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समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18) तथा कानून के समक्ष समानता व कानूनों का समान संरक्षण क्या है?

भारतीय संविधान और राजव्यवस्था के पिछले लेख में हमने भारत के संविधान के भाग III (मौलिक अधिकारों) के अनुच्छेद 12 व 13 के बारे में चर्चा की थी। इसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए आज के इस लेख में हम पहले मौलिक अधिकार अर्थात Samanta Ka Adhikar (Right to Equality in Hindi) के बारे में जानेंगे। इसके साथ ही Samanta Ka Adhikar के अंतर्गत आने वाली कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाओं जैसे की कानून के समक्ष समानता, कानूनों का समान संरक्षण, पूर्ण और आनुपातिक समानता आदि के बारे में भी जानेंगे।

 

Samanta Ka Adhikar


Table of Content




Samanta Ka Adhikar (अनुच्छेद 14 से 18) - Right to Equality in Hindi

अनुच्छेद-14 

अनुच्छेद 14 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को भारत के राज्य क्षेत्र में 'कानून के समक्ष समानता' (Equality Before Law) 'कानूनों के समान संरक्षण' (Equal Protection of Law) से वंचित नहीं किया जाएगा। 


A. कानून के समक्ष समानता क्या है?- Equality Before Law in Hindi

कानून के समक्ष समानता एक नकारात्मक अवधारणा है। इसका अर्थ है- 'विशेषाधिकार की मनाही

[विशेषाधिकार का अर्थ है - 'सबल वर्ग के पक्ष में किया जाना वाला विभेद' (Discrimination)]


यह ब्रिटिश परंपरा से लिया गया है। कानून के समक्ष समानता के प्रतिपादक 'डायसी' थे। डायसी ने कानून के शासन (Rule of Law) की अवधारणा दी थी। 


'कानून का शासन' क्या होता है? - Rule of Law in Hindi

कानून के शासन का अर्थ है 'शासन करने वाले व्यक्ति और आमजन सभी कानून के अधीन है। शासन करने वाला व्यक्ति कोई भी हो लेकिन सर्वोच्चता कानून की होगी'। 


B. 'कानूनों का समान संरक्षण' क्या है? - Equal Protection of Law in Hindi

कानूनों का समान संरक्षण एक सकारात्मक अवधारणा है। इसका अर्थ है 'समान परिस्थिति में समान व्यवहार करना' अर्थात राज्य कानूनों के द्वारा नागरिकों को सुविधा उपलब्ध करवाता है, ये सुविधाएँ समान परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्तियों को समान रूप से उपलब्ध करवाई जाएगी। यह आनुपातिक समानता पर आधारित है। यह अमेरिका से लिया गया है। 


समानता की अवधारणा अरस्तु ने दी थी। अरस्तु के अनुसार समानता 2 प्रकार की होती है -

(i) आनुपातिक समानता (Proportional Equality) - इसका अर्थ है समान लोगों के साथ समान व्यवहार करना और असमान लोगों के साथ असमान व्यवहार करना। 


(ii) पूर्ण समानता (Absolute Equality)- इसका अर्थ है सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करना। 


  • भारतीय संविधान 'आनुपातिक समानता' को मानता है। 


अनुच्छेद-15 

अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य अपने नागरिकों कोई बीच धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग तथा जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा और इन आधारों पर किसी भी नागरिक को सार्वजनिक स्थलों जैसी कुँए, स्नान घाट, तालाब, सड़कें, सार्वजनिक भोजनालय, पार्क आदि के प्रयोग से रोक नहीं जाएगा। 


अनुच्छेद 15 के 5 अपवाद बताए गए हैं -

  1. अनुसूचित जाति 
  2. अनुसूचित जनजाति 
  3. दुर्बल वर्ग 
  4. महिला 
  5. बच्चे 

के पक्ष में भेदभाव किया जा सकता है। 


  • 93वें संविधान संशोधन (2005) के द्वारा भारत के संविधान में अनुच्छेद 15 (5) जोड़ा गया15 (5) के द्वारा यह प्रावधान किया गया कि राज्य पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा संस्थानों में नामांकन में आरक्षण कर सकता है। यह निजी शिक्षा संस्था और राज्य की शिक्षा संस्था दोनों के लिए किया जा सकता है। इसका एकमात्र अपवाद अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था होगी। 

अनुच्छेद-16 

  • अनुच्छेद 16 (1) - राज्य के अधीन नियोजन (Employment) में अवसर की समानता होगी। 
  • अनुच्छेद 16 (2) - राज्य के अधीन नियोजन में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, उत्पत्ति, जन्मस्थान या निवास के आधार पर नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं किया जाएगा। 
  • अनुच्छेद 16 (3) - संसद किसी क्षेत्र विशेष में रोजगार के लिए 'निवास' को एक शर्त बना सकती है। 
  • अनुच्छेद 16 (4) - नागरिकों के किसी पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण किया जा सकता है। 
  • अनुच्छेद 16 (5) - किसी धार्मिक संस्था से संबंधित पद उस धर्म विशेष के अनुयायियों के लिए आरक्षित किये जा सकते हैं। 


अनुच्छेद-17 

अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। अस्पृश्यता से उपजी किसी निर्योग्यता (Disability) को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा। 


  • संसद ने 1955 में 'अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955' पारित किया। 1976 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया तथा इसका नाम 'सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955' कर दिया गया। संसद ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न निवारण) अधिनियम, 1989 भी पारित किया जो 1955 और 1976 के कानूनों की तुलना में ज्यादा व्यापक और कठोर है। 

  • अस्पृश्यता शब्द का निश्चित अर्थ न तो संविधान में दिया गया है और न ही 1955 के अधिनियम या 1976 में हुए उसके संशोधन में। ऐसा मानकर चला गया है कि अस्पृश्यता का अर्थ सर्वविदित है। 



अनुच्छेद-18 

अनुच्छेद 18 उपाधियों का निषेध करता है। इस अनुच्छेद के प्रावधान निम्नलिखित हैं -

  • राज्य उपाधि नहीं देगा किंतु इसके 2 अपवाद है - शैक्षिक उपाधि (यथा-PHD), सैनिक उपाधि (यथा-परम वीर चक्र)
  • भारतीय नागरिक विदेशी राज्य से उपाधि नहीं ले सकता। 
  • भारत में लाभ का पद धारण करने वाला विदेशी, विदेशी राज्य से उपाधि ले सकता है, लेकिन भारत के राष्ट्रपति की अनुमति से। 
  • भारतीय नागरिक या भारत में लाभ का पद धारण करने वाला विदेशी, विदेशी राज्य से पद, लाभ, उपहार ले सकता है, लेकिन भारत के राष्ट्रपति की अनुमति से। 

A. 'उपाधि' क्या है?

उपाधि एक पदवी है जिसका उपयोग व्यक्ति अपने नाम के आगे या पीछे करता है और इसके कारण उसे कुछ विशेषाधिकार मिल जाते हैं। 


B. 'लाभ का पद' का अर्थ क्या है? 

लाभ के पद का अर्थ है अनुच्छेद 12 में परिभाषित 'राज्य' के अंतर्गत पद, वेतन, भत्ता या कोई भी आर्थिक लाभ वाला व्यक्ति। संसद ने 56 पदों को लाभ के पद का अपवाद घोषित किया है। यथा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री आदि। 


अनुच्छेद 18 से सम्बंधित मुद्दा (भारत रत्न का मुद्दा)

1954 में भारत सरकार ने भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्म श्री (सामूहिक रूप में 'पद्म सम्मान') की शुरुआत की थी। 

इन सम्मानों की आलोचना करने वालों में जे.बी. कृपलानी (कांग्रेस के नेता व संविधान सभा के सदस्य) प्रमुख व्यक्ति थे। इनकी आलोचना करने वालों का तर्क था की ये सम्मान अनुच्छेद 18 का उल्लंघन करते है क्योंकि अनुच्छेद 18 उपाधियों की मनाही करता है। 


1978 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पद्म सम्मान को बंद कर दिया। लेकिन 1980 में कांग्रेस की सरकार ने इसे पुनः शुरू कर दिया। आगे बालाजी राघवन केस (1996) में न्यायालय ने उपाधि (Title) और सम्मान (Award) में अंतर स्पष्ट किया। उपाधि स्वार्थपूर्ण होती है, इस कारण संविधान में उपाधियों की मनाही की गयी है किन्तु सम्मान समाज के प्रति योगदान करने पर दिया जाता है। इसलिए पद्म सम्मान दिए जा सकते है, यह अनुच्छेद 18 का उल्लंघन नहीं करते। 


Fundamental Rights:


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