इस आधार पर यूरोप व उत्तरी अमेरिका के आपस में जुड़े होने को सिद्ध किया गया।   


महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की आलोचना - Criticism Of Continental Drift Theory In Hindi

वेगेनर महोदय ने विभिन्न साक्ष्यों द्वारा अपने सिद्धांत को सत्य सिद्ध करने का प्रयास किया किन्तु इनके सिद्धांत को निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गई -


  1. वेगेनर महोदय द्वारा बताये गए कल्पित बल (पोलरफ्लिइंग बल व ज्वारीय बल) इतने अधिक शक्तिशाली नहीं थे की वे इतने बड़े पैमाने पर विस्थापन को जन्म दे सके। 
  2. वेगेनर महोदय ने पैंजिया में केवल उत्तर व पश्चिम में होने वाले विस्थापन पर बल दिया अन्य दिशाओं में विस्थापन ना होने की संकल्पना त्रुटिपूर्ण हैं। 
  3. वेगेनर महोदय के अनुसार पैंजिया में विखंडन "जुरैसिक कल्प" में प्रारंभ हुआ, उससे पूर्व पैंजिया के विखंडित न होने कारणों पर कोई चर्चा नहीं की। जुरैसिक कल्प में ही पैंजिया का विखंडन क्यों हुआ? यह इस सिद्धांत में स्पष्ट नहीं किया गया। 
  4. वेगेनर महोदय ने केवल महाद्वीपों के विस्थापन पर बल दिया, महासागरों तली के गत्यात्मक पक्ष की अवहेलना की। 
  5. शुरू में वेगेनर महोदय ने SiAl को SiMa की तली पर स्वतंत्र रूप से उत्प्लावित बताया किन्तु रॉकी और एंडीज पर्वतों के निर्माण की व्याख्या में बताया की SiMa ने SiAl के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर दी। 

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की प्रासंगिकता - Relevance Of Continental Drift Theory In Hindi 

वेगेनर महोदय के सिद्धांत की व्यापक आलोचना हुई तथा तात्कालिक रूप में यह सिद्धांत अमान्य हो गया किन्तु इस सिद्धांत ने महाद्वीपों के विस्थापन की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया और इस दिशा में व्यापक शोध हुए। कालांतर में "आर्थर होम्स" द्वारा "संवहन धाराओं" के रूप में उन बलों की खोज कर ली गई, जो महाद्वीपों के विस्थापन में सक्षम थे। 


इस प्रकार यह बात सिद्ध हो गई की वेगेनर महोदय की मूलभूत संकल्पना सत्य थी किन्तु बताये गई प्रक्रिया में दोष थे। अंततः "प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत" द्वारा न सिर्फ महाद्वीपीय विस्थापन सिद्ध किया जा सका बल्कि भू-पृष्ठ पर होने वाले परिवर्तन भी स्पष्ट किए जा सके। वास्तव में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की नींव में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत को माना जा सकता हैं।  


FAQs

1. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या हैं ?

Ans. वह सिद्धांत जो महाद्वीपों के विस्थापन द्वारा महाद्वीपों और महासागरों के वर्तमान वितरण और उनकी अवस्थिति की व्याख्या करता हैं, महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत कहलाता है।


2. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के प्रतिपादक कौन थे ?

Ans. जर्मन मौसम वैज्ञानिक "अल्फ्रेड वेगेनर" ने 1912 में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत दिया था। 

3. अल्फ्रेड वेगेनर ने अपना सिद्धांत कब दिया ?

Ans. 1912 ई.

4. जिग-सॉ-फिट क्या हैं ?

Ans. वेगेनर के अनुसार महासागरों में स्थित तटरेखाएं अद्भुत साम्यता रखती है, इन्हें एक-दूसरे से जोड़ा जा सकता हैं, इसे ही जिग-सॉ-फिट (Jig-Saw-Fit) कहा जाता हैं। 

5. पैंजिया और पैंथालासा क्या हैं ?

Ans. लगभग 30 करोड़ वर्ष पूर्व आज के सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे तथा यह संयुक्त भू-भाग "पैंजिया" कहलाता था। इसके चारों ओर विशाल जलराशि थी जिसे "पैंथालासा" कहा गया। 

6. पैंजिया (Pangea) का अर्थ क्या है ?

Ans. पैंजिया का अर्थ pan - सम्पूर्ण तथा Geo - पृथ्वी हैं अर्थात सम्पूर्ण पृथ्वी या सम्पूर्ण भू-भाग ( सुपरमहाद्वीप ) 


7. टेथिस सागर कैसे बना ?

Ans. पैंजिया के दो भागों में विभाजित होने के कारण इनके मध्य बने खाली स्थान में पैंथालासा का जल भर गया जिससे वहा "टेथिस सागर (Tethys Sea)" की उत्पत्ति हुई। 


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