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अनुच्छेद 32: Sanvaidhanik Upcharon Ka Adhikar

 संविधान और राजव्यवस्था के इस लेख में 'अनुच्छेद 32' (Article 32 in Hindi) के बारे में जानकारी दी गई है। अनुच्छेद 32 में 6th मौलिक अधिकार अर्थात Sanvaidhanik Upcharon Ka Adhikar दिया गया है। इस लेख में संवैधानिक उपचारों के अधिकार से सम्बंधित प्रमुख शब्दावलियों यथा रिट, बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा आदि के अर्थ को भी समझाया गया है। 


Sanvaidhanik Upcharon Ka Adhikar


Table of Content

Sanvaidhanik Upcharon Ka Adhikar - Right to Constitutional Remedies in Hindi

अनुच्छेद 32 के अनुसार "यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो वह सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है तथा सर्वोच्च न्यायालय 5 प्रकार के रिट (Writ) जारी करके व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को लागू करता है"। 


5 प्रकार के रिट निम्नलिखित हैं -
  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण - Habeas Corpus
  2. परमादेश - Mandamus
  3. प्रतिषेध - Prohibition
  4. उत्प्रेषण - Certiorari
  5. अधिकार पृच्छा - Quo Warranto

1. बंदी प्रत्यक्षीकरण - Habeas Corpus in Hindi

बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट के द्वारा न्यायालय बन्दीकर्ता/गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति को यह आदेश देता है की वह बंदी/गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें। न्यायालय बंदीकरण के आधारों पर विचार करता है और यदि वह कानून सम्मत नहीं है तो वह बंदी को मुक्त करने का आदेश जारी करता है। 


  • बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट लोक अधिकारी और निजी व्यक्ति दोनों के विरुद्ध जारी की जा सकती है। 
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण निवारक नजरबंदी (Preventive Detention) में भी जारी की जा सकती है। 


2. परमादेश - Mandamus Writ in Hindi

परमादेश रिट के द्वारा न्यायालय लोक अधिकारी को यह आदेश देता है कि वह विधि द्वारा निर्धारित अपने कर्तव्य का पालन करें। 

  • परमादेश रिट लोक अधिकारी के विरुद्ध जारी होती है। लोक अधिकारियों में राष्ट्रपति व राज्यपाल इसके अपवाद है। 
  • लोग अधिकारी का अर्थ है अनुच्छेद 12 का 'राज्य'

3. प्रतिषेध - Prohibition Writ in Hindi

प्रतिषेध रिट न्यायिक संस्था और अर्द्ध-न्यायिक संस्था के विरुद्ध जारी होती है। इस रिट के द्वारा न्यायालय न्यायिक संस्था और अर्द्ध-न्यायिक संस्था के द्वारा क्षेत्राधिकार का उल्लंघन करके कार्रवाई करने से रोकता है। 


न्यायिक संस्था क्या होती है? - What is Judicial Institution?

न्यायिक संस्था न्याय देने का कार्य करती है और इसमें न्याय देने वाला व्यक्ति (जज) न्यायपालिका का सदस्य होता है। 

अर्द्ध-न्यायिक संस्था क्या होती है? - What is Quasi-Judicial Institution?

अर्द्ध-न्यायिक संस्था भी न्याय देने का कार्य करती है, किंतु इसमें न्याय देने वाले व्यक्ति न्यायपालिका के सदस्य न होकर सरकार के अधिकारी होते हैं। यथा - CAT (Central Administrative Tribunal)

4. उत्प्रेषण - Certiorari Writ in Hindi

उत्प्रेषण रिट भी न्यायिक व अर्द्ध-न्यायिक संस्था के विरुद्ध जारी की जाती है। उत्प्रेषण रिट के द्वारा भी क्षेत्राधिकार के उल्लंघन को रोका जाता है। 

प्रतिषेध रिट और उत्प्रेषण रिट के मध्य क्या अंतर है? - What is the Difference Between Prohibition Writ and Certiorari?

  • प्रतिषेध रिट कार्रवाई के दौरान जारी होती है जबकि उत्प्रेषक रिट कार्रवाई की समाप्ति और निर्णय सुनाए जाने के बाद जारी होती है। 
  • प्रतिषेध का उद्देश्य जारी कार्रवाई को रोकना है जबकि उत्प्रेषक का उद्देश्य निर्णय को समाप्त करना है। 

5. अधिकार पृच्छा - Quo Warranto Writ in Hindi

इस रिट के द्वारा न्यायालय लोक पद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जांच करता है और यदि उसका दावा कानून सम्मत नहीं है, तो उसे पद से हटा देता है। 


हमने Sanvaidhanik Upcharon Ka Adhikar तथा 5 प्रकार की रिटों के बारे में विस्तार से जाना है। लेकिन यहाँ एक प्रश्न उठता है की -

Q. क्या रिट जारी करने का अधिकार केवल सर्वोच्च न्यायालय को ही है या हाईकोर्ट भी रिट जारी कर सकता है? और यदि हाईकोर्ट भी रिट जारी कर सकता है तो उसके और सर्वोच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार में क्या अंतर है?

भारत में केवल दो प्रकार के न्यायालय - सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) और उच्च न्यायालय (High Court) को ही रिट जारी करने की शक्ति है, जिला न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय को नहीं। हालांकि अनुच्छेद 32 संसद को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह किसी भी कोर्ट को रिट जारी करने की शक्ति प्रदान कर सकता है। 

सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 32 उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत पांच प्रकार के रिट जारी कर सकता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर रिट जारी कर सकता है जबकि उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अन्य अधिकारों का उल्लंघन होने पर भी रिट जारी कर सकता है। इस प्रकार उच्च न्यायालय का रिट क्षेत्राधिकार सर्वोच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार से व्यापक है। इसका कारण मौलिक अधिकारों को अन्य अधिकारों पर श्रेष्ठता प्रदान करना है। 


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