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राजनीति विज्ञान में 'राज्य' (State) का अर्थ क्या है? | What is State in Political Science in Hindi?

 इस लेख में हम राजव्यवस्था से सम्बंधित एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवधारणा 'राज्य' (State) के बारे में जानेंगे। हम जानेंगे की Rajya Kya Hai? (What is State in Political Science in Hindi?), राज्य किन-किन तत्वों से मिलकर बनता है? और किसी एक तत्व के न होने पर भी राज्य की परिभाषा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?


What is State in Political Science in Hindi?


'राज्य' क्या है? - What is State in Political Science in Hindi?

राज्य शब्द का प्रयोग वैसे तो विभिन्न प्रांतों (provinces) जैसे राजस्थान, केरल, असम आदि को सूचित करने के लिए किया जाता है। किन्तु राज्य शब्द का वास्तविक अर्थ किसी प्रान्त से न होकर किसी समाज की राजनीतिक संरचना से होता है। यह एक अमूर्त अवधारणा है अर्थात इसे भौतिक स्तर पर समझा तो जा सकता है किंतु देखा नहीं जा सकता उदाहरण के लिए भारत की सरकार, संसद, न्यायपालिका, राज्यों की सरकारें, नौकरशाही से जुड़े सभी अधिकारी इत्यादि की समग्र संरचना ही राज्य कहलाती है। 



राज्य के तत्व - Elements of State

किसी भी राज्य को राज्य कहलाने के लिए उसमें निम्नलिखित 4 तत्वों का होना आवश्यक है -

  1. भू-भाग (Geographical Area)
  2. जनसंख्या (Population)
  3. सरकार (Government)
  4. संप्रभुता (Sovereignty)


1. भू-भाग (Geographical Area)

भू-भाग से तात्पर्य है की एक ऐसा निश्चित भौगोलिक प्रदेश होना चाहिए, जिस पर उस 'राज्य' की सरकार अपनी राजनीतिक क्रियाएँ करती हो। यथा भारत का सम्पूर्ण क्षेत्रफल भारत राज्य का भौगोलिक आधार या भू-भाग है। 


2. जनसंख्या (Population)

अगर जनसंख्या ही नहीं होगी तो राज्य का अस्तित्व निरर्थक हो जाएगा। इसलिए राज्य होने के लिए यह आवश्यक है की उसके भू-भाग पर निवास करने वाला एक ऐसा जनसमुदाय हो, जो राजनीतिक व्यवस्था के अनुसार संचालित होता हो। 


3. सरकार (Government)

सरकार का अर्थ है एक या एक से अधिक व्यक्तियों का वह समूह, जो व्यावहारिक स्तर पर राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करता है। राज्य और सरकार में एक अंतर यह है की जहां राज्य एक अमूर्त संरचना है वहीं सरकार उसकी मूर्त व व्यावहारिक अभिव्यक्ति है। 


4. संप्रभुता (Sovereignty)

संप्रभुता, राज्य का एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है। इसका अर्थ है की राज्य के पास अर्थात उसकी सरकार के पास अपने भू-भाग और जनसंख्या की सीमाओं के भीतर कोई भी निर्णय करने की पूरी शक्ति होनी चाहिए तथा उसे किसी भी बाहरी और भीतरी दबाव में निर्णय करने के लिए बाध्य नहीं होना चाहिए। 



राज्य के ये चारों तत्व अनिवार्य है, वैकल्पिक नहीं। यदि इनमें से एक भी तत्व अनुपस्थित हो तो राज्य की अवधारणा निरर्थक हो जाती है। चलिए इसे कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं -


(i) कभी-कभी ऐसा होता है कि सरकार भी होती है और जनता भी किंतु भूभाग नहीं होता उदाहरण के लिए तिब्बत की सरकार का संकट यही है चीनी आक्रमण के कारण जब 'दलाई लामा' को भारत में शरण लेनी पड़ी और भी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला नामक स्थान से तिब्बत की निर्वासित सरकार का संचालन करने लगे तो एक विचित्र से स्थिति उत्पन्न हो गई, क्योंकि तिब्बत की सरकार और कुछ जनता तो यहां थी किंतु उनके पास न तो अपना भू-भाग  था और न ही अपने मूल भू-भाग के संबंध में स्वतंत्र निर्णय करने की ताकत या प्रभुसत्ता थी। 


(ii) कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि सरकार भी हो जनता भी हो, भू-भाग भी हो किंतु संप्रभुता की कमी के कारण राज्य की धारणा पूरी ना हो सके। यथा पराधीन भारत में जब वायसराय भारतीय भूभाग का सर्वोच्च प्रशासक होता था तो एक निश्चित भू-भाग के भीतर जनता उसकी आज्ञा का पालन करती थी किंतु तब भी वह संप्रभु नहीं था क्योंकि वह ब्रिटेन की सरकार की आदेशों के तहत कार्य करता था। 


(iii) जब किसी देश में अराजक स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो भी राज्य का ढांचा बिगड़ने लगता है यथा अफगानिस्तान में लंबे समय तक कई गुटों में झगड़ा चलता रहा है और अलग-अलग गुट देश के अलग-अलग हिस्सों पर कब्जा जमाने में सफल होते रहे। ऐसी स्थिति में सरकार की शक्तियां व्यावहारिक स्तर पर शून्य हो जाती है, इसलिए उसकी संप्रभुता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। 



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