आज हम पृथ्वी के वायुमंडल (Earth's Atmosphere) के बारे में विस्तार से जानेंगे। Atmosphere In Hindi भूगोल का एक बहुत ही महत्वपूर्ण Topic है। वायुमंडल से सम्बंधित कई अन्य टॉपिक्स जैसे की मौसम एवं जलवायु, सूर्यातप, उष्मा बजट, वायुमंडलीय दाब, वायुमंडलीय परिसंचरण, वर्षण, चक्रवात आदि को समझने के लिए इसकी समझ होना जरूरी है, इससे आपको भूगोल के Concepts अच्छे से समझ आ जाये।
इस लेख में आपको पृथ्वी के वायुमंडल से सम्बंधित कई आधारभूत सवालों जैसे की वायुमंडल क्या है? (What is Atmosphere in Hindi), वायुमंडल की उत्पत्ति कैसे हुई? (How Atmosphere Formed in Hindi), वायुमंडल की संरचना एवं संघटन (Composition and Structure Of Atmosphere in Hindi) के जवाब मिलेंगे। आपके अभ्यास के लिए लेख के अंत में Quiz भी दी गयी है।
Table Of Content
- वायुमंडल क्या है? - Atmosphere In Hindi
- वायुमंडल की उत्पत्ति
- वायुमंडल का संघटन
- वायुमंडल की संरचना
- 1. तापीय विशेषताओं के आधार पर
- क्षोभमंडल (Troposphere)
- समतापमंडल (Stratosphere)
- मध्यमंडल (Mesosphere)
- आयनमंडल (Inosphere)
- बहिर्मंडल (Exosphere)
- कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- 2. रासायनिक विशेषताओं के आधार पर
- अभ्यास प्रश्न
वायुमंडल क्या है? - Atmosphere In Hindi
"पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए गैसों के समांगी मिश्रण तथा निलंबित कणकीय पदार्थों (Suspended Particulate Matter - SPM) के आवरण को पृथ्वी का वायुमंडल कहते हैं"। यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन पृथ्वी की सतह से सम्बद्ध रहता है।
आसान भाषा में कहें तो "पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायु के विस्तृत आवरण को वायुमंडल कहा जाता है"।
वायुमंडल (Atmosphere) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के दो शब्दों से हुई है -
- Atoms → जलवाष्प/गैस
- Sphere → मंडल
वायुमंडल की उत्पत्ति - How Did Earth's Atmosphere Form?
पृथ्वी के वायुमंडल की उत्पत्ति को निम्नलिखित तीन चरणों में स्पष्ट किया जा सकता है -
- प्रथम चरण - आदिकालीन वायुमंडल
- द्वितीय चरण - गैस उत्सर्जन
- तृतीय चरण - प्रकाश संश्लेषण के अधीन वायुमंडल का परिमार्जन
1. प्रथम चरण
2. द्वितीय चरण
पृथ्वी के निर्माण के समय पृथ्वी एक तप्त गोले के रूप में थी। फिर धीरे-धीरे पृथ्वी की बाहरी भाग/ऊपरी भाग का तापमान कम होता गया और पृथ्वी के बाहरी भाग ने ठोस चट्टानी रूप ले लिया किंतु पृथ्वी के आंतरिक भाग में अभी भी ऊष्मा बची हुई थी, जो ज्वालामुखी उद्गारों के रूप में बाहर आई।
ज्वालामुखी उद्गारों के अधीन कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प, हाइड्रोजन, मीथेन आदि गैसें उद्गारित हुई, इस प्रक्रिया को गैस उत्सर्जन (Degassing) कहा जाता है। यह वायुमंडल भी जीवन की अनुकूल नहीं था।
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3. तृतीय चरण
वायुमंडल निर्माण के इस चरण में जलवाष्प के संघनित होने से प्राप्त वर्षा जल के अधीन महासागरों का निर्माण हुआ, जहां प्रकाश-संश्लेषी जीवों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण व ऑक्सीजन का विमुक्तिकरण किया गया, जिससे वायुमंडल संशोधित हुआ और धीरे-धीरे वर्तमान का वायुमंडल अस्तित्व में आया।
वायुमंडल का संघटन - Composition Of Atmosphere in Hindi
वायुमंडल कई गैसों का मिश्रण है। वायुमंडल में न केवल गैस बल्कि जलवाष्प तथा निलंबित कणिकीय पदार्थ (SPM) भी पाए जाते हैं। वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों को दो भागों में बांटा जाता है - स्थायी गैसें और परिवर्तनशील/अस्थायी गैसें
वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसें
गैसें | रासायनिक सूत्र | आयतन का प्रतिशत |
---|---|---|
नाइट्रोजन | N₂ | 78.08 |
ऑक्सीजन | O₂ | 20.95 |
आर्गन | Ar | 0.93 |
कार्बन डाइऑक्साइड | CO₂ | 0.038 |
नियॉन | Ne | 0.0018 |
हीलियम | He | 0.0005 |
क्रिप्टॉन | Kr | 0.0001 |
जेनॉन | Xe | 0.00009 |
हाइड्रोजन | H₂ | 0.00005 |
मीथेन | CH₄ | 0.00017 |
ओजोन | O₃ | 0.000004 |
नाइट्रोजन (N₂)
- वायुमंडल में नाइट्रोजन सर्वाधिक मात्रा में पाई जाती है।
- यह आग को नियंत्रित करती है।
- यह ऑक्सीजन को तनु करती है अतः ऑक्सीजन श्वसन योग्य बन जाती है।
- जीवों व पादपों में 'प्रोटीन' (एमिनो एसिड) निर्माण के लिए नाइट्रोजन आवश्यक होती है।
- वायुमंडल में नाइट्रोजन 'नाइट्रोजन चक्र' द्वारा संतुलित होती है।
- यह वायुमंडल में लगभग 128 किलोमीटर की ऊंचाई तक प्राप्त होती है।
प्रवाल तथा प्रवाल भित्ति क्या हैं?
ऑक्सीजन (O₂)
- यह एक जीवनदायिनी गैस है।
- ऑक्सीजन वायुमंडल में नाइट्रोजन के पश्चात दूसरी सर्वाधिक मात्रा में पाई जाने वाली गैस है।
- यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में मुक्त होती है तथा जीवधारी इसे श्वसन में ग्रहण करते हैं।
- यह रासायनिक दृष्टि से अत्यधिक सक्रिय गैस है।
- ऑक्सीजन के बिना 'दहन' असंभव है।
- वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा 'ऑक्सीजन चक्र' के माध्यम से संतुलित रहती है।
आर्गन (Ar)
- यह एक निष्क्रिय गैस है, जो ज्वालामुखी उद्गारों से प्राप्त होती है।
- विद्युत बल्ब और ट्यूबलाइट में इसका उपयोग होता है।
- यह एक भारी गैस होती है, जिस कारण यह वायुमंडल की निचली परत में पाई जाती है।
कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂)
- कार्बन डाइऑक्साइड एक ग्रीनहाउस (हरित गृह) गैस है।
- जीवधारी इसे श्वसन की प्रक्रिया में मुक्त करते हैं तथा हरे पौधे इसे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ग्रहण करते है।
- यह पृथ्वी के पार्थिव विकिरण के लिए अवरोधक का कार्य करती है।
- वर्तमान में कार्बन डाइऑक्साइड 'भूमंडलीय तापमान' के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी मानी जाती है।
ओजोन (O₃)
- ओजोन गैस हल्की नीली रंग की तीखी गंध वाली अस्थाई गैस है।
- ओजोन मुख्यतः समताप मंडल व क्षोभमंडल में पाई जाती है।
- समताप मंडल की निचली परत में यह सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर पृथ्वी की सतह पर पहुंचने से रोकती है।
- भूमध्य रेखीय वायुमंडलीय क्षेत्र से ध्रुवीय वायुमंडलीय क्षेत्र की ओर जाने पर ओजोन परत की मोटाई में कमी आती है।
- जेट वायुयानों से निकलने वाली 'नाइट्रस ऑक्साइड' तथा एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर जैसे घरेलू कार्यों में प्रयोग होने वाले उपकरणों से निकलने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस (CFC) की कारण ओजोन परत का क्षरण हो रहा है।
- ओजोन परत की मोटाई "डॉब्सन" में मापी जाती है
जलवाष्प - Water Vapour
- जलवाष्प पानी की गैसीय अवस्था है।
- पृथ्वी के वायुमंडल में इसकी मात्रा लगातार परिवर्तनशील होती है।
- इसकी मात्रा ऊंचाई के साथ-साथ घटती जाती है।
- विषुवत रेखा से ध्रुवों की तरफ जाने पर जलवाष्प की मात्रा में कमी आती जाती है।
- यह कार्बन डाइऑक्साइड की तरह हरित ग्रह प्रभाव वाली गैस है।
- यह पृथ्वी के लिए कंबल का कार्य करती है तथा पृथ्वी को न तो अधिक गर्म और न ही अधिक ठंडा होने देती है।
- यह समस्त मौसमी परिघटनाओं के लिए उत्तरदायी गैस है।
- जलवाष्प के कारण ही ओस, बादल,कोहरा आदि बनते हैं और वर्षा होती है। इंद्रधनुष तथा प्रभामंडल (Halo) जैसे मनोरम आकाशीय दृश्य भी जलवाष्प के कारण ही दिखाई देते हैं।
- वायुमंडल में जलवाष्प का संतुलन 'जल चक्र' के माध्यम से होता है
निलंबित कणकीय पदार्थ (Suspended Particulate Matter - SPM)
- इन्हें एयरोसॉल (Aerosol) भी कहते है।
- निलंबित कणकीय पदार्थ के अंतर्गत धूलकण, परागकण, नमक, बैक्टीरिया कालिख इत्यादि आते हैं।
- यह एक परिवर्तनशील प्रकृति का तत्व है, जिसकी मात्रा विभिन्न कारणों से घटती बढ़ती रहती है।
- एयरोसॉल का सर्वाधिक सांद्रण वायुमंडल की निचली परतों में पाया जाता है।
- इसकी मात्रा वायुमंडल में नीचे से ऊपर की ओर जाने पर घटती जाती है।
- ये सूर्य से आने वाला प्रकाश का प्रकीर्णन करते है और इसी कारण हमें आकाश नीला दिखाई पड़ता है।
- यह आर्द्रताग्राही नाभिक की तरह कार्य करते हैं, जिसके चारों ओर जलवाष्प संघनित होकर बादलों का निर्माण करती है।
- इनसे भोर और संध्या के समय आकाश में मनोरम दृश्य बनता है।
वायुमंडल की संरचना - Structure Of Atmosphere in Hindi/Layers Of Atmosphere in Hindi
- तापीय विशेषताओं के आधार पर
- रासायनिक विशेषताओं के आधार पर
1. तापीय विशेषताओं के आधार पर
- क्षोभमंडल (Troposphere)
- समतापमंडल (Stratosphere)
- मध्यमंडल (Mesosphere)
- आयनमंडल (Ionosphere)
- बहिर्मंडल (Exosphere)
क्षोभमंडल (Troposphere)
- यह वायुमंडल की सबसे निचली परत है।
- इसे "मिश्रण मंडल" भी कहते हैं, क्योंकि इस मंडल में जलवाष्प, धूलकण, तापमान आदि सभी का मिश्रण होता है। इस परत को "परिवर्तन मंडल" भी कहा जाता है क्योंकि नीचे से ऊपर जाने पर तापमान, जलवाष्प और धूल कणों में कमी आती है।
- क्षोभमंडल में संवहन धाराओं का प्रभाव होता है अतः इसे "संवहन मण्डल" (Convection Zone) भी कहते है।
- क्षोभमंडल में ही अधिकांश बादलों का निर्माण होता हैं।
- इसे "मौसमी परिवर्तन की छत" भी कहा जाता है क्योंकि मौसम संबंधी सभी घटनाएँ यथा वाष्पीकरण, संघनन, वर्षण, कोहरा, पाला, हिमवर्षा, ओलावृष्टि, तड़ितझंझा, चक्रवात इत्यादि इसी मंडल में घटित होते हैं।
- क्षोभमंडल में ही "जेट स्ट्रीम" धाराएं प्रवाहित होती हैं।
- क्षोभमंडल, समताप मंडल से "क्षोभसीमा" (Tropopause) द्वारा अलग होता है।
- क्षोभमंडल की निचली परत को "घर्षण परत" कहा जाता है, क्योंकि धरातलीय सतह द्वारा हवाओं की दिशा और गति में अवरोध उत्पन्न किया जाता है।
- क्षोभमंडल की औसत ऊंचाई सतह से लगभग 13 किलोमीटर है। यह ध्रुवों के निकट 8 किलोमीटर तथा विषुवत रेखा पर 18 किलोमीटर तक की ऊंचाई तक विस्तृत है।
- क्षोभमंडल में ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान में कमी आती है इसके निम्नलिखित कारण है -
B. निचले भाग में वायु अधिक सघन होती है, अतः यह ऊष्मा अधिक अवशोषित करती है।
C. ऊंचाई के साथ जलवाष्प तथा धूलकण की मात्रा में कमी आती है।
- क्षोभमंडल में प्रति 165m की ऊंचाई पर 1℃ तापमान/ (6.5℃/1km ) कम हो जाता है। तापमान में कमी की इस दर को "सामान्य ह्रास दर" (Normal Lapse Rate) कहते है। किन्तु यह औसत दर है।
- किसी स्थान पर क्षोभमंडल में ऊंचाई के साथ तापमान परिवर्तन की जो वास्तविक दर पायी जाती है, उसे "पर्यावरणीय ताप पतन दर" (Environmental Lapse Rate) कहते हैं।
तापमान प्रतिलोम क्या है?
समतापमंडल (Stratosphere)
- समतापमंडल की औसत ऊंचाई धरातल से 50 किलोमीटर मानी जाती है।
- इस परत में 20 किलोमीटर की ऊंचाई तक तापमान स्थिर रहता है, अतः इसे 'समताप मंडल' कहा जाता है, किंतु इसके उपरांत ओजोन गैस (O₃) की उपस्थिति के कारण ऊंचाई में वृद्धि के साथ तापमान में भी वृद्धि होती है।
- ओजोन गैस की सर्वाधिक सांद्रता समताप मंडल में होती है अतः से "समतापमंडलीय ओजोन" कहते है। यह सामान्यतः 10 Km से 50 Km की ऊंचाई तक प्राप्त होती है। इसकी सर्वाधिक सांद्रता 15 किलोमीटर से 35 किलोमीटर की ऊंचाई तक होती है अतः यह भाग "ओजोन परत" या "ओजोन मंडल" कहलाता है।
- ध्रुव के समतापमंडल में बर्फ कणों से विशेष प्रकार के बादल बनते हैं जिन्हें "ध्रुवीय समतापमंडलीय बादल" नैक्रियस बादल या Mother Of Pearl Cloud भी कहा जाता है।
- समतापमंडल की ऊपरी सीमा "समताप सीमा" कहलाती है।
मध्यमंडल (Mesosphere)
- यह समतापमंडल के ऊपर 80 km की ऊंचाई तक विस्तृत है।
- इस परत में ऊंचाई में वृद्धि के साथ तापमान में कमी आती है क्योंकि यह नीचे से गर्म होती है।
- यह सर्वाधिक ठंडी वायुमंडलीय परत है।
- अंतरिक्षीय मलबा, उल्का जब मध्यमंडल में प्रवेश करते है तब वायु के घर्षण के कारण यह जल उठते है।
- उल्का राख तथा जलवाष्प की क्रिया के कारण यहां विशेष प्रकार के बादल बनते हैं जिन्हें "नाक्टीलूसेंट" या "निशादिप्ती बादल" कहते हैं।
- मध्य मंडल की ऊपरी सीमा को 'मध्यमंडल सीमा' कहते हैं
आयनमंडल - (Ionosphere)
- आयनमंडल का विस्तार मध्यमंडल सीमा के ऊपर 80 किलोमीटर से 400 किलोमीटर तक है।
- इस मंडल की गैसों को सौर विकिरण (सूर्य का प्रकाश) में उपस्थित गामा व x-विकिरण आयनित कर देती है, अतः यहाँ आयनित गैसों की परतें पाई जाती हैं, इस कारण इसे 'आयनमंडल' कहा जाता है।
- आयनमंडल की परतें विभिन्न आवृत्ति की रेडियो तरंगों को परिवर्तित करती है जिससे रेडियो प्रसारण सुन पाना संभव होता है।
- आयनमंडल को D, E₁, E₂, F₁, F₂, G परतों में विभाजित किया जाता है। E₁, E₂ परतों को संयुक्त रूप से "केनेली-हेविसाइड परत" कहते हैं वहीं F₁, F₂ परतों को "अप्लेटन परत" कहा जाता है।
- वायुमंडल की इस परत में "ध्रुवीय ज्योति" (Aurora) की घटना होती है।
बहिर्मंडल (Exosphere)
- इसका विस्तार 400 km से 1000 km की ऊंचाई तक माना जाता है। इसके पश्चात पृथ्वी का वायुमंडल अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है।
- यहाँ ऊंचाई के साथ तापमान में वृद्धि होती है तथा यहां तापमान बढ़कर लगभग 5700 ℃ हो जाता है किन्तु वायु के अत्यंत विरल होने के कारण यहां बढ़ा हुआ तापमान महसूस नहीं किया जा सकता है, इसका केवल गणितीय विधि से परिकलन किया जा सकता है।
- इस मंडल में कृत्रिम उपग्रह स्थापित किये जाते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
- 300 km से 2000 km की ऊंचाई तक की परत को "वॉन एलन बेल्ट" कहते है। यहां सूर्य से आने वाले कुछ आवेशित कण फंस जाते हैं और यहां भी औरोरा होता है।
- लगभग 64000 km की ऊंचाई तक पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र विस्तारित है इसे "Magnetosphere" कहा जाता है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में आवेशित कणों के कारण दिखने वाला रंगीन प्रकाश "Aurora Borealis" तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दिखने वाला रंगीन प्रकाश "Aurora Australis" कहलाता हैं।
- ओजोन परत की मोटाई "डॉब्सन यूनिट (DU)" कहलाती है। 1DU = 1mm
2. रासायनिक विशेषताओं के आधार पर
रासायनिक विशेषताओं के आधार पर वायुमंडल की परतों को दो भागों में विभाजित किया जाता है -
- सममंडल
- विषममंडल
सममंडल (Homosphere)
- यहां प्रत्येक स्थान पर विभिन्न गैसों की प्रतिशतता निश्चित रहती है।
- इसकी ऊंचाई सागर तल से 90 km तक है।
- सममंडल को 3 भागों में बांटा जाता है - क्षोभमंडल, समतापमंडल तथा मध्यमंडल
विषममंडल (Heterosphere)
- इसका विस्तार सममंडल से लगभग 10000 km तक है।
- यहां विभिन्न गैसों की प्रतिशतता स्थिर नहीं रहती है, यहां गैसों की विभिन्न परतें पाई जाती है।